Monday, January 24, 2011

कर्नाटक से कश्मीर तक बीजेपी की कशमकश

कर्नाटक से कश्मीर तक सियासत का पारा चढ़ गया। गवर्नर की फूंक से कर्नाटक में परेशान बीजेपी कश्मीर में झंडा फहराने की ठान चुकी। सो फिलहाल श्रीनगर से पहले दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मी। तिरंगे को लेकर टकराव तय हो चुका। पर तिरंगा विवाद से पहले बात कर्नाटक की। सोमवार को आडवाणी-सुषमा-जेतली संग कर्नाटक से बीजेपी के सभी सांसद राष्ट्रपति के दर पहुंचे। गवर्नर हंसराज भारद्वाज को वापस बुलाने की मांग की। अब तक की उनकी गवर्नरी का किस्सा बांच आडवाणी ने दलील दी- हंसराज भारद्वाज को वापस बुलाने से कर्नाटक, संविधान और लोकतंत्र की सेवा होगी। पर सवाल, क्या येदुरप्पा सरकार का भ्रष्टाचार संविधान और लोकतंत्र की सेवा? यों इसमें कोई शक नहीं, गवर्नर हंसराज भारद्वाज ने जेहादी गवर्नरी क्लब में शामिल होने की ठान रखी। एस.सी. जमीर, सिब्ते रजी, बूटा सिंह, रोमेश भंडारी, रामलाल जैसे गवर्नर इतिहास बना चुके। सो कर्नाटक का गवर्नर बनने के वक्त से ही हंसराज मिशन येदुरप्पा में जुटे हुए। पर अबके उन ने येदुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देकर कुछ गलत नहीं किया। आखिर देश की जनता में यह संदेश जाना चाहिए, सीएम हो या डीएम या पीएम, कानून में कोई विशेषाधिकार नहीं। अगर विशेषाधिकार की चादर ओढ़ सत्ता में बैठे नेता-नौकरशाह मुकदमे से बचने लगे, तो भ्रष्टाचार का खात्मा कैसे होगा? अब बीजेपी गवर्नर के संवैधानिक दायरे की दलील दे रही। गवर्नर को केबिनेट की सलाह पर काम करने को जरूरी बता रही। पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका- ऐसे मामलों में गवर्नर विवेकाधिकार से फैसला कर सकते हैं। जिसके लिए केबिनेट की सलाह मानना जरूरी नहीं। सो अब कोर्ट से येदुरप्पा को कितनी राहत मिलेगी, यह तो बाद की बात। पर क्या कोई गवर्नर चुनी हुई सरकार के मुखिया के खिलाफ इतना बड़ा फैसला जनता की नब्ज भांपे बिना ले सकता? आंध्र में गवर्नर रामलाल ने एन.टी.आर. की सरकार बर्खास्त की थी। तब क्या हुआ था, यह इतिहास किसी से छुपा नहीं। एन.टी.आर. की सरकार जनदबाव में दुबारा बहाल हुई। अगर कर्नाटक में येदुरप्पा सरकार की साख कमजोर न पड़ी होती। तो हंसराज ऐसा कदम उठाने से पहले सौ दफा सोचते। क्या बंगाल में तमाम प्रशासनिक विफलता के बाद भी गवर्नर वहां के सीएम के खिलाफ ऐसा कदम उठाने की सोच सकते? ममता बनर्जी यूपीए को समर्थन की एवज में कई बार राष्ट्रपति शासन की मांग कर चुकीं। पर केंद्र सरकार बयानबाजी के सिवा कुछ नहीं कर पा रही। सो असली वजह, बुद्धदेव की लोकप्रियता। पर कर्नाटक में क्या जनता सडक़ों पर उतरी? सचमुच येदुरप्पा सरकार राज्य में शासन के बजाए अपनों के झंझट से ही जूझ रही। सो जनता के बीच सहानुभूति खो चुके। राजनीति के घाघ गवर्नर हंसराज ने मौके की नजाकत भांप छक्का मार दिया। सो बीजेपी बाउंड्री से बाहर गई बाल को ढूंढ रही। कर्नाटक की किचकिच के बीच कश्मीर में तिरंगा फहराने का दांव भी उलटा पड़ रहा। कर्नाटक से जम्मू जा रही ट्रेन को रात के अंधेरे में ही अहमदनगर से वापस मोड़ दिया। जम्मू से लगी राज्य की सारी सीमाएं सील कर दी गईं। सोमवार को अरुण जेतली, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार जहाज से जम्मू पहुंचे। तो रन-वे पर ही रोक दिया गया। वापस जाने का दबाव डाला गया। तो तीनों नेता रन-वे पर ही धरना देकर बैठ गए। सो जब बात नहीं बनी, तो प्रशासन ने तीनों नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इधर दिल्ली में राजघाट पर रात नौ बजे राजनाथ सिंह भूख हड़ताल पर बैठ गए। यानी तिरंगे के लिए राजनीतिक के तरकश से तीर निकलने लगे। पीएम ने तिरंगे पर राजनीति न करने की सलाह दी। तो बीजेपी ने अपनी यात्रा को राष्ट्रभक्ति बताया। पर यह कैसी राष्ट्रभक्ति, जब अपने सहयोगी भी बीजेपी से सहमत नहीं? शरद यादव, नीतिश कुमार ने घाटी की संवेदनशीलता की दलील देते हुए यात्रा को रोकने की सलाह दी। सो सवाल बीजेपी से- अगर मनमोहन और उमर सरकार बीजेपी की कथित राष्ट्रभक्ति के खिलाफ, तो यादव-नीतिश को क्या कहेगी? क्या बीजेपी भूल गई, हाल ही में घाटी किस तरह साढ़े तीन महीने तक सुलग रही थी। अगर बीजेपी अलगाववादियों को मुंहतोड़ जवाब देना चाह रही। तो क्या झंडा फहराने से अलगाववाद दब जाएगा? लाल चौक पर 1992 में मुरली मनोहर जोशी, तो 2008 में बीजेपी के आर.पी. सिंह ने झंडा फहराया था। फिर अलगाववाद खत्म क्यों नहीं हुआ? अगर बीजेपी झंडा फहरा भी ले, तो क्या कश्मीर समस्या सुलझ जाएगी? कश्मीर की संवेदनशीलता और विवाद किसी से छुपे नहीं। सो उन्माद नहीं, राजनीतिक धैर्य से काम लेने की जरूरत। पर लाल चौक की यात्रा रोककर उमर अपना वोट बैंक साध रहे। तो बीजेपी को अपना उल्लू सीधा होता दिख रहा। पर बीजेपी यह भूल रही, आज का युवा राम-रहीम का विवाद नहीं चाहता। तिरंगे को लेकर अपने ही देश में हिंसा का वातावरण नहीं चाहता। सो कहीं ऐसा न हो, युवा वर्ग को जोडऩे की कवायद में बीजेपी की युवा एक्सप्रेस का ब्रेक डाउन हो जाए। अगर लाल चौक पर झंडा फहराना ही राष्ट्रभक्ति, तो जब कश्मीर में फारुक के साथ गठबंधन और केंद्र में छह साल के शासन के वक्त ऐसा क्यों नहीं किया। क्या विपक्ष में रहकर ही राष्ट्रभक्ति याद आती? राष्ट्रीय दल होने के नाते राज्य की संवेदनशीलता को समझना बीजेपी का फर्ज।
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24/01/2011