Thursday, October 21, 2010

मोदी ने दी चोट, तो कांग्रेस को भी दिखा ईवीएम में खोट

कहते हैं ना, सांच को आंच नहीं। कर्नाटक की राजनीति में इस बार भी सभी राजनीतिक दल नंगई पर उतर आए। पिछली विधानसभा में कांग्रेस-जेडीएस-बीजेपी ने कैसे बारी-बारी सत्ता का बीस-बीस महीने बलात्कार किया, किसी से छुपा नहीं। बीजेपी को तब बीस महीने का पूरा हक नहीं मिला। तो अबके सरकार बचाने में सत्ता के दुरुपयोग की कोई कसर नहीं छोड़ रही। सो खरीद-फरोख्त के खेल में कोई पीछे नहीं। कोई स्टिंग कर रहा, तो कोई विधायक तोड़ रहा। कुल मिलाकर लोकतंत्र की ऐसी-तैसी करने को सभी ओवरटाइम कर रहे। कभी अपना देश सोने की चिडिय़ा कहलाता था। तो अंग्रेज सारा सोना लूट ले गए। पर आजादी के बाद नेताओं ने राजनीति को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना दिया। सो अब कुर्सी बचानी हो या करप्शन करके बचना हो, सब कुछ बिकाऊ हो गया। चाहे जब एमपी-एमएलए खरीद लो, चाहे जब करप्शन का एक हिस्सा जांच करने वालों को सरका दो। सारा मामला रफा-दफा। गुरुवार को इसकी एक मिसाल भी मिल गई। कॉमनवेल्थ घोटाले में इनकम टेक्स डिपार्टमेंट कैसे लगातार छापे मार रहा। मानो, भ्रष्टाचार की कलई चंद दिनों में खोलकर रख देगा। पर झूठ के पांव नहीं होते। अब आईटी डिपार्टमेंट की हकीकत का एक और नमूना देखिए। करीब चार हजार करोड़ के घोटाले के मामले में झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा फिलहाल जेल की हवा खा रहे। पर कोड़ा के खिलाफ तथ्य जुटाने वाले अधिकारी उज्ज्वल चौधरी को जांच से हटाने पर डिपार्टमेंट इस कदर आमादा कि सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। राजनीतिक दबाव में जब चौधरी के ट्रांसफर की कोशिश हुई। तो झारखंड हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। पर आईटी डिपार्टमेंट ने अटार्नी जनरल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर चार हफ्ते का स्टे लगा दिया। यानी जांच अधिकारी उज्ज्वल की विदाई तय हो गई। अब अपनी व्यवस्था को क्या कहेंगे। कॉमनवेल्थ गेम्स में 70 हजार करोड़ रुपए लुटाए गए। जो देश के शिक्षा बजट से करीब छह गुना अधिक। अगर यह धन शिक्षा या किसी अन्य मद में खर्च होता, तो आने वाली पीढ़ी को कुछ कर दिखाने का बेहतर मौका मिलता। पर गेम्स से क्या मिला? कॉमनवेल्थ गेम्स के रिकार्ड न तो मान्य और न ही कोई अनोखा रिकार्ड बनाया। खिलाडिय़ों के ऊपर महज साढ़े तीन सौ करोड़ खर्च हुए। बाकी आयोजन करने वालों ने मिल-बांट लिए। अब देखो, पहले गेम्स के नाम पर भ्रष्टाचार। बेतहाशा धन खर्च किया गया। अब जांच के नाम पर धन खर्च होगा। पर मिलेगा क्या? कल को कोई बड़ा नेता फंस गया। तो जांच अधिकारी बदलने में कितना वक्त लगेगा? झारखंड में मधु कोड़ा को बचाने के लिए आखिर आईटी डिपार्टमेंट इतना सक्रिय क्यों? भ्रष्टाचार तो अब सत्ता की जोड़-तोड़ में संजीवनी बन चुका। माया-मुलायम-लालू के केस अपनी कहानी खुद बता रहे। सो नेता अब कम से कम समय में अपनी सात पीढ़ी को संपन्न बना लेना चाहता। तभी तो जनता की नब्ज भांपना भूल चुके नेता। देश का वोटर अब इतना परिपक्व हो चुका कि नेताओं को चुनाव बाद ही असली तस्वीर दिखती। जैसे ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती। वैसे ही लोकतंत्र में जनता की लाठी भी हो गई। सो हारने वाले नेता दिल से हार नहीं कबूल पा रहे। याद करिए, कैसे आडवाणी के मंसूबों पर पानी फिरा। तो बेजुबान, बेचारी ईवीएम मशीन को हार का जिम्मेदार ठहराने लगे। बीजेपी नेता ने तो तथ्यों का विश्लेषण कर किताब लिख डाली। पर अब यही रोग कांग्रेस को भी लग गया। गुजरात में मोदी का मैजिक कांग्रेस के लिए रहस्य बना। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद तो कांग्रेसी कहने लगे थे- मोदी को कैसे हराना है, यह मोदी से ही पूछो। पर अब पंचायत चुनाव में भी मोदी मैजिक चला। तो कांग्रेस ने मशीन पर ठीकरा फोड़ दिया। गुजरात प्रदेश कांग्रेस ने दिल्ली में गुहार लगाई। चुनाव आयोग को बाकायदा शिकायत सौंप दी। कांग्रेस प्रवक्ता मोहन प्रकाश बोले- मोदी मैजिक की पोल अब खुल गई। पर सवाल, जब ईवीएम में खोट, तो अपने नवीन चावला के जरिए ठीक क्यों नहीं करवाया? क्या सिर्फ गुजरात के ईवीएम में खोट? अगर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारने वाली पार्टी ईवीएम पर ऐसे ही ठीकरा फोडऩे लगे। तो लोकतंत्र का क्या होगा? अपने नेताओं में हार कबूलने का साहस क्यों नहीं? क्यों नहीं समझ पा रहे, अब देश के परिपक्व वोटरों को बरगलाना खालाजी का घर नहीं। जनता के निर्णय अब ऐसे होने लगे, बड़े-बड़े रणनीतिकार तो क्या, सैफोलॉजिस्ट भी सौंफ फांकते दिख रहे। पर नेता अपनी हार के लिए मशीन को जिम्मेदार ठहरा रहे। मानो, जनता कुछ भी नहीं। अब बिहार चुनाव का पहला दौर गुरुवार को निपट गया। तो शेखचिल्लियों ने खूब दावे किए। रामविलास पासवान ने तो 90 फीसदी जनता को लोजपा-राजद गठबंधन के साथ बताया। यों देर शाम चुनाव आयोग ने आंकड़े जारी किए। तो पता चला, कुल 54 फीसदी ही वोट पड़े। लालू-पासवान अबके नीतिश का तख्ता पलटने का दंभ भर रहे। पर ऐसा न हुआ, तो लालू-पासवान भी ईवीएम मशीन पर ठीकरा फोड़ें, तो कोई हैरानी नहीं। अब शायद यही परंपरा बनने वाली। हर राज्य में विपक्ष मशीन को ढाल बना हार की खीझ मिटाएगा।
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21/10/2010