Wednesday, April 21, 2010

गडकरी तो पास हुए, पर मनमोहन क्यों फेल?

महंगाई पर रैली की बात करें उससे पहले के.एल. वाल्मीकि को श्रद्धांजिल। बुधवार को लोकसभा से बीजेपी ने वॉकआउट किया। पर राज्यसभा वाल्मीकि को श्रद्धांजलि देकर उठ गई। पिछली सर्दी में ही निमोनिया के शिकार वाल्मीकि का मंगलवार आधी रात करीब साढ़े बारह बजे निधन हो गया। सचमुच जमीन से जुड़े सांसद थे वाल्मीकि। सांसद होकर भी कभी सांसदी वाला गुरूर नहीं दिखा। हमेशा अपने समाज की फिक्र करते दिखे। बीजेपी हो या कांग्रेस, अब कर्तव्य के प्रति इतने समर्पित नेता इक्के-दुक्के ही मिलते। नेता हवा-हवाई हो चुके। सो जनता का भरोसा टूट चुका। अब बुधवार का ही किस्सा लो। बीजेपी ने महंगाई के खिलाफ संघर्ष का शंखनाद किया। सचमुच विपक्ष की जिम्मेदारी का अहसास कराया। पर मौसम की मार बीजेपी की रैली पर भारी पड़ी। वर्करों ने तो जैसे-तैसे गर्मी झेल ली। पर खुद सेनापति नितिन गडकरी गश खा गए। वर्कर तो हमेशा इस मौसमी थपेड़ों के बीच ही जीता। पर मुश्किल होती है नेताओं को। अब कोई पूछे, जब मौसमी कहर बर्दाश्त नहीं। तो गर्मी में रैली बुलाई ही क्यों? इंदौर अधिवेशन में ही फैसला किया था। सो बजट सत्र के पहले चरण में ही हल्ला बोल देते। पर ऐसा नहीं, पहले माहौल बनाएंगे। ताकि वोट बैंक की राजनीति कर सकें। अब खुद पर मार पड़ी। तो जुबां पर वही शब्द, उफ ये गर्मी! बात पुरानी नहीं, महज पिछले साल के अप्रैल महीने की ही। गर्मी ने तब बीजेपी ही नहीं, तमाम राजनेताओं का हाल बेहाल कर रखा था। पर मजबूरी थी, लोकसभा चुनाव की खातिर नेता दर-दर की खाक छान रहे थे। पर जब तीसरे राउंड की वोटिंग 30 अप्रैल को निपटे। वोटिंग की रफ्तार बेहद धीमी दिखी। यों शाम तक वोटिंग पचास फीसदी तक पहुंच गया था। पर दिन में सूर्य की तपिश देख तबके पीएम इन वेटिंग उखड़ गए। आडवाणी गर्मी में चुनाव के ही खिलाफ हो गए। कहा था- ‘गर्मी के मौसम में वोटिंग परसेंटेज गिर जाता है। सो चुनाव फरवरी महीने में कराए जाने चाहिए।’ गर्मी की आड़ में उन ने उसी दिन लगे हाथ तीन सुझाव भी दे डाले। पहला- लोकसभा-विधानसभा के चुनाव इक_ïे फरवरी में हों। दूसरा- लोकसभा का पांच साल टर्म फिक्स हो। और तीसरा- वोटिंग को अनिवार्य बनाया जाए। यों गर्मी में चुनाव अवसरवादी राजनीति की ही देन। फील गुड की हवा में आडवाणी ने ही छह महीने पहले चुनाव करवाए थे। सो पांच साल बाद 2009 में भी वही मौसम आ गया। यों आम आदमी तो हर मौसम में अपनी दिनचर्या निपटाने को मजबूर होता। पर कभी-कभार दर्शन देने वाले नेता महीने-डेढ़ महीने में ही उकता जाते। अगर नेतागण हमेशा जनता का हालचाल जानने फील्ड में उतरें। तो शायद गर्मी के तीखेपन का कम अहसास हो। पर नेता अपनी कमी नहीं सुधारेंगे। अलबत्ता वोटिंग अनिवार्य करने की बात करेंगे। अब बीजेपी हो या कांग्रेस या कोई और। नेताओं की यही आदत, अपना दोष नहीं देखेंगे और मतदाताओं पर जोर-जबरदस्ती थोपने की कोशिश करेंगे। अगर नेता ईमानदारी से क्षेत्र की जनता का ध्यान रखने लगें। तो वोटरों में खुद उत्साह पैदा होगा। पर राजनीति अपनी विश्वसनीयता खो चुकी। अब गडकरी निकले तो थे सरकार को होश में लाने। पर खुद ही बेहोश हो गए। तो सवाल उठा, एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर जनता का क्या भला होगा? यों मनमोहन सरकार के छह साल में महंगाई ने माउंट एवरेस्ट से भी बड़ी चोटी बना ली। चाहकर भी मनमोहन चोटी नहीं चढ़ पा रहे। सो नितिन गडकरी ने विपक्ष की जिम्मेदारी का निर्वाह किया। अरसे बाद बीजेपी ने जनहित से जुड़े मुद्दे पर ऐसी ताकत दिखाई। सो गडकरी अपने पहले इम्तिहान में पास हो गए। संघ की छाप रैली में दिखी, जब पोस्टरों पर सिवा श्यामा प्रसाद मुखर्जी-दीनदयाल उपाध्याय के किसी नेता की तस्वीर नहीं। बीजेपी ने महंगाई के खिलाफ संघर्ष को सफल बनाने के लिए पूरी तैयारी की। सो महंगाई से परेशान जनता मौसमी मार को झेलते हुए दिल्ली पहुंच गई। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान और क्या महिलाएं सबके चेहरे पर मौसम से अधिक महंगाई की मार दिख रही थी। करीब एक लाख की संख्या में लोग जुटे। सो दिल्ली ठहर गई। पर सवाल, क्या महंगाई भी ठहरेगी? क्या महंगाई के खिलाफ गुस्से का इजहार करने दिल्ली पहुंचे लाखों लोगों का असर सरकार पर पड़ेगा? छह साल से कांग्रेस जिस तरह महंगाई से जूझ रही। उससे तो यह सवाल ही बेमानी लगता। तभी तो बुधवार को कांग्रेस या सरकार ने महंगाई पर चिंता तक नहीं जताई। यों पीएम ने आईपीएल में खूब रुचि दिखाई। तडक़े ही राजीव शुक्ल को बुला पूरा ब्यौरा लिया। तो राजीव शुक्ल ने बाहर आकर कह दिया, 26 अप्रैल की मीटिंग में कड़े फैसले लेंगे। यानी पीएम ने सीधे दखल दिया। तो ललित मोदी की विदाई तय हो गई। अब भले मोदी रार ठानें। पर यह बीसीसीआई को तय करना, कैसे होगी मोदी की विदाई। यानी पीएम के आईपीएल में कूदने के बाद मोदी के बचने का कोई रास्ता नहीं। पर कभी महंगाई की खातिर मनमोहन ऐसे क्यों नहीं कूदते? मोदी की विदाई में रुचि दिखाने वाले मनमोहन महंगाई को कब विदा करेंगे? आखिर ऐसी क्या वजह, जो एक मीटिंग में आईपीएल का भविष्य तय हो रहा। पर महंगाई से परेशान जनता के लिए सिर्फ मीटिंग-मीटिंग हो रही। अब देखना, कैसे थरूर की शानदार वापसी होगी। कहीं ऐसा तो नहीं, दूसरी चुनावी जीत ने सरकार को निरंकुश बना दिया?
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21/04/2010