Tuesday, November 23, 2010

तो ‘जेपीसी’ का मतलब, जनता ही पहचाने चोर

न येदुरप्पा गए, न जेपीसी बनी और न संसद में शांति हुई। पीएम से मुलाकात के बाद प्रणव दा ने विपक्ष को बता दिया, जेपीसी नहीं बनाएंगे। सो नौवें दिन भी संसद नहीं चली। अब कब तक संसद ऐसे ही ठप होने को बैठती रहेगी, यह सत्तापक्ष और विपक्ष को भी मालूम नहीं। भ्रष्टाचार के भंवर में जैसी कांग्रेस, वैसी बीजेपी भी उलझी हुई। सो गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी दलों के नेता जमकर चुटकियां ले रहे। इतिहास का जिक्र कर फरमा रहे- जेपीसी बनने से पहले बोफोर्स पर 45 दिन, हर्षद मेहता घोटाले पर 17 दिन और यूटीआई घोटाले पर 14 दिन संसद ठप रही थी। सो स्पेक्ट्रम मामले में अभी तो सिर्फ नौ दिन ही हुए। यानी इतिहास गवाह, ऐसे मामलों में सरकार को घुटने टेकने ही पड़े। पर अबके हमाम में बीजेपी-कांग्रेस एक साथ नंगी खड़ीं। अगर जेपीसी बनी और येदुरप्पा ने इस्तीफा नहीं दिया, तो भी संसद में गतिरोध बना रहेगा। यानी नैतिकता की सौदेबाजी में संसद सिसक रही। बीजेपी को जैसे ही सरकार ने जेपीसी न बनाने का इशारा किया। येदुरप्पा के इस्तीफे का मामला टाल दिया। बड़े जतन के बाद अरुण जेतली, वेंकैया ने येदुरप्पा को पार्टी का आदेश मानने के लिए राजी किया। पर मंगलवार तडक़े बीजेपी को असली नैतिकता का अहसास हुआ। बीजेपी के सूरमाओं की दलील, जब स्पेक्ट्रम मामले में जेपीसी नहीं बन रही। दो हफ्ते के हंगामे के बावजूद पीएम के कान पर जूं नहीं रेंग रही। तो बेमतलब येदुरप्पा का इस्तीफा लेकर कर्नाटक में चल रही अपनी सरकार को खतरे में क्यों डाले। येदुरप्पा ने बगावती तेवर दिखा ऐसे ही आलाकमान के माथे पर पसीने ला दिए। येदुरप्पा के समर्थन में नरेंद्र मोदी भी उतर आए। सो बीजेपी ने भविष्य के चक्कर में वर्तमान की परवाह नहीं की। कर्नाटक में अगले महीने ही पंचायत चुनाव होने। और तो और, येदुरप्पा का लिंगायत समाज पर ऐसा प्रभाव। अगर बीजेपी सख्ती से हटाने का फैसला करे, तो कर्नाटक में बीजेपी का बंटाधार तय। मंगलवार को पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में कई येदुरप्पाई सांसदों ने आडवाणी के सामने येदुरप्पा को न हटाने की मांग की। यानी कुल मिलाकर येदुरप्पा की ताकत और जेपीसी पर केंद्र के रवैये को देख बीजेपी ने फिलहाल येदुरप्पा को अभयदान दे दिया। पर कर्नाटक बीजेपी में इतनी कलह, यह शांति अधिक लंबी नहीं। अब कर्नाटक से बेफिक्र आडवाणी ने सांसदों को इशारा कर दिया। सरकार पहली बार इस कदर घिरी, सो जेपीसी की मांग नहीं छोडऩी। पर कांग्रेस भी कम नहीं। भ्रष्टाचार पर भले जूते और प्याज वाली कहावत चरितार्थ। फिर भी जेपीसी को राजी नहीं। कांग्रेस को डर, अगर जेपीसी ने पीएम को तलब कर लिया, तब क्या होगा। सचमुच कांग्रेस ईमानदार होती, तो जेपीसी से न डरती। वैसे भी इतना बड़ा घोटाला कोई राजा अकेले नहीं कर सकता। राजा की हालत तो वैसी ही, जैसी झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा की। खाया-पीया चार आना, गिलास तोड़ा बारह आना। कांग्रेस के एक वरिष्ठतम नामी-गिरामी नेता तो येदुरप्पा की कुर्सी न जाने से बेहद खफा दिखे। बोले- एक फ्लैट की वजह से हमारे सीएम की कुर्सी ले ली। और बीजेपी अपना सीएम नहीं हटा रही। अगर यही फार्मूला चला, तो हमारी तो पूरी केबिनेट ही खाली हो जाएगी। यानी भ्रष्टाचार के इस खेल में सब हिस्सेदार, यह मजाक में ही सही, पर कांग्रेसी नेता भी कबूल रहे। फिर भी शर्म है कि आती नहीं। सीवीसी के तौर पर थॉमस की नियुक्ति न्यायिक सवालों के घेरे में आई। तो कांग्रेस नेताओं से सुप्रीम कोर्ट जैसा ही सवाल हुआ। आखिर आरोपी को ही सीवीसी क्यों बनाया? तो कांग्रेस नेता की हद देखिए। बोले- अगर किसी डाक्टर को डायबिटीज हो जाए, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह दूसरे डायबिटिक मरीज का इलाज नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर जब कांग्रेस नेता ऐसे मजाक बनाएं। तो फिर नैतिकता की उम्मीद करना मूर्खता ही। पर कुल मिलाकर कांग्रेस ने मन बना लिया, जेपीसी नहीं मानेंगे। सुप्रीम कोर्ट में भी पीएमओ के हलफनामे पर सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई। बुधवार को कोई उम्मीद। पर कोर्ट की जिस टिप्पणी को लेकर पीएम सवालों के घेरे में आए। उस बैंच ने मीडिया को खरी-खोटी सुना दी। बैंच के मुताबिक उन ने पीएम का नाम नहीं लिया। पर मीडिया ने गलत ढंग से पेश कर इसे राजनीतिक रंग दे दिया। मंगलवार को कोर्ट में अटार्नी जनरल और याचिकाकर्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी के बीच दलीलों का दौर चला। तो अटार्नी जनरल ने साफ कर दिया, मुकदमा दायर करने के लिए मंजूरी की जरूरत ही नहीं थी। पर स्वामी ने दलील दी, मुकदमा दायर करने के बाद मंजूरी की बात आती। सो उन ने पहले ही यह मांग कर दी। अब कांग्रेस जेपीसी न मानने के पीछे संवैधानिक वजह गिना रही। ताकि लोगों में यह संदेश न जाए कि भ्रष्टाचार की जांच से कांग्रेस भाग रही। कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने दलील दी, संवैधानिक परंपरा के मुताबिक सीएजी रपट की जांच पीएसी ही करती। यानी जेपीसी और येदुरप्पा के चक्कर में संसद का तो राम ही राखा। वैसे भी बुधवार को सबकी नजर बिहार पर होगी। सो जेपीसी का गठन होगा या नहीं, यह तो बाद की बात। पर सत्तापक्ष और विपक्ष के इस नैतिक खेल में अब जनता ही जेपीसी। संसद चलाने को भले दोनों के बीच कोई सौदेबाजी हो जाए। पर असली जेपीसी तो तब होगी, जब जनता पहचानेगी चोर।
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23/11/2010