Friday, December 18, 2009

तो पद छोड़ भी आडवाणी बीजेपी के वटवृक्ष हो गए

इंडिया गेट से
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तो पद छोड़ भी आडवाणी

बीजेपी के वटवृक्ष हो गए
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 संतोष कुमार
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             तो एक बात साफ हो गई। बीजेपी की एक ही वाणी यानी आडवाणी। भले आडवाणी ने अपोजीशन लीडर की कुर्सी छोड़ दी। पर रिटायरमेंट लेने को राजी नहीं। अलबत्ता बीजेपी में महामहिम जैसी कुर्सी कब्जा ली। बीजेपी के संविधान में ऐसा बदलाव हुआ। आडवाणी अब दोनों सदनों में नेता मनोनीत कर सकते। जैसे कांग्रेस में सोनिया गांधी पॉवर सेंटर। वैसे ही अब आडवाणी। सो उन ने पार्लियामेंट्री पार्टी का चेयरमैन बनते ही सुषमा स्वराज को लोकसभा। तो अरुण जेतली को राज्यसभा में नेता मनोनीत कर दिया। बिसात तो पहले ही बिछ चुकी थी। सो शुक्रवार को देर शाम एनेक्सी में सांसद जमा हुए। तो मंच पर सिर्फ राजनाथ सिंह बैठे। आडवाणी की शान में राजनाथ ने खूब कसीदे पढ़े। फिर पार्टी संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखा। बीजेपी संविधान की धारा- 6 (ए) में दो बिंदु जोड़े गए। पहला- संसद में बीजेपी का एक चेयरमैन होगा। जिसका चुनाव दोनों सदनों के सांसद करेंगे। दूसरा- चेयरमैन दोनों सदनों में नेता, उपनेता और चीफ व्हिप्स को मनोनीत करेगा। सो राजनाथ ने प्रस्ताव रखा। तो वेंकैया, मुंडे ने अनुमोदन किया। फिर सभागार में बैठे सांसदों ने सहमति में हाथ खड़े किए। तो आडवाणी चुपचाप बैठे रहे। सो राजनाथ ने चुटकी ली। बोले- 'संशोधन प्रस्ताव पर आडवाणी जी ने हाथ नहीं उठाया। सो मैं यह मानता हूं आडवाणी को छोड़ यह प्रस्ताव सर्वसम्मत पारित हुआ।' फिर यशवंत सिन्हा ने नए पद के लिए आडवाणी का नाम प्रस्तावित किया। तो करतल ध्वनि के बीच आडवाणी निर्वाचित घोषित हुए। राजनाथ ने मंच पर लिवा मिठाई खिलाई। सो मंच पर आते ही आडवाणी ने भी राजनाथ की चुटकी का जवाब दिया। बोले- 'संशोधन से पहले राजनाथ सिंह ने जैसी भूमिका रखी। किसी और नाम का विकल्प ही नहीं छोड़ा। सो मेरे लिए इस प्रस्ताव का समर्थन करना कठिन हो गया।'  पर संशोधन हो या आडवाणी का प्रमोशन। सब प्रक्रिया का मामला। पर सबसे अहम बात, आडवाणी बीजेपी में और मजबूत होकर उभरे। भले संघ ने युवा हाथ में कमान सौंपने का फार्मूला दिया। पर आडवाणी ने बीरबल जैसी चतुराई दिखाई। लकीर में कोई छेड़छाड़ किए बिना एक बड़ी लकीर खींच दी। युवा हाथ में कमान भी सौंप दी। पर खुद मुखिया बन गए। दोनों सदनों में युवा नेताओं का मनोनयन आडवाणी ने किया। सो आडवाणी ने भी संघ को जतला दिया, बूढ़ी हड्डिïयों में अभी दम बाकी। आडवाणी की विदाई को लेकर अखबारों में खूब सुर्खियां छपीं। पर आडवाणी को एक सुर्खी नागवार गुजरी। लिखा था- 'रथयात्री आज रथ से उतरेंगे।'  सो आडवाणी संसदीय दल का मुखिया बनने के बाद बोले- 'यात्रा तो मेरे जीवन से जुड़ी हुई। सो अगर कोई पद छोडऩे का मतलब यह निकालता है कि आडवाणी सक्रियता छोड़ देंगे या संसद छोड़ देंगे, तो वह मुगालते में। मैं 14 साल की उम्र से रथयात्री बना। पर वक्त के साथ मकसद बदलता गया। सो मैं कभी रथयात्रा छोडऩे वाला नहीं। जीवन भर यात्रा चलेगी।'  यानी आडवाणी ने साफ कर दिया। पद छोड़ा है, सन्यास नहीं लिया। अब आडवाणी संसदीय दल के अध्यक्ष की जिम्मेदारी को राजनीतिक पारी का नया चैप्टर मान रहे। दिल में सुकूं संवैधानिक जिम्मेदारी से मुक्त होने का। पर संतोष, बीजेपी पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। अब जब डी-4 वाले धुरंधर नेता आडवाणी के मातहत। तो नितिन गडकरी कितनी चला पाएंगे। आडवाणी अब बीजेपी के वटवृक्ष हो गए। तभी तो राजनाथ सिंह रिटायर होकर कहीं जगह नहीं पा रहे। तो आडवाणी पद छोड़कर भी खुद को टायर्ड नहीं मान रहे। सो गडकरी हों या डी-4, आडवाणी की छत्रछाया में ही रहना होगा। शनिवार को गडकरी की ताजपोशी का भी एलान हो जाएगा। शुक्रवार को गडकरी अपनी शादी की 25 वीं सालगिरह को यादगार बना रहे थे। जब उन ने शनिवार को दिल्ली पहुंच चार्ज लेने का एलान कर दिया। यों राजनाथ शनिवार को एलान और संगठन चुनाव के बाद चार्ज सौंपने की सोच रहे थे। पर संघ ने साफ कर दिया। अब ना कोई मुहूर्त, ना नक्षत्र-ग्रह की टेढ़ी चाल। अलबत्ता जैसे वक्त का पहिया घूम रहा। बीजेपी में बदलाव होने दो। अब नितिन गडकरी की टीम का भी एलान जल्द होगा। पर एकतरफा संघ की नहीं, आडवाणी की खूब चलेगी। सो महासचिव के तौर पर वसुंधरा, धर्मेंद्र प्रधान, शाहनवाज के नाम शुक्रवार को ही उछलने लगे। यानी बदलाव की पूरी कवायद में जीत आडवाणी की ही दिख रही। तभी तो जेतली ने भी कहा- 'हमने अटल-आडवाणी से राजनीति सीखी। सो अभी भी मार्गदर्शन चाहिए।'  सुषमा स्वराज ने तो पूरा खुलासा कर दिया। बोलीं- 'जब मुझे नेता बनने का प्रस्ताव आया। तो मैंने आडवाणी की छत्रछाया की व्यवस्था की अपील की। अब संशोधन के बाद आडवाणी संसदीय दल के अध्यक्ष हो गए। सो सिर्फ पदों का परिवर्तन हुआ है, छाया वैसी ही चलेगी।'  अब आप इशारा खुद समझ लें। जीत किसकी हुई? संघ की या आडवाणी की? रही बात राजनाथ की। तो अब कोई पद नहीं बचा। सो संघ और बीजेपी के बीच पुल बनकर शायद अपनी अहमियत बनाए रखने की कोशिश करें।
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18/12/2009

वाजपेयी को हैप्पी बर्थ-डे कहेगी 'नई भाजपा'

इंडिया गेट से
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वाजपेयी को हैप्पी बर्थ-
डे कहेगी 'नई भाजपा'
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 संतोष कुमार
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              महीने भर में ही अपने सांसद उकता गए। सो सदन के कामकाज में दिल नहीं लग रहा। सरकार भी अपना कामकाज निबटा चुकी। सो सदन चले या न चले, कोई फर्क नहीं पड़ता। महंगाई पर बुधवार को लोकसभा ठप रही। लगे हाथ तेलंगाना का मुद्दा समूचे सदन पर भारी पड़ रहा। तेलुगुदेशम के चार एमपी हाथ में बैनर-पोस्टर लिए रोजाना वैल में घुस आते। तो उधर कुछेक कांग्रेसी भी उछलने लगते। यूनाइटेड आंध्र के लिए रोज यही ड्रामा चल रहा। बाकी कुछ ऐसे भी सांसद, जो बोडोलैंड की तख्ती उठाकर उछलने लगते। तो कोई मिथिलांचल, तो कोई विदर्भ, तो कोई पूर्वांचल का मुद्दा उठा शोर मचाते। यानी कुल चार-छह सांसद मिलकर सदन ठप करा रहे। गुरुवार को तो महिला आरक्षण बिल पर स्टेंडिंग कमेटी की रपट ने ही बखेड़ा खड़ा करा दिया। कमेटी ने गीता मुखर्जी कमेटी की रपट को ही जस का तस अमल में लाने की सिफारिश कर दी। यानी संसद और विधानसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया। पर स्टेंडिंग कमेटी की रपट से ही हंगामा हो गया। लोकसभा में रपट पेश हुई। तो मुलायमवादी वैल में घुस आए। पीछे-पीछे लालू भी आ गए। तो स्टेंडिंग कमेटी की रपट वापस लो, के नारे लगे। यों नेताओं की चुस्ती-फुर्ती का नमूना देखिए। स्टेंडिंग कमेटी की रपट में सिर्फ मुलायमवादियों ने ही असहमति का नोट दिया। बाकी लालू हों या शरद यादव। असहमति नोट देने की जहमत नहीं उठाई। अब अगर शुक्रवार को भी हालात ऐसे ही रहे। तो सरकार लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा लेगी। पर राज्यसभा शायद सोमवार को भी चले। यों बीजेपी की मुराद तो यही थी, संसद के दोनों सदन सोमवार तक चलें। ताकि सदन में क्लाइमेट चेंज पर बहस हो। सोमवार को ही पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग का भी 'क्लाइमेट' बदल जाए। अब राज्यसभा में तो सोमवार तक का कामकाज। पर लोकसभा में सरकार का रुख साफ नहीं। सो बीजेपी ऊहापोह में फंस गई थी। पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग कब करे। आडवाणी पर संघ का दबाव बढ़ चुका। सो आडवाणी अपनी विरासत सुषमा स्वराज को सौंपने को तैयार हो गए। बाकायदा तय हुआ, सोमवार को आडवाणी बतौर नेता विपक्ष आखिरी बार सांसदों को संबोधित करेंगे। पर सरकारी ऊहापोह था। सो सुषमा स्वराज ने कहा, अगर लोकसभा सोमवार तक नहीं चली। तो पार्लियामेंट्री पार्टी मीटिंग नहीं होगी। पर बीजेपी में कुछ अहम फैसले सुषमा के बयान के उलट होते। अब देखो, सुषमा ने एक-दो दफा नहीं, बार-बार कहा- 'आडवाणी पंद्रहवीं लोकसभा के लिए नेता विपक्ष चुने गए। सो पूरे पांच साल पद पर रहेंगे।' पर आडवाणी की विदाई की तारीख तय हो गई। सुषमा खुद आडवाणी की उत्तराधिकारी होने जा रहीं। सो आडवाणी की पैरवी में ऐसा कहा, तो कुछ गलत भी नहीं। थोड़ा और पीछे जाएं, तो जिन्ना एपीसोड याद करिए। आडवाणी ने पद से इस्तीफा दे दिया। तो बीजेपी ने तब मना लिया। पर संघ ने अध्यक्षी छोडऩे का अल्टीमेटम थमा दिया। फिर भी सुषमा स्वराज से बीजेपी हैड क्वार्टर में सवाल हुआ। तो सुषमा का जवाब क्या था, आप खुद देखिए। उन ने तमतमाते हुए कहा था- 'क्या आप लोगों को थाली पीट-पीटकर बताऊं कि आडवाणी पार्टी अध्यक्ष का अपना टर्म पूरा करेंगे।' पर हुआ क्या। सुषमा ने इधर बयान दिया, करीब दो-तीन महीने बाद ही चेन्नई वर्किंग कमेटी में आडवाणी ने अध्यक्षी छोडऩे की तारीख का एलान कर दिया। अब इन उदाहरणों का हवाला इसलिए दिया, ताकि कुछ बड़े मुद्दों पर सुषमा के बयान का मतलब आप खुद से भी निकाल सकें। अब यह तो तय हो गया, शुक्रवार को शाम साढ़े पांच बजे एनेक्सी में पार्लियामेंट्री पार्टी की अहम बैठक होगी। आडवाणी पद छोडऩे की पेशकश करेंगे। तो 'परंपरा' के मुताबिक आडवाणी की मनुहार होगी। फिर कुछ देर बाद पार्लियामेंट्री पार्टी से संविधान संशोधन की हामी भरवाई जाएगी। ताकि आडवाणी को संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया जा सके। जैसे कांग्रेस में सोनिया गांधी। फिर अगले दिन शनिवार को बीजेपी दफ्तर में संसदीय बोर्ड की मीटिंग होगी। तो शायद प्रस्ताव पारित कर आडवाणी के कसीदे पढ़े जाएं। फिर वहीं सुषमा स्वराज के नाम को हरी झंडी दी जाएगी। यों संसदीय बोर्ड की मीटिंग का मकसद नितिन गडकरी के नाम पर मुहर लगाना। पर पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग सोमवार के बजाए शुक्रवार को ही हो रही। सो आडवाणी-राजनाथ की विदाई और नितिन गडकरी की ताजपोशी का औपचारिक एलान शनिवार को होगा। यानी 25 दिसंबर तक बीजेपी का चेहरा बदल जाएगा। क्रिसमस और वाजपेयी के जन्मदिन से पहले बीजेपी सजधज कर तैयार होगी। ताकि वाजपेयी को हैप्पी बर्थ-डे कहने जाएगी नई बीजेपी। बीजेपी के एक बड़े नेता ने आडवाणी के कमरे में अनौपचारिक मीटिंग के बाद दो-टूक कहा- '25 दिसंबर तक बीजेपी में सभी बड़े बदलाव हो जाएंगे। फिर 25 दिसंबर से दो जनवरी तक छुट्टïी होगी। ताकि सब हल्के-फुल्के माहौल में नया साल मना सकें।'
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17/12/2009