Tuesday, April 27, 2010

'तो जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बचानी है'

तो मंगलवार का दिन सरकार के लिए मंगलमय हो गया। सिख विरोधी दंगे में सीबीआई ने आखिर जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दिला ही दी। वाकई सीबीआई बड़े काम की चीज। तभी तो लोकसभा में विपक्ष का कट मोशन औंधे मुंह गिरा। महंगाई के मुंह में अब सेक्युलरिज्म घुस गया। सो विपक्षी एकता ढहनी ही थी। पर कट मोशन इतनी कटुता पैदा कर जाएगा, उम्मीद नहीं थी। लालू-मुलायम ने लोकसभा में ऐसा रंग बदला, गिरगिट भी देखकर शर्मसार हो जाए। आम बजट के दिन यही लालू-मुलायम सेक्युलरिज्म को किनारे रख आम आदमी की दुहाई दे रहे थे। संसद से सडक़ तक सरकार की सिट्टी-पिट्टी गुम करने की कसमें खाईं। पर अब लालू-मुलायम को याद आ गया, बीजेपी तो सांप्रदायिक पार्टी। सो लेफ्ट को चुनौती दी। बीजेपी संग वोट नहीं करो, तो सरकार के खिलाफ हम भी वोट करेंगे। पर लालू से कोई पूछे, संख्या कहां से जुटाएंगे। खुद लालू ने कटौती प्रस्ताव को रस्म अदायगी बताया। पर सेक्युलरिज्म का झंडा उठा कौन सी सरकार गिरा लेते? अब कोई पूछे, महंगाई में सांप्रदायिकता कहां से आ गई? क्या दाल, चावल, सब्जी, आटे में भी कुछ हिस्से सांप्रदायिक होने लगे? या फिर महंगाई किसी खास धर्म या जाति को ही परेशान कर रही? आखिर राजनीतिक दल किसे बेवकूफ बना रहे? मंगलवार को तेरह दलों ने महंगाई पर भारत बंद किया। संसद के दोनों सदनों में सुबह से एकजुटता दिखाई। पर जब महंगाई के खिलाफ सरकार को घेरने का निर्णायक वक्त आया, तो भाई लालू-मुलायम कट लिए। मुलायम ने वाकआउट से पहले किसान, गरीब, बेरोजगारों के लिए अनुदान की मांग रखी। पर ऐसा क्या हुआ, जो पहले ही मैदान छोड़ गए। क्या निजी तौर पर कोई अनुदान मिल गया? या कहीं कांग्रेस ने लालू-मुलायम को यह डायलॉग तो नहीं सुना दिया- मेरे पास सीबीआई है। अब जरा लालू की सुनिए। कहा- आईपीएल पर सरकार की विदाई तय थी। आईपीएल में गरीबों, बेकारों का पैसा लूटा गया। पर आडवाणी कह रहे, आईपीएल बहुत हो चुका। लालू का इतना कहना था कि बीजेपी भडक़ गई। पर लालू से पूछे, आईपीएल में किस गरीब अंबानी, विजय माल्या, श्रीनिवासन, राज कुंद्रा, प्रीति जिंटा, शाहरुख खान का पैसा लगा हुआ। आखिर लालू के लिए महंगाई से बड़ा मुद्दा आईपीएल कैसे हो गया। लगता है, अब लालू-मुलायम राजनीति की थाली के बैंगन हो गए। पर एक सीबीआई ने सिर्फ लालू-मुलायम मैनेज नहीं किए। अलबत्ता कट मोशन पर सरकार की साख बचाई। विपक्षी महाजोट की खटिया खड़ी कर दी। मायावती ने सरकार को समर्थन की पूरी कीमत वसूल ली। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई से केस कमजोर कराया। तो जाकर मंगलवार को लखनऊ में समर्थन का एलान किया। पर जरा लालू-मुलायम की तरह मायावती की माया देखिए। प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत यूपीए सरकार को आड़े हाथों लेते हुए की। केंद्र पर यूपी से भेदभाव का आरोप लगाया। महंगाई, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी जैसी तमाम समस्याओं की जड़ में मनमोहन सरकार की नीतियां बताईं। बोलीं- इन समस्याओं के मद्देनजर बसपा को सरकार के खिलाफ वोट करना चाहिए था। लेकिन हम नहीं चाहते कि सांप्रदायिक ताकतें सत्ता में आ जाएं। इसलिए कटौती प्रस्ताव पर यूपीए का समर्थन करेंगी। यानी सीधे शब्दों में मायावती की प्रेस कांफ्रेंस का निचोड़ बताएं। तो राजनीति का नया स्लोगन बनेगा- जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बचानी है। पर मायावती ने यह भी कहा- समर्थन का सीबीआई से कोई लेना-देना नहीं। अब कोई अनाड़ी ही माया पर भरोसा करेगा। याद है 2008 में जब मनमोहन विश्वास मत की तैयारी कर रहे थे। मायावती ने समर्थन नहीं दिया। तो लोकसभा में तबके बीएसपी नेता बृजेश पाठक ने आरोप लगाया था, सीबीआई का अधिकारी उनके घर आया था। दस्तावेज दिखाकर धमकी दे गया, समर्थन दो, नहीं तो शिकंजा कस देंगे। तबके स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने मामला होम मिनिस्ट्री को रैफर किया था। पर जब 2007 में राष्ट्रपति चुनाव हुए। तो ताज कॉरीडोर केस से समर्थन की सौदेबाजी हुई। सो बीजेपी ने सरकार पर सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का आरोप मढ़ा। तो सबसे मौजूं बात सीताराम येचुरी ने कही। उन ने कहा- कांग्रेस ने वर्षों तक देश पर कैसे राज किया, उस अनुभव को दिखा दिया। सरकार बचाने की जोड़-तोड़ में कांग्रेस विशेषज्ञ है। वाकई कट मोशन किसी और सरकार के खिलाफ होता। तो राजनीतिक माहौल अलग होता। पर कांग्रेस की राजनीति हमेशा धौंस की रही। सो अबके भी खम ठोककर कीमतें बढ़ाईं। विपक्ष ने लाख घोड़े दौड़ाए। पर रेस में दौड़ रहे कुछ घोड़ों पर बेखौफ बंदूक तान दी। अब कांग्रेस ने विपक्षी एकता का बंटाधार कर दिया। पर माया से नजदीकी अपनी ही फांस बन गई। आखिर राहुल बाबा यूपी में माया को दुश्मन नंबर एक बताते। माया के बुतों से लेकर मनरेगा आदि मुद्दों पर कांग्रेस ने घेराबंदी की। पर अब माया ने समर्थन दिया। तो कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन बोलीं- तबकी टिप्पणी तबके मुद्दे पर थी। वक्त के हिसाब से राजनीतिक जरूरतें बदलती कहीं। सो अब यूपी की राजनीतिक रणनीति का खुलासा वक्त आने पर करेंगे। पर कांग्रेस यह भूल रही, यूपीए-वन में कांग्रेस कमजोर थी। तो साढ़े चार साल बाद गिनती की नौबत आई। अबके कांग्रेस मजबूत, पर बहुमत की गिनती 11 वें महीने में ही करनी पड़ी। अभी तो सरकार के चार साल एक महीना बाकी।
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27/04/2010