Monday, March 29, 2010

ब्रांड एंबेसडर बनाम राजनीति का टुच्चा ब्रांड

बांद्रा-वर्ली सी लिंक आखिर कुरुक्षेत्र बन गया। कांग्रेस ने तमाम आलोचनाएं तो सह लीं। पर जब नरेंद्र मोदी ने मोर्चा खोल दिया, तो पेट में गुडग़ुड़ी होनी ही थी। मोदी ने शनिवार को एसआईटी के सामने करीब दस घंटे बिताए। तो इतवार को आईपीएल मैच का लुत्फ उठाया। फिर देर रात सरकारी वेबसाइट पर बयान जारी हो गया। अमिताभ पर सवाल उठाने वाले तालिबानी मानसिकता के। यानी मोदी ने कांग्रेस की सोच को तालिबानी करार दिया। सो अब तक अमिताभ का सैद्धांतिक विरोध कर रही कांग्रेस ने सीधे बच्चन पर हल्ला बोल दिया। पहले अंबिका सोनी ने मोदी को हताश बताया। तो शाम को कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी पूरी तैयारी के साथ पहुंचे। अब कांग्रेस को मालूम, मोदी के मुंह लगे, तो मुंहजोरी होनी तय। सो अमिताभ से सवाल पूछा। कहा- च्पहले ब्रांड एंबेसडर के नाते अमिताभ बताएं, गुजरात दंगे पर उनकी क्या राय। क्या वह गुजरात दंगे की निंदा करते हैं या मोदी और उनकी सरकार की पीठ थपथपाते हैं?ज् अब अमिताभ हों या कोई और, दंगे की निंदा सभी करेंगे। पर कांग्रेस ने बतौर एंबेसडर सवाल पूछा, ताकि वाया अमिताभ फिर मोदी को घेर सके। वरना दंगे पर राय पूछने वाले सवाल का अभी क्या औचित्य। कांग्रेस शायद भूल रही, अमिताभ गुजरात के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ब्रांड एंबेसडर बने। किसी दंगे को सही ठहराने के लिए नहीं। यों मोदी की वजह से कांग्रेस अमिताभ से भी खार खाए नहीं बैठी। दो दशक से भी ज्यादा हो चुके, बच्चन परिवार के प्रति कांग्रेस का नजरिया जगजाहिर। यों इस आधार पर ब्रांड एंबेसडर तय होने लगे। तो फिर किसी को भी कांग्रेस सरकार का ब्रांड एंबेसडर नहीं बनना चाहिए। अगर कांग्रेस राज में देश के कई हिस्सों में हुए दंगों को छोड़ दें। तो भी 1984 के सिख विरोधी दंगे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खुद कांग्रेस के वर्करों ने सिखों के नरसंहार में भूमिका निभाई। तब पीएम राजीव गांधी ने जो कहा था, कोई नहीं भुला सकता। उन ने कहा था- जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती ही है। कैसे सिख समुदाय को घरों से निकाल कर जिंदा जलाया जा रहा था। गले में जलते टायर डाले जा रहे थे। उस नरसंहार को 25 साल हो चुके। पर अब तक पीडि़तों को न्याय नहीं मिला। कांग्रेस ने माफी भी तब मांगी, जब देश का पीएम सिख समुदाय से बना। नानावती रपट के बाद जब जगदीश टाइटलर को केबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा। तो बहस के दौरान राज्यसभा में मनमोहन सिंह ने सिख समुदाय और देश से माफी मांगी। क्या प्रायश्चित के लिए कांग्रेस सिख पीएम का इंतजार कर रही थी? क्या 1984 के बाद और मनमोहन के पीएम बनने से पहले कांग्रेस का जमीर नहीं जागा? अब अगर कांग्रेस अमिताभ से सवाल पूछ रही, राजनीति में घसीटने की कोशिश कर रही। तो इतिहास के कुछ सवालों के जवाब कांग्रेस को भी देना चाहिए। ऑपरेशन ब्लू स्टार के वक्त कैप्टेन अमरेंद्र सिंह ने राज्यसभा की सांसदी और कांग्रेस क्यों छोड़ दी थी? प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह ने तो पद्मश्री भी लौटा दिया था। तो क्या यह मान लिया जाए, इन दोनों का विरोध आतंकवाद को समर्थन देने वाला था? या फिर इंदिरा गांधी का ऑपरेशन ब्लू स्टार गलत था? इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का नरसंहार किया गया। पर आज भी इंदिरा के हत्यारे सतवंत और बेअंत सिंह एसजीपीसी के म्यूजियम में शहीदों में शुमार। जिस भिंडरांवाला को देश विरोधी माना गया, खुद इंदिरा गांधी ने पंजाब विधानसभा चुनाव के वक्त मुकेरियां की एक जनसभा में मंच शेयर किया था। ऐसे सवाल तो कई होंगे, पर इतिहास से सबक लेकर आगे बढऩा चाहिए। ना कि इतिहास को ढाल बनाकर नाजायज को जायज ठहराया जाना चाहिए। अगर अमिताभ महाराष्ट्र सरकार के न्योते पर सी लिंक के दूसरे उद्घाटन समारोह में गए। तो इसमें मोदी कहां से आ गए। अगर मोदी के साथ अमिताभ के मंच शेयर करने पर कांग्रेस को एतराज। तो फिर इतवार को ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन ने भी मंच शेयर किया। अब मोदी के साथ खड़े अमिताभ कांग्रेस की नजर में गलत। तो क्या चीफ जस्टिस पर भी सवाल उठेंगे? अगर यही राजनीति का पैमाना, तो विरोध की जगह छुआछूत जगह लेगी। अपने संविधान में छुआछूत को दूर करने के लिए विशेष बंदोबस्त किए गए। पर राजनीति की छुआछूत कैसे दूर होगी? आखिर अमिताभ ने कुछ ऐसा नहीं किया, जो इतना बखेड़ा हो। पर बेवजह की राजनीति करना शायद कांग्रेस की फितरत हो गई। सो अब इसे टुच्चई की राजनीति कहें या राजनीति का टुच्चापन, आप ही तय करें। अब कांग्रेस अमिताभ के निजी व्यक्तित्व के सम्मान की दलील दे रही। तो सवाल, अमिताभ से दिक्कत थी, पर अर्थ ऑवर प्रोग्राम से अभिषेक कैसे गायब हो गए। अभिषेक तो गुजरात के ब्रांड एंबेसडर नहीं। फिर भी शीला सरकार ने प्रोग्राम से अभिषेक के पोस्टर-क्लिपिंग हटवा दिए। अब यह कैसी एलर्जी, पर्यावरण-वन मंत्री जयराम रमेश बाघ बचाओ कार्यक्रम में इसलिए नहीं गए कि अमिताभ वहां थे। महाराष्ट्र के सीएम अशोक चव्हाण तो इतना सहम गए, मराठी साहित्य सम्मेलन में अमिताभ का सामना न हो, सो एक दिन पहले ही शिरकत कर आए। अब दस जनपथ को खुश करने के लिए इसे कैसी राजनीति कहेंगे। पर नैतिकता की उम्मीद किससे। सोमवार को सोनिया गांधी फिर एनएसी की चेयर परसन हो गईं। साल 2006 में लाभ के पद विवाद में फंसीं। तो सांसदी और एनएसी छोड़ दी थी। अब चार साल बाद उसी कुर्सी पर विराजमान होने का क्या मतलब?
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29/03/2010