Friday, March 26, 2010

सी लिंक और बच्चन-गांधी परिवारों का झगड़ा

सभ्यता-संस्कृति वाले देश में अब सत्ता ने अपनी अलग सभ्यता-संस्कृति रचा-बसा ली। जहां इंसानियत कुछ नहीं, सिर्फ सत्ता का नशा। आखिर अमिताभ बच्चन ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया, जो कांग्रेसियों की आंत में दर्द पैदा कर रहा? महाराष्टï्र सरकार के मंत्री के न्योते पर अमिताभ बांद्रा-वर्ली सी लिंक के दूसरे उद्घाटन समारोह में गए। कैसे कांग्रेसी सीएम अशोक चव्हाण गर्मजोशी के साथ बिग बी से मिले, सबने देखा। पर जिन अमिताभ की मौजूदगी देश-दुनिया के किसी भी समारोह के लिए गौरव की बात। कांग्रेस को सदी के महानायक अमिताभ की मौजूदगी नागवार गुजर रही। अब कांग्रेसी दलील देखिए। चूंकि अमिताभ गुजरात सरकार के ब्रांड एंबेसडर, सो मोदी से गलबहियां हमें मंजूर नहीं। चलो माना, मोदी से कांग्रेस को गुरेज। पर अमिताभ तो अभी कुछ महीने पहले ब्रांड एंबेसडर बने। कांग्रेस का अमिताभ के प्रति नजरिया कोई हाल की उपज नहीं। अब अगर गुजरात के ब्रांड एंबेसडर होने को ही लें, तो इसमें क्या खराबी। क्या गुजरात भारत का हिस्सा नहीं? क्या मोदी चुने हुए मुख्यमंत्री नहीं? अगर गुजरात के पर्यटन को प्रमोट करने के लिए अमिताभ ब्रांड अंबेसडर बनें, तो क्या देश की अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं होगा? या फिर मनमोहन सरकार गुजरात के पर्यटन में अमिताभ की वजह से हुए फायदे का हिस्सा नहीं लेगी? क्या कांग्रेस को नहीं मालूम, अमिताभ गुजरात के पर्यटन के लिए ब्रांड बने। किसी नरेंद्र मोदी के नहीं। सो अगर कांग्रेस इस दलील पर अमिताभ का विरोध कर रही। तो यह मोदी नहीं, गुजरात और उसकी जनता का विरोध करना है। अगर मोदी से कांग्रेस को इतनी ही कड़वाहट, तो क्यों बर्दाश्त कर रही मोदी को। लोकतंत्र को बपौती मान चलाना सत्ताधारियों की आदत हो चुकी। तो क्यों नहीं मोदी को बर्खास्त कर देते। या नहीं तो देश के मानचित्र से गुजरात ही मिटा देते। ताकि न रहे बांस, न बजे बांसुरी। हां, अमिताभ ने तब अपनी छवि का बेजा इस्तेमाल किया। जब निठारी जैसे कांड के बावजूद मुलायम सिंह के चुनावी इश्तिहारों में नजर आए। कैसे अमिताभ टीवी पर कहते थे- ‘यूपी में है दम, क्योंकि जुर्म यहां हैं कम।’ पर अभी अमिताभ गुजरात टूरिज्म के ब्रांड एंबेसडर। जिसको लेकर कांग्रेस बखेड़ा खड़ा कर रही। पर सनद रहे, सो याद दिला दें। राजीव गांधी फाउंडेशन किसी संघी-भाजपाई की नहीं। खुद सोनिया गांधी इसकी सर्वेसर्वा। इसी फाउंडेशन ने 2005 में गुजरात को सर्वश्रेष्ठï राज्य का तमगा दिया था। तब भी मोदी ही सीएम थे। यों विवाद हुआ, फिर अखबार में गुजरात की तारीफ वाले इश्तिहार छप गए। तो राजीव गांधी फाउंडेशन ने अपनी ही संस्था राजीव गांधी समसामयिक अध्ययन संस्थान की रपट से पल्ला झाड़ लिया। फाउंडेशन की मातहत इसी संस्थान ने सर्वे कर रपट दी थी। पर राजनीति में विरोध अगर दुश्मनी में बदल जाए, तो फिर सच मायने में यह स्वस्थ लोकतंत्र का सूचक नहीं। पर बात गुजरात और मोदी की नहीं, अलबत्ता बात अमिताभ बनाम कांग्रेस की। अब सोनिया गांधी को अमिताभ की मौजूदगी खली या नहीं, यह तो वही जानें। पर राजा को खुश करने के लिए कांग्रेसियों ने बेवजह का बखेड़ा खड़ा कर दिया। गांधी-नेहरू परिवार और बच्चन परिवार के बीच रिश्तों की खटास कौन नहीं जानता। सो खुद को बड़ा वफादार साबित करने के चक्कर में कुछ कांग्रेसियों ने बयानबाजी शुरू कर दी। अशोक चह्वïाण की दलील, अमिताभ के आने के बारे में पता होता, तो समारोह में नहीं जाता। पर इश्तिहार तो पहले ही छप चुके थे। तो क्या एक सीएम को इतनी भी जानकारी नहीं मिल पाई? अशोक चव्हाण उन्हीं एसबी चव्हाण के बेटे, जो दो बार कांग्रेस छोडक़र गए थे। पर सवाल, देश के दो बड़े परिवारों के बीच ऐसी कटुता क्यों? सोनिया गांधी जब पहली बार 1968 में भारत आईं, तो इंदिरा गांधी नाराज थीं। सो सोनिया को लेकर राजीव दिल्ली के गुलमोहर पार्क स्थित ‘आशियाना’ में बच्चन के घर गए थे। फिर राजीव-सोनिया की कोर्ट मैरिज हुई, तो अमिताभ के मां-बाप हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन राजीव के मां-बाप बने थे। फिर बाद में तेजी बच्चन के प्रयास से इंदिरा-राजीव में समझौता हुआ। और दोनों परिवारों के रिश्तों में कड़वाहट 1980 के दशक में आई। राजीव के कहने पर अमिताभ इलाहाबाद से चुनाव लड़े। फिर बोफोर्स घोटाला सामने आया। तो अमिताभ के छोटे भाई अजिताभ और उनकी बीवी रमोला की जिनेवा स्थित कंपनी पर भी किक-बैक लेने का आरोप लगा। संसद में विपक्ष ने बच्चन पर हमला बोला। तो राजीव ने बचाव नहीं किया। फिर अमिताभ ने सांसदी छोड़ राजनीति को अलविदा कह दिया। उसके बाद अक्टूबर 2004 का प्रकरण। सपा की टिकट से जया बच्चन राज्यसभा में चली गईं। बाराबंकी में पहली अक्टूबर 2004 को जया ने कह दिया- ‘जब मेरे पति खराब दौर से गुजर रहे थे, तो छला गया।’ सो 11 अक्टूबर को अमेठी में राहुल गांधी ने जया के आरोप का झूठ का पुलंदा बता दिया। तब 15 अक्टूबर को वाराणसी में अमिताभ को कहना पड़ा- ‘दोनों परिवारों का संबंध तबसे, जब न जया-सोनिया थे, न राहुल-प्रियंका।’ आहत बच्चन ने कहा- ‘वो राजा हैं, हम रंक। राजा चाहे, तो रंक से संबंध रख सकता। पर कोई रंक यह कहने का साहस नहीं जुटा सकता कि हम राजा से संबंध रखना चाहते हैं।’ यों बात सोलह आने सही। पर देश के दो बड़े परिवारों का यह कैसा ‘बड़प्पन।’ समंदर के दोनों तरफ रहने वाले लोग सी लिंक की वजह से तो सीधे जुड़ गए। पर दो परिवारों की दूरियां और बढ़ गईं।
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