Thursday, July 29, 2010

संसद सरकार की बपौती, महंगाई महज विपक्ष की

सांच को आंच नहीं, सरकार को विपक्ष रास नहीं। सो गुरुवार को भी संसद के दोनों सदन बैठने से पहले ही उठ गए। कामरोको खारिज हुआ। तो विपक्ष ने अबके नियम 184 के तहत नोटिस थमाया। पर बात घुमा-फिरा कर वोटिंग तक ही पहुंचेगी, सो सरकार को गवारा नहीं। स्पीकर मीरा कुमार ने भी तत्काल कोई रूलिंग नहीं दी। संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल नियम 193 के पहले के नोटिस पर अड़ गए। दलील दी, सुदीप बंदोपाध्याय और सांसद प्रेमदास राय का नोटिस 27 जुलाई को ही आया। सो पहले उस पर विचार होना चाहिए। पर अब मुश्किल मीरा कुमार की। कामरोको प्रस्ताव खारिज किया, तो प्रणव दा की दलील ही दोहरा दी। अब नियम 184 की फांस, सो सरकार की दलील के बाद सुदीप बंदोपाध्याय और राय के नोटिस को प्राथमिकता दी। तो निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजिमी। अगर स्पीकर नियम 193 के तहत बहस की मंजूरी देती हैं। तो सवाल होगा- जिस दिन कामरोको खारिज किया, उस दिन ही रूलिंग क्यों नहीं दी? नियम 193 का नोटिस तो तब भी सामने था। पर मीरा ने रूलिंग में सिर्फ कामरोको खारिज किया, साथ ही विपक्ष को किसी और नियम में नोटिस देने को कहा। अब विपक्ष ने नियम 184 का पेच फंसाया। तो इम्तिहान मीरा का। गुरुवार को विपक्ष ने सीधे तो नहीं, इशारों में ही निष्पक्षता पर सवाल उठा दिया। सुषमा स्वराज ने मीरा के फैसले पर निराशा और दुख जताया। तो शरद यादव ने हल्के-फुल्के अंदाज में संदेश दे दिया। कहा- साल बीत गया, आपका प्रेम प्रणव बाबू की तरफ खूब झलकता है। पर हमारी ओर दया कभी नहीं होती। आपके कल के फैसले से देश की जनता को भी बहुत तकलीफ हुई। रात भर हम लोगों को नींद नहीं आई। सोचते रहे, अध्यक्ष से कैसे लड़ें। सो अब हम यह नोटिस लेकर आए। मुलायम सिंह ने भी अपने अंदाज में विरोध जता दिया। बोले- सदन नहीं चल पा रहा, तो सरकार जिम्मेदार है। आप क्यों सरकार की जिम्मेदारी ले रही हैं। विपक्ष को हमेशा स्पीकर से संरक्षण मिला। आप भी हमें संरक्षण दें। यानी कुल मिलाकर स्पीकर की रूलिंग विपक्ष का हाजमा बिगाड़ गई। पर स्पीकर से सीधे मोर्चा लिया, तो मुद्दा ही बदल जाएगा। सो शुक्रवार को फिर विपक्ष अपनी मांग दोहराएगा। यानी सब कुछ तय स्क्रिप्ट के मुताबिक होगा। शुक्रवार को भी संसद नहीं चलेगी। पर सोमवार को सब कुछ सामान्य नहीं, तो कम से कम महंगाई की चर्चा सरकारी हिसाब से निपट जाएगी। यों विपक्ष के तरकश में अभी कई ब्रह्मास्त्र। पर सरकार भी मुख्य विपक्षी दल बीजेपी को किनारे करने का फार्मूला बना चुकी। सो विपक्षी एकता का इम्तिहान अगले हफ्ते होगा। पर महंगाई को लेकर ठनी रार अब खत्म समझिए। गुरुवार को बीजेपी ने दस करोड़ हस्ताक्षरों वाला ज्ञापन महामहिम प्रतिभा पाटिल को सौंप दिया। राष्ट्रपति से मिलकर लौटे। तो महंगाई पर विपक्ष गांडीव समर्पण करता ही दिखा। आडवाणी ने बेहिचक कह दिया- हमने अपना फर्ज पूरा किया। सडक़ से संसद तक और सरकार से अब राष्ट्रपति तक अलख जगा दी। विपक्ष इससे अधिक कुछ नहीं कर सकता। सचमुच विपक्ष अब करे भी क्या। जब सरकार की जिद तानाशाही दिखने लगे। तो विपक्ष नहीं, सिर्फ जनता सबक सिखा सकती। पर मनमोहन सरकार की यह कैसी जिद। अगर सरकार को नंबर गेम का पूरा भरोसा, तो वोटिंग से डर क्यों? अगर सरकार ईमानदारी से दायित्व निभा रही। तो कामरोको या 184 के तहत बहस से परहेज क्यों? आखिर सत्तापक्ष इस जिद पर क्यों अड़ा हुआ कि वोटिंग वाले नियम के तहत बहस नहीं होने देंगे। क्या लोकतंत्र में विपक्ष की कोई हैसियत नहीं? विपक्ष ही लोकतंत्र की सही पहचान। पर विपक्ष को सत्ता के नशे में कुचलना हिटलर-मुसोलिनी से कम नहीं। हिटलर-मुसोलिनी तो विरोधियों को सीधे मरवा देते थे। पर संसद में सरकार का जो रवैया, वह भी कुछ कम नहीं। मनमोहन राज में महंगाई बढ़ी, यह खुद सोनिया-मनमोहन भी कई बार मान चुके। कई बार कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भी चिंता जताई। पर सरकार की दलील, विपक्ष के कामरोको या 184 के तहत चर्चा नहीं हो। अलबत्ता सुदीप बंदोपाध्याय और प्रेमदास राय के 193 वाले नोटिस पर चर्चा हो। क्या यह लोकतंत्र की निशानी? सुदीप और राय कोई विपक्षी दल के सांसद नहीं। एक तृणमूल के, तो दूसरे सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के। दोनों मनमोहन सरकार के खेवनहार। अब सत्तापक्ष आपस में ही विपक्ष की जगह ले ले, अंदरखाने गुणा-भाग कर बहस करने लगें। तो फिर विपक्ष के क्या मायने? क्या संसद सत्तापक्ष की बपौती, जो अपनी मर्जी चलाए? महंगाई पर बहुमत विपक्ष के साथ। फिर भी न स्पीकर और न सरकार बहस को राजी। जिस नियम के तहत बहस को राजी, उसके तहत तेरह बहस हो चुकीं। पर महंगाई तो कम नहीं हुई, आम आदमी की तेरहवीं जरूर हो रही। अब तृणमूल और एसडीएफ के नोटिस का क्या मतलब। यही ना, सरकार के सहयोगी भी कीमत बढ़ोतरी को जायज नहीं मान रहे। क्या यह सरकार की संवैधानिक विफलता नहीं? आखिर सरकार ऐसा व्यवहार क्यों कर रही, मानो महंगाई सिर्फ विपक्ष की और संसद सरकार की बपौती। लोकतंत्र को सचमुच लूटतंत्र बना दिया। कॉमन वेल्थ के नाम पर जो लूट मची, उसकी पोलपट्टी तो अक्टूबर में खुलेगी। पर कलई गुरुवार को सीवीसी ने खोल दी। सतर्कता आयोग ने बता दिया- कई करोड़ का घोटाला हुआ। अधिक कीमत पर अयोग्य कंपनियों को ठेके दिए गए। महंगाई बढ़ाने में कॉमन वेल्थ की भी अहम भूमिका। सो सरकार की सफलता आप खुद देख लें।
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29/07/2010