Monday, November 9, 2009

इंडिया गेट से --------- 'राज' द्रोह पर नपुंसक क्यों अपनी राजनीति? ---------------  संतोष कुमार ----------- 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा... हिंदी हैं हम, वतन है... हिंदोस्तां हमारा।' मोहम्मद इकबाल का लिखा तराना 1904 से अब तक अपने गौरव का गीत बना हुआ। पर कौन सोच सकता, ऐसा तराना लिखने वाला कभी बंटवारे की बात करेगा। फिर भी इतिहास का यही सच। इकबाल बाद में बंटवारे के कट्टïर पैरोकार बन गए थे। ऐसा ही तराना उन ने पाक की खातिर भी लिखा। अब इकबाल तो सारे जहां से अच्छा गीत आम भारतीय की जुबान से दूर नहीं कर सके। पर सोमवार को महाराष्टï्र की विधानसभा से वही बंटवारे की बू आई। एक तरफ मराठी प्रेम, तो दूसरी तरफ देश को बांटने का संदेश। राज ठाकरे के गुंडों ने फिर देश को शर्मसार करने वाला वाकया दिखाया। पहली बार एमएनएस के 13 एमएलए चुने गए। तो राज ठाकरे के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे। सो सड़कों की लड़ाई विधानसभा पहुंच गई। विवाद का मुद्दा बनी अपनी राष्टï्र भाषा। राज ठाकरे ने अपील कम, आदेश के अंदाज में सभी विधायकों को फरमान थमा दिया था। शपथ ग्रहण सिर्फ मराठी में ही करना होगा। पर समाजवादी पार्टी के अबू आजमी ने हिंदी में शपथ का खम ठोका। सोमवार को आजमी शपथ लेने को खड़े हुए। तो राज ठाकरे के पालतुओं ने माइक छीना। हाथापाई से लेकर लप्पड़-थप्पड़ और जूते-चप्पल भी चलाए। पर आजमी का कसूर क्या? सिर्फ यही ना, राष्टï्र भाषा में शपथ ली। इसमें मराठी का अपमान कहां से? क्या मराठी संस्कृति यह कहती, किसी से जबरन अपनी जुबान बुलवाओ। क्या इंसानियत कोई संस्कृति नहीं? अगर राज ठाकरे ने अपील की थी। अपील या अनुरोध तो किसी पर बंदिश नहीं। फिर राज के गुर्गों ने इतना हंगामा क्यों बरपाया? क्या मराठी प्रेम या महाराष्टï्र राज ठाकरे के बाप की जागीर हो गई? उत्तर भारतीयों की मुखालफत कर कभी सड़कों पर तांडव, तो कभी विधानसभा में। भले सोमवार को एमएनएस की गुंडागर्दी पर फौरी कार्रवाई हुई। मर्यादा तार-तार करने वाले एमएनएस के चार एमएलए चार साल के लिए सस्पेंड कर दिए। राम कदम, शिशिर शिंदे, वसंत गीते, रमेश वांजले अब विधानसभा परिसर में भी कदम नहीं रख पाएंगे। पर यह तो कार्रवाई का टोकन भर। राज के गुर्गे फिर सड़कों पर तांडव मचाएंगे। पर दूसरा पहलू, सस्पेंड हुए चार एमएलए के इलाके की जनता खामियाजा क्यों भुगते? बेहतर तो यही होता, एमएलए बर्खास्त कर दिए जाते। एमएनएस को बैन करने की सिफारिश चुनाव आयोग से होती। राज ठाकरे के चि_ïीनुमा फरमान और बयानों पर फौरी कार्रवाई होती। ताकि ऐसे राष्टï्र द्रोहियों को दुबारा सिर उठाने का मौका न मिले। पर अपनी राजनीति में ऐसा साहस कहां। सीएम अशोक चव्हाण ने सस्पेंशन का एलान किया। तो सजा की वजह सदन में हुआ व्यवहार बताया। हिंदी के अपमान पर सवाल टाल गए। यों राज ठाकरे के खिलाफ जांच का एलान जरूर किया। पर राज तो पहले भी गिरफ्तार और रिहा होते रहे। पुलिस हाथ जोड़े खड़ी रहती। राज हाथ में सिगरेट लिए बयान देते। अबके विधानसभा में एमएनएस के एमएलए ने हाथापाई की। तो बाहर उनके नेताओं की जुबान जहर उगल रही थी। वागीश सारस्वत से लेकर सरपोतदार तक अपनी हरकत को जायज ठहराते रहे। वागीश ने यहां तक कह दिया, आजमी जैसे लोग लातों के भूत हैं, बातों से नहीं मानते। लगे हाथ एमएनएस की धमकी भी, जिसको जिस भाषा में बात करनी हो, आकर कर ले। यानी न संविधान का लिहाज, न कानून का डर। अलबत्ता राज ठाकरे तो हर कदम संविधान को श्रद्धांजलि दे रहे। आजमी की हिंदी पर हंगामा बरपाया। पर कांग्रेसी बाबा सिद्दीकी ने अंग्रेजी में शपथ ली। तो कुछ नहीं बोले। यानी अंग्रेजी मंजूर, हिंदी नहीं। अब राष्ट्रभाषा के खिलाफ लोगों को भड़काना राजद्रोह नहीं, तो और क्या? पर राज के खिलाफ ठोस कार्रवाई में किस बात का इंतजार? हिंदी भाषियों के खिलाफ मुंबई की सड़कों पर जो दुनिया ने देखा। सोमवार को विधानसभा का वाकया देखा। फिर किस बात की देरी? आखिर 'राजÓ द्रोह पर अपनी राजनीति नपुंसक क्यों बनी बैठी? कांग्रेसी सत्यव्रत हों, या सिंघवी। लालू हों या शाहनवाज। सिर्फ कड़ी भत्र्सना तक ही सीमित रहे। लालू ने इतना जरूर चेताया, देश टूटेगा, तो महाराष्टï्र की वजह से। पर जब लालू कांग्रेस के साथ पावरफुल थे, तब कार्रवाई का दबाव क्यों नहीं बनाया। महाराष्टï्र और केंद्र में तब भी कांग्रेस, आज भी कांग्रेस सत्ता में। विपक्षी बीजेपी की हालत तो न तीन में, न तेरह में। आपसी लड़ाई में ही इस कदर उलझी। राज कौन, शायद मालूम नहीं होगा। सो उससे आग या खून खौलने की उम्मीद ही बेमानी। पर कांग्रेस तो आजादी की आन, बान, शान वाली पार्टी। फिर भी खून क्यों नहीं खौल रहा? क्या खून इतना ठंडा पड़ चुका। जो संविधान की श्रद्धांजलि देने वाले और मानवता को कुचलने वाले राज को रोक नहीं पा रही। राज के सिर्फ तेरह पालतुओं ने हंगामा मचाया। तो मुंबई में हाई अलर्ट करना पड़ा। अब भी अगर राजनीति ऐसी ही नपुंसक बनी रही। तो इकबाल की मानसिकता वाले राज जैसे लोग बढ़ते जाएंगे। बाकियों को इकबाल का लिखा गीत भुलाना होगा। --------- 09।11।2009