Tuesday, April 5, 2011

तो अबके तय हो ही जाए, ‘लोक’ बड़ा या ‘तंत्र’

क्रिकेट के बाद करप्शन कांग्रेस को फिर कुरेदने लगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ अबके मुहिम राजनीतिक नहीं, छोटे गांधी के नाम से मशहूर अन्ना हजारे ने छेड़ी। अब तक विपक्ष या स्वामी रामदेव जैसे इक्के-दुक्के लोग आवाज उठाते। तो राजनीतिक बता दबा दी जाती। पर पहली दफा भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे जैसी गैर-विवादित छवि मैदान में। जिनकी अपनी कोई निजी संपत्ति नहीं। सो अन्ना की चोट सह पाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। दूसरी आजादी की लड़ाई का शंखनाद करते हुए अन्ना मंगलवार से आमरण अनशन पर बैठ गए। स्वामी अग्निवेश, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल जैसी कई सामाजिक हस्तियां भी अन्ना के साथ जुड़ गईं। मंगलवार को देश भर में अन्ना के अनशन का असर दिखा। देश भर में लोगों ने उपवास रखा, रैलियां निकालीं। सो सोमवार तक अकड़ रही कांग्रेस मंगलवार को सकपका गई। अन्ना से अनशन खत्म करने की अपील की। पर कांग्रेस से पहले मनमोहन और उनका महकमा एड़ी-चोटी का जोर लगा चुका। फिर भी अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम से पीछे नहीं हटे। सो अन्ना की मुहिम की राजनीतिक बढ़त लेने बीजेपी मैदान में कूद पड़ी। अन्ना से उपवास तोडऩे का अनुरोध तो किया। पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूकी। सो अब दबी जुबान में कांग्रेसी अन्ना के आंदोलन को भी संघ की साजिश समझाने में जुटे। खीझ में कांग्रेसी अंटशंट गालियां भी निकाल रहे। पर देश के लिए सर्वस्व लुटाने सडक़ों पर उतरे अन्ना हजारे को जन-भावना का अनुमान। सो बोले- सरकार मेरे अनशन से नहीं डरती। उसे डर है, तो बस यह कि पब्लिक भडक़ेगी। तो उसकी सरकार गिर जाएगी। इसलिए मुझे लगता है कि सरकार तीन-चार दिन में झुकेगी। और उसे जन-लोकपाल बिल की मांग माननी पड़ेगी। सचमुच गांधीवादी अन्ना से सरकार सहमी हुई। अन्ना अब तक सौ से अधिक बार आमरण अनशन कर चुके। छह मंत्री और चार सौ नौकरशाहों के खिलाफ मुहिम को अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लिया। मनमोहन ने सरकार जब नौकरशाही के दबाव में सूचना के हक कानून में संशोधन करने की सोची। तो मुखालफत की पहली आवाज अन्ना ने ही उठाई। अब अन्ना जन-लोकपाल बिल की मांग कर रहे। ताकि भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा हो। पर नेताओं-नौकरशाहों का दिल है कि भरेगा नहीं। सो सरकार अपनी मर्जी का लोकपाल बिल थोपना चाहती। पर अन्ना ने ठान लिया- अब जनता का बिल ही कानून बनेगा। जन-लोकपाल में स्वत: संज्ञान, सारी शक्तियों से लैस, तय समय में जांच और कार्रवाई दोषी को कड़ी सजा का प्रावधान। और 11 सदस्यीय संस्था की बात, जिनमें आधे सरकार के, तो आधे सीधे जनता के लोग हों। पर सरकारी लोकपाल में भ्रष्टाचार को झुनझुना बनाने की कोशिश। मसलन, शिकायतों पर पहले अनुमति लेनी होगी। कार्रवाई नहीं, परामर्श देने का अधिकार होगा। नौकरशाहों और जजों के खिलाफ जांच का प्रावधान नहीं। सजा भी महज छह से सात महीने की। घोटालों की रिकवरी की कोई व्यवस्था नहीं। सो सात मार्च की मुलाकात में ही पीएम ने अन्ना हजारे के सामने अपनी असमर्थता जता दी। पीएम ने बजट सत्र और पांच राज्यों के चुनाव के बाद दुबारा बात करने का भरोसा दिया। सो अन्ना को यह बात चुभ गई। बोले- जिस जनता ने उन्हें कुर्सी पर बिठाया, उसके लिए टाइम नहीं। हमारे बिल को इसलिए नहीं मान रहे, क्योंकि सबका खाना-पीना (रिश्वत) बंद हो जाएगा। पर सरकार की दलील- लोकपाल बिल पर विचार के लिए जीओएम बना हुआ। फिर भी आंदोलनकारियों ने संयुक्त समिति की मांग की। ताकि जन-लोकपाल बिल पर विचार हो। अन्ना की दलील- भ्रष्टाचार से लडऩे को देश में बहुतेरे कानून। पर सब हाथी के दिखाने वाले दांत। अब कुछ ऐसा हो, जो काट सके। पर सरकार के लिए मुश्किल- नौकरशाही को कैसे मनाए। भ्रष्टाचार का कोई भी किस्सा उठाकर देखो, नेता-नौकरशाह का गठजोड़ दिख जाएगा। टू-जी के राजा हों, या कॉमनवेल्थ के खिलाड़ी कलमाड़ी या कारगिल शहीद की विधवाओं के लिए बनी आदर्श इमारत की बलि चढ़े अशोक चव्हाण। हर खेल में नेता-नौकरशाह का गठजोड़ जन-जाहिर। अपने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने 1993 में भारतीय अफसरशाही को पॉलिश्ड कॉल गल्र्स की संज्ञा दी थी। नौकरशाह सचमुच किसी न किसी नेता को गॉड फादर बना इशारों पर काम करते। जिसका प्रतिफल वरिष्ठता लांघ मलाईदार पद के रूप में मिलता। सो 42 साल से लोकपाल बिल धूल फांक रहा। कभी किसी राजनीतिक दल ने लोकपाल बिल को अमल में लाने का साहस नहीं दिखाया। सो तबसे अब तक 13 सरकारें आईं-गईं, लोकपाल बिल भी लोकसभा में पेश होता और खत्म हो जाता। यानी नौकरशाही अपनी मनमर्जी पर अंकुश लगाना नहीं चाहती। अंग्रेजों ने भारत में जैसी नौकरशाही शुरू की, आज तक वही चलता आ रहा। सो अपने लोक-सेवक अभी भी कानून के संरक्षक या प्रतीक नहीं, अलबत्ता मालिक ही समझते। पर अन्ना हजारे ने उम्मीद की किरण जगा दी। बुजुर्ग नेतृत्व में युवा एक बार फिर सडक़ों पर उतर रहा। सो कहीं भ्रष्टाचार के महासागर में डुबकी लगा रही कांग्रेस की सरकार के लिए अन्ना का आंदोलन ताबूत में आखिरी कील साबित न हो।
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05/04/2011