Tuesday, August 3, 2010

विपक्षी गठजोड़ ने आखिर उड़ा दिए कांग्रेस के तोते

तो विपक्ष ने अपने हिस्से का महंगाई पुराण बांच दिया। अब बुधवार को प्रणव मुखर्जी लोकसभा में जवाब देंगे। तो आप यह तय समझिए, गीता सार से अधिक कुछ नहीं होगा। सो आम आदमी व्यर्थ चिंता न करे। महंगाई तो कांग्रेस राज का अटल सत्य। अगर सत्य के मार्ग पर चलना सीख सको, तो सीख लो। वरना अपने हाल पर जीते रहो। मंगलवार को महंगाई की बहस में कांग्रेस ने यही निचोड़ थमाया। बहस की शुरुआत तो विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने की। उन ने सरकारी दलीलों को आंकड़ों से धोया। पर आखिर में जो कहा, सच की गुंजाइश कम दिखी। सुषमा बोलीं- अगर हम विशुद्ध राजनीति करें, तो चाहेंगे, यह सरकार गिर जाए। पर हम व्यापारी नहीं, प्रहरी हैं, सो सरकार भी जिम्मेदारी समझे। अब आप ही बताओ, कौन सा राजनीतिक दल ऐसा, जो वोट बैंक का व्यापार न करता हो? वोट बैंक का सवाल न होता, तो हफ्ते भर संसद ठप क्यों रहती। पर सत्तापक्ष की बेशर्मी देखिए, राहत का भरोसा देना तो दूर, लोगों को और डरा दिया। सत्तापक्ष से दिल्ली की सीएम शीला आंटी के सांसद बेटे संदीप दीक्षित ने कमान संभाली। तो आप सोच लो, क्या कहा होगा संदीप ने। सचमुच मां की जुबान से बेटा अलग नहीं दिखा। संदीप ने देश के हर व्यक्ति पर महंगाई के असर की बात मानी। पर राहत के बजाए कल्पना के जगत में घुस गए। कहा- अगर अभी एनडीए की सरकार होती, तो पेट्रोल की कीमत 84 रुपए लीटर बढ़ चुकी होती। हमने तो आम आदमी के हित को देखते हुए अनुपात में बढ़ाया। जिस एनडीए ने दो-ढाई रुपए लीटर की कैरोसिन नौ रुपए कर दी, वह हम पर उंगली कैसे उठा सकता। पर विपक्ष के सांसदों ने फौरन जवाब दे दिया। विपक्ष की बैंचों से एक सुर में आवाज आई- इसलिए हम लोग आज यहां आ गए। यानी सत्ता से बेदखल होकर विपक्ष में बैठना पड़ा। सुषमा स्वराज ने तो संदीप के सवाल से पहले ही अपने भाषण में यह कबूला था। कहा था- हमने कीमत बढ़ाने पर महज एक केलकर कमेटी की रपट मान ली, सो आज विपक्ष में बैठने को मजबूर। पर सत्तापक्ष के पास कोई जवाब नहीं। ना ही अपनी मजबूरी का इजहार कर सकते। सो संदीप ने सुनहरे भविष्य की तस्वीर दिखा आम आदमी को फिर डरा दिया। संदीप का लब्बोलुवाब यही रहा। अगर परिस्थितियों के मुताबिक तेल की कीमतें नहीं बढ़ाईं, तो देश का भविष्य दांव पर होगा। हम भी वोट की राजनीति करें, तो देश को दांव पर लगाकर 20-25 रुपए लीटर पेट्रोल कर सकते हैं। पर तीन-चार साल बाद जब अगली सरकार आएगी, वैसे हमारी ही आएगी, तब क्या होगा? आने वाले वक्त में कच्चे तेल की कीमत 200 डालर प्रति बैरल होगी। तब इकट्ठे दाम बढ़ाए गए, तो तबकी पीढ़ी हमें कोसेगी। सो देश की जनता को सरकार की ओर से ठोस संदेश देना होगा। ताकि देश कठोर कदमों के लिए खुद को तैयार कर सके। इतना ही नहीं, संदीप ने दलील दी- महंगाई बढ़ी, तो किसानों को अच्छी कीमत भी मिली। पर यह भी कह दिया- कृषि उत्पादकता नहीं बढ़ रही। सो पीएम-एफएम महेंद्र सिंह धोनी के जमाने में अजीत वाडेकर के जमाने का विशेषज्ञ शामिल न करें। यानी संदीप ने अपनी भद्द खुद पिटवा ली। जब किसानों को अच्छी कीमत कांग्रेस राज में मिल रही, तो कृषि उत्पादकता क्यों नहीं बढ़ रही? पर मुलायम सिंह ने पूरी कलई खोल दी। बोले- अरहर दाल को पूरी प्रोसेसिंग के बाद बाजार में लाया जाए, तो तीस रुपए किलो कीमत बनती। फिर सौ रुपए तक कैसे पहुंची। यानी सरकार ने एक तरफ किसानों को लूटा, तो दूसरी तरफ आम आदमी को मारा। फायदा पहुंचा उन खास लोगों को, जो चुनावी चंदा देते। पर महंगाई के फन से नीली पड़ चुकी कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं। सो विपक्ष के जहर बुझे तीरों से लहूलुहान होकर भी उफ तक नहीं कर पाई। या यों कहें, समूची बहस में कांग्रेसी बैंचों पर मुर्दनी छाई रही, तो गलत नहीं होगा। तभी तो कांग्रेस ने इतने गंभीर मुद्दे पर कोई हैवीवेट नेता नहीं उतारा। अलबत्ता संदीप दीक्षित को उतारा, जो सुषमा-मुलायम-लालू-शरद के आगे बौने दिखे। पर बेचारी कांग्रेस करे भी क्या। विपक्षी एकता हर मुद्दे पर ऐसे घेर रही, कांग्रेस को कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा। सचमुच कांग्रेस ने ठसक और हठधर्मिता की जो नीति अपनाई। मुलायम-लालू जैसे दिग्गजों को भी बीजेपी के साथ खड़ा कर दिया। लालू पहले ही कांग्रेस विरोधी साझा मंच की पैरवी कर चुके। तो अबके मुलायम ने इशारा किया। महंगाई पर बहस में मुलायम ने सीबीआई के इस्तेमाल और स्विस बैंक में जमा काले धन का मुद्दा उठाया। जिस मुद्दे को लेकर बीजेपी संसद से सडक़ तक उतर चुकी। मुलायम का दर्द आखिर छलक ही पड़ा। जब बोले- सीबीआई के नाम पर कब तक दबाओगे। कब तक सरकार चलाना चाहते हो। यह कैसी सरकार, मैं और लालू फंसेंगे सीबीआई में, बाकी स्विस बैंक में जमा करने वाले मौज करेंगे। यह देश नहीं चल रहा, सिर्फ सरकार चल रही। अब मुलायम-लालू का दर्द का मतलब समझ लो। लालू-मुलायम ने तो बीजेपी को कह दिया- आप सांप्रदायिकता छोड़ दीजिए। यानी विपक्ष की लामबंदी सरकार का सिरदर्द बन चुकी। कॉमनवैल्थ का भ्रष्टाचार गले की नई फांस। मुलायम ने तो खुलासा कर दिया- अपने चौदह स्टेडियम को दुरुस्त करने में चालीस हजार करोड़ खर्च हो गए। पर इतने में चीन ने चौदह नए स्टेडियम खड़े कर ओलंपिक करा लिए। यानी सीबीआई, ब्लैकमनी, कॉमनवैल्थ और बाकी तमाम मुद्दे, जहां विपक्षी एकता सरकार के कोढ़ में खाज। ---------
03/08/2010