Thursday, November 18, 2010

तो कांग्रेसी पाप का घड़ा कब तक ढोएंगे मिस्टर क्लीन?

देश से गांव, गांव से देश की यात्रा यों तो महज हफ्ते-दस दिन की रही। पर इस बीच देश में बहुत कुछ घट गया। अभी भी अपना गांव राजनीतिक कोलाहलों से अनजान त्योहारी मौसम में ही रमा हुआ। गांव में कार्तिक स्नान का दौर चल रहा। पर देश का मौसम स्कैम, स्कैंडल और करप्शन के रंग में ऐसा डूबा हुआ, मानो घोटालों की सेल लगी हो। हर कोई भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाता दिख रहा। क्या डीएम, क्या सीएम और क्या पीएम, कोई अछूता नहीं। ‘आदर्शवादी’ अशोक चव्हाण को कांग्रेस ने सचमुच का आदर्श बना दिया। जिस दिन बराक ओबामा ‘इंडिया’ को स्थायी सीट की झप्पी दे ‘भारत’ में अपना माल खपाने का जुगाड़ कर गए। उसी शाम अशोक का ताज छीन शोक मनाने के लिए छोड़ दिया। कांग्रेस ने नजीर पेश करने की कोशिश की। फौरन राहुल गांधी का बयान आ गया- अब साफ छवि का व्यक्ति ही सीएम होगा। सो एक चव्हाण चूके, तो इतिहास नहीं, वर्तमान के पृथ्वीराज चव्हाण को राज मिल गया। पर भ्रष्टाचार की अम्मा कांग्रेस कब तक खैर मनाती। महाराष्ट्र में आदर्श सोसायटी घोटाला और कॉमनवेल्थ घोटाले का शोर अभी थमा भी नहीं। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की परतें तेजी से उधड़ीं। तो सबसे पहले घोटालों के राजा केबिनेट मंत्री ए. राजा की छुट्टी हुई। बकरीद से पहले सुप्रीम कोर्ट ने पीएम पर ऐसी तल्ख टिप्पणी की। कांग्रेस हलाल हुई, पर उफ तक नहीं कर पाई। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में देश को पौने दो लाख करोड़ का चूना लगा। पर तमाम घटनाक्रम में पीएम की चुप्पी को लेकर कोर्ट ने सवाल उठाए। तो राजनीतिक भूचाल आ गया। सो बीजेपी ही नहीं, समूचे विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। सभी घोटालों की जांच के लिए जेपीसी की मांग कर दी। पर कांग्रेस जेपीसी के लिए राजी नहीं। सो संसद के शीत सत्र को मानो (शीत) ठंड लग गई। लगातार छठे दिन भी संसद नहीं चली। गतिरोध खत्म करने की कोशिशें हो चुकीं। पर दोनों पक्षों ने रार ठान ली। सो गतिरोध जस का तस बरकरार। यों भले छठवें दिन भी संसद नहीं चली। पर हालात इतनी तेजी से बदले कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों के छक्के छूट रहे। नैतिकता और लोकतंत्र की दुहाई दे रही बीजेपी को अपनी करनी और कथनी परेशान कर रही। केंद्र में बीजेपी जेपीसी की मांग कर रही। तो कर्नाटक में बीजेपी की येदुरप्पा सरकार जमीन घोटाले में फंस गई। पहले तो येदुरप्पा ने दस्तावेज जारी कर सफाई दी। जमीन डिनोटीफाई करने का काम पहले के भी सीएम करते रहे। यानी उनने मान लिया, हमाम में सभी नंगे। फिर भी नितिन गडकरी ने येदुरप्पा को क्लीन चिट दे दी। पर नैतिकता के भूत ने बीजेपी की लंगोटी पकड़ ली। तो अब येदुरप्पा ने अपने परिजनों की ओर से कौडिय़ों के भाव खरीदी गई सरकारी जमीन लौटाने का एलान कर दिया। पर यही काम तो आदर्श घोटालेबाज अशोक चव्हाण ने भी किया था। तब बीजेपी क्यों नहीं मानी। यों कर्नाटक की सियासत में जितने भी ट्विस्ट आ रहे, सब बीजेपी की अंदरूनी खींचतान का ही नतीजा। पर बात दिल्ली के राजनीतिक धमाल की। सुप्रीम कोर्ट ने भले पीएमओ को नोटिस जारी नहीं किया। पर पीएम को जवाब दाखिल करने के लिए शनिवार तक का वक्त देना भी किसी नोटिस से कम नहीं। सो सरकार ही नहीं, समूची कांग्रेस की सिट्टी-पिट्टी गुम हो चुकी। बात सिर्फ ए. राजा तक सीमित रहती, तो कांग्रेस मोर्चा संभाल लेती। पर मनमोहन की चुप्पी को लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठा दिए। जो बात जनता के दिल में थी, कोर्ट ने जुबान से कह दी। सो मामला सिर्फ राजनीतिक नहीं, अब न्यायिक हो गया। पीएमओ की ओर से शनिवार को हलफनामा दाखिल होगा। जिसमें टू-जी स्पेक्ट्रम के बारे में पूरा ब्यौरा होगा। ताकि पीएम की चुप्पी पर सवाल न उठे। पर स्पेक्ट्रम घोटाले में कोर्ट की टिप्पणी के बाद मनमोहन पर राजनीतिक हमले भी तेज हो चुके। आडवाणी ने पीएम से सफाई मांगी। तो गुरुवार को सीताराम येचुरी ने भी कहा- जब इस्तीफा देने वाला मंत्री कह रहा, सब कुछ पीएम की जानकारी में हुआ। तो पीएम को संसद में सफाई देनी होगी। अब मनमोहन की छवि दांव पर। मिस्टर क्लीन कहलाने वाले मनमोहन आखिर क्या करें। राजनीति में छवि बनाने से बड़ी चुनौती उसे बरकरार रखने की। वाजपेयी ने छह दशक में जो छवि बनाई। बतौर पीएम गुजरात दंगे ने एक कलंक लगा दिया। वाजपेयी तो तभी नरेंद्र मोदी को हटाना चाहते थे। पर पार्टी की वजह से चुप रहना पड़ गया। यही हाल मनमोहन का, जिन ने पहले टर्म में न सही, पर दूसरे टर्म में डीएमके कोटे से टीआर बालू और ए. राजा को केबिनेट में शामिल न करने का खम ठोक दिया था। पर पार्टी नेतृत्व की वजह से समझौता करना पड़ा। तो बालू न सही, राजा की ताजपोशी हो गई। अब राजनीतिक मजबूरी की वजह से सत्ता में कई लुटेरे हिस्सेदार हो गए। सो मनमोहन चुप रहे। अब पार्टी के पाप का ठीकरा मनमोहन की पगड़ी पर फूट रहा। पर इस छवि के साथ क्या मनमोहन पीएम रहना पसंद करेंगे? अगर रहेंगे, तो हंसी के पात्र ही बनेंगे। हो न हो, मनमोहन ने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी हो। पर कांग्रेस की मजबूरी, अभी राहुल कुर्सी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं। गर मनमोहन हटे, तो फिर जबर्दस्त सफाई अभियान चलाना पड़ेगा। पर मनमोहन ने अंतरात्मा की मान कुर्सी छोड़ी, तो छवि सचमुच बनी रहेगी। पर फिलहाल अपने राजनीतिक गुरु नरसिंह राव की तरह मनमोहन भी मौनी बाबा बने हुए।
---------
18/11/2010