Friday, January 14, 2011

गण तो हुआ गौण, तंत्र दिखा रहा तेवर

सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो गया। पर दक्षिण हो या उत्तर, पूरब हो या पश्चिम। न मनमोहन सरकार महंगाई रोक पाई, न भ्रष्टाचार पर सीबीआई चार्जशीट दाखिल कर पाई। यों सूर्य ने दिशा बदली, तो शुक्रवार को प्रणव दा भी तेवर में दिखे। बोले- सरकार यह महंगाई बर्दाश्त नहीं करेगी। प्रणव उवाच सोलह आने सही। महंगाई सरकार कहां बर्दाश्त कर रही, बर्दाश्त तो बेचारा आम आदमी कर रहा। कांग्रेसी कृषि राज्यमंत्री के.वी. थॉमस ने तो बेशर्मी की मखमली चादर ओढ़ ली। बोले- कीमतों में बढ़ोतरी कोई बड़ी बात नहीं। पिछले साल आलू की कीमतें बढ़ गई थीं। इस साल प्याज की बढ़ गईं। सो इसमें हायतौबा क्यों? तो आइए कांग्रेसी के.वी. थॉमस के इस प्रवचन पर जय हो का उद्घोष करें। साथ ही गांठ बांध लें, महंगाई से निजात नहीं मिलने वाली। दुआ इतनी करिए- महंगाई जहां पहुंची, वहीं ठहर जाए। अब महंगाई पर सरकारी तेवर के नतीजे दिख गए। भ्रष्टाचार पर कांग्रेस अधिवेशन में सोनिया के पांच मंत्रों का कितना असर, शुक्रवार को वह भी दिख गया। कॉमनवेल्थ घोटाले में गिरफ्तार टी.एस. दरबारी को आखिरकार जमानत मिल गई। सीबीआई साठ दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई। सो सरकार घोटालेबाजों पर कार्रवाई में कितनी फुर्ती दिखा रही, बताने की जरूरत नहीं। किसी परिवार का बच्चा अपनी जिम्मेदारी से भटक जाता। तो घर वाले उलाहना देते- काम का न काज का, सौ मन अनाज का। अब आप अपनी सरकार को क्या कहेंगे, आप खुद ही तय करिए। यों राजनीति में कोई एक दल ऐसा हो, तो कुछ कहें। यहां तो सबके सब मायावी। अब आप यूपी के मायाराज को ही देख लो। जबसे कानून-व्यवस्था के मामले में नीतिश कुमार का कमाल और चुनावी असर देखा। तबसे माया भी ऐसे राजनीतिक संदेश देने की कवायद कर रहीं। सो बांदा रेप कांड में बीएसपी एमएलए पुरुषोत्तम नरेश द््िववेदी को फौरन सस्पेंड किया। पर गिरफ्तारी में काफी देर लगा दी। सो शुक्रवार को कोर्ट में पेशी के बाद एमएलए के तेवर में कोई कमी नहीं। नाम से पुरुषोत्तम, यानी सबसे उत्तम पुरुष। उसके बाद भी नाम में नरेश लगा लिया। पर काम ऐसा घिनौना, फिर भी शर्म नहीं। सो आरोपी एमएलए बोला- राजनीतिक साजिश के तहत मुजे फंसाया गया, मैं बदला लूंगा। अब कोई आरोपी एमएलए पुलिस की गिरफ्त में रहते हुए ऐसा तेवर दिखाए, तो यह सत्ता के वरदहस्त के बिना मुमकिन नहीं। यानी सत्ता का मतलब ही अब गरीब-मजलुमों को सताओ, खास लोगों पर मेहरबानी दिखाओ। तभी तो शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने काले धन के मामले पर सख्ती दिखाई। मनमोहन सरकार से पूछा- जिन भारतीयों के काले धन विदेशी बैंक में जमा, उन नामों का खुलासा क्यों नहीं कर रही? आखिर खुलासा करने में क्या परेशानी है? सचमुच काला धन जमा करने वाले लोगों पर कार्रवाई से परहेज कर रही सरकार। पैसे वालों के लिए देश का कानून मुट्ठी में, और आम आदमी के लिए कानून के हाथ लंबे हो जाते। सो शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ के आरोप के मामले में भी अहम टिप्पणी की। जुलाई 2010 में आंध्र-महाराष्ट्र के बार्डर पर आंध्र पुलिस ने माओवादी नेता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद और पत्रकार हेमचंद्र पांडे को मार गिराया था। जिसके बाद पुलिस ने मुठभेड़ की कहानी रची। पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिसिया दावे पर सवाल खड़ा कर दिया। पुलिस का दावा था- करीब 20 नक्सलियों के जंगल में घूमने की सूचना मिली। जिसके बाद मौके पर पहुंच पुलिस ने रुकने को कहा। तो सामने से फायरिंग शुरू हुई। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की, तो आजाद और पांडे की मौत हो गई। सो सवाल उठा- बीस में से सिर्फ यही दो लोग कैसे मारे गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी स्पष्ट हो गया, आजाद और पांडे को प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई। सो मुठभेड़ की न्यायिक जांच कराने की मांग हुई। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। तो पहली नजर में कोर्ट ने भी माना, कहीं कुछ गड़बड़ जरूर। सो केंद्र और आंध्र प्रदेश की सरकार को नोटिस जारी कर दिया। छह हफ्ते का वक्त देते हुए जस्टिस आफताब आलम और आर.एन. लोढ़ा की पीठ ने कहा- हमें उम्मीद है कि इसका जवाब मिलेगा, एक अच्छा और विश्वसनीय जवाब मिलेगा। पर बैंच ने एक एतिहासिक टिप्पणी की। कहा- हम गणराज्य को अपने ही बच्चों को मारने की अनुमति नहीं दे सकते। यानी कोर्ट ने लोकतंत्रीय गणतंत्र का हवाला दिया। पर आज की राजनीति की हकीकत यही- गण तो गौण हो गए, तंत्र की तानाशाही आम आदमी पर चल रही। अब सवाल दिग्विजय और उनकी कांग्रेस से। सिर्फ गुजरात की सोहराबुद्दीन मुठभेड़ और दिल्ली की बटला हाउस मुठभेड़ पर ही जुबान क्यों खुलती? क्या कांग्रेसी मानवाधिकार के चश्मे से सिर्फ वोट बैंक ही दिखता? अब सुप्रीम कोर्ट ने तल्खी दिखाई, तो शुक्रवार को विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने हमेशा की तरह टिप्पणी का स्वागत किया। बोले- सचमुच ऐसा नहीं होना चाहिए। मोइली को ऐसी टिप्पणियों में महारत। हर बार कह देंगे- ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए। पर करते-धरते कुछ नहीं। बांदा रेप कांड में पीडि़त लडक़ी को सुरक्षा दिए जाने और तेजी से इंसाफ की पैरवी की। पर कॉमनवेल्थ में सीबीआई की तेजी कहां गई? महंगाई पर प्रणव दा, चिदंबरम, मोंटेक जैसे धुरंधर प्रवचन दे रहे। पर अब जनता प्रवचन नहीं, जवाब मांग रही।
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14/01/2011