Tuesday, February 9, 2010

संघ भरोसे बीजेपी बनेगी देश की 'भाग्य विधाता'!

 संतोष कुमार
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         बीजेपी में हल्दी की रस्म पूरी हो गई। नितिन गडकरी अब मनोनीत नहीं, निर्वाचित अध्यक्ष हो गए। तेरह राज्यों और संसदीय दल को मिलाकर कुल 19 सैट में परचा दाखिल हुआ। बस तीन घंटे में परचा दाखिल से लेकर जांच और चुनाव तमाम हो गया। पहली दफा बीजेपी में चुने हुए अध्यक्ष को सर्टिफिकेट भी मिला। अब बाराती अगले हफ्ते इंदौर पहुंचेंगे। तो बाकायदा अनुमोदन भी होगा। पर इंदौर और बीजेपी का संयोग देखिए। सात साल पहले अप्रैल 2003 में यहीं वर्किंग कमेटी हुई। तब भी बीजेपी के खेवनहार युवा नेता ही थे। वेंकैया नायडू अध्यक्ष थे। फर्क सिर्फ इतना, तब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। केंद्र में वाजपेयी नीत एनडीए सरकार। अबके मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार, पर केंद्र में कांग्रेस नीत सरकार। तब बीजेपी सत्ता के नशे में चूर थी। सो पूरी वर्किंग कमेटी अपनी पीठ ठोकने में ही लगी रही। वेंकैया नायडू के तबके अध्यक्षीय भाषण में संगठन पर कम, कांग्रेस को ज्यादा निशाने पर लिया। वर्करों को सिर्फ तीन अगस्त 2002 के दिल्ली संकल्प की याद दिलाई। फिर नवंबर 2003 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ की जीत ने तो बीजेपी को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। फील गुड की ऐसी बयार चली, छह महीने पहले ही लोकसभा भंग करा समर में कूद पड़े। कांग्रेस को सौ से नीचे समेटने और बीजेपी अपने बूते तीन सौ सीट लाने का दंभ भरती दिखी। वेंकैया नायडू ने फील गुड में यहां तक कह दिया- 'तीन सौ सीट लाकर बीजेपी सरकार बनाएगी। पर एनडीए के सहयोगियों को भी साथ में रखेगी।'  ऐसा लगा, जैसे बीजेपी सहयोगियों पर अहसान करेगी। पर नतीजे क्या हुए, दोहराने से क्या फायदा। फिर महाराष्टï्र चुनाव की हार। वेंकैया का पत्नी की बीमारी के बहाने इस्तीफा। सन्यास का एलान और फिर आडवाणी का खेवनहार बनना। सच तो यह, वेंकैया वाजपेयी-आडवाणी का वरदहस्त पाकर भी जेतली-प्रमोद के आगे बौने ही दिखे। जेतली-प्रमोद ने हमउम्र वेंकैया को भाव नहीं दिया। उमा भारती तो तू-तड़ाक भी कर चुकीं। सो वेंकैया ने जब इस्तीफा दिया, तो संक्रमण काल में आडवाणी से ही खिवैया बनने की गुहार लगाई। आडवाणी को भी लगा, सब संभाल लेंगे। पर जिन्ना एपीसोड ने गुड़-गोबर कर दिया। फिर संघ की पसंद राजनाथ सिंह अध्यक्ष हुए। पर इन चार सालों में भी बीजेपी का खटराग जारी रहा। लोकसभा चुनाव की लगातार दूसरी हार ने तो मानो बीजेपी को हिला दिया। नेता सार्वजनिक बयानबाजी पर उतर आए। किसी ने काम और पुरस्कार में समानता की आवाज उठाई। तो किसी ने संघ से बीजेपी को टेक ओवर करने की गुहार। संघ में भी बदलाव हो चुका था। मोहन भागवत ने कमान संभाल ली। तो पहला एजंडा बीजेपी ही बनी। आखिरकार संघ ने अपनी पसंद गडकरी को अध्यक्ष बनवा ही लिया। यानी बीजेपी का रिमोट अब सीधे संघ के हाथ। अटल-आडवाणी युग में संघ की भूमिका तो थी। पर वीटो हमेशा इन दोनों दिग्गजों का हाथ ही रहा। अब बीजेपी नए युग में प्रवेश कर चुकी। तो अटल-आडवाणी जैसा कोई दिग्गज नहीं। सो दूसरी पीढ़ी के सूरमा संघ को रिमोट सौंप आए। अब सूरमाओं में जंग हुई। तो वीटो संघ के पास। सो सूरमाओं में सबसे जूनियर नितिन गडकरी फिलहाल वीटो पॉवर से लैस। अब गडकरी वाकई बीजेपी को कुछ नया देंगे या फिर संघ का बौद्धिक पिलाएंगे। यह तो इंदौर में ही मालूम पड़ेगा। यों बीजेपी में हार के बाद जब-जब बदलाव हुए। बैक टू बेसिक की परंपरा दिखी। चुनाव से पहले एजंडा अलग होता। नतीजे सही नहीं रहे। तो संघ को खुश करने के लिए वर्किंग कमेटी में हिंदुत्व से सराबोर भाषण। पर शायद गडकरी अबके कुछ संभलकर बोलेंगे। ताकि बिहार चुनाव में दांव उल्टा न पड़े। सो गडकरी ने औपचारिक अध्यक्ष चुने जाने पर रुख में थोड़ा बदलाव किया। अब तक राजनीति को सामाजिक-आर्थिक जाल में उलझाते रहे। पर मंगलवार को आने वाले वक्त में चुनावी जीत की बात की। बोले- 'चुनावी जीत का दौर आएगा। पार्टी को देश के भाग्य विधाता के तौर पर उभारूंगा।'  यों गडकरी हों या आडवाणी-राजनाथ। पुराने भाषणों को पलट कर देखिए। तो बीजेपी हमेशा जो कहती रही, उसका लब्बोलुवाब यही- 'नियति ने बीजेपी के हाथों देश का उद्धार लिखा है।' अब गडकरी भाग्य विधाता बनाने की बात कर रहे। पर इतिहास पलटकर देखिए। जब बीजेपी सत्ता में आई, तो महज छह साल में बीजेपी के नेता 'विधाता'  बन बैठे। और पार्टी को सींचने वाले वर्कर 'भाग्य' भरोसे रह गए। अब कोई पूछे, शिवसेना और शरद पवार पर नरम रहने वाले गडकरी देश का क्या भाग्य लिखेंगे? गडकरी अध्यक्ष चुने गए। पर बीजेपी हैड क्वार्टर में बामुश्किल डेढ़-एक सौ वर्कर ही नजर आए। यों पंजाब का भंगड़ा, चेन्नई से शहनाई, उत्तराखंड से पांडव नृत्य, तो हरियाणा से नगाड़े आए। पटाखे तो बीजेपी के स्टॉक में पहले से ही पड़े। यानी अबके परिस्थितियां बदल चुकीं। गडकरी के सामने चुनौतियों का अंबार। सो अब संघ के साधक गडकरी बीजेपी को कैसे भाग्य विधाता बनाएंगे, यह वक्त बताएगा। फिलहाल तो बीजेपी इंदौर में बारात सजने की तैयारी कर रही।
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09/02/2010