Monday, April 5, 2010

बैठक नहीं, बिल पर 'बैठने' की तैयारी कहिए

बजट सत्र पार्ट-टू के प्रोमो दिखने लगे। अब संसद के सुनहरे पर्दे पर दिखने वाली फिल्म पार्ट-वन का सिक्वल होगी। या कुछ नयापन होगा, यह तो वक्त आने पर ही मालूम पड़ेगा। पर फिल्म के प्रसारण की तैयारी शुरु हो गई। महिला बिल पर सोमवार को सर्वदलीय बैठक हुई। तो नतीजा वही ढाक के तीन पात रहे। यादवी तिकड़ी टस से मस नहीं हुई। अलबत्ता सरकार की सहयोगी ममता बनर्जी ने छौंका लगा दिया। यादवों का हौंसला बढ़ाने को खड़ी हो गईं। यों ममता बिल के साथ, पर दिल से नहीं। महिला आरक्षण के खिलाफ नहीं, पर पश्चिम बंगाल के चुनाव की तैयारी में लगीं। सो उनने बिल में अल्पसंख्यक आरक्षण का तडक़ा लगा दिया। प्रणव मुखर्जी की रहनुमाई में संसद भवन में बैठक हुई। सरकार की ओर से प्रणव, चिदंबरम, मोईली, पवन बंसल, पृथ्वीराज चव्हाण, ममता, पवार, नारायणसामी मौजूद थे। पर ममता ने छौंक लगाई, तो पवार मुस्कराते दिखे। इसे कहते हैं- घर को आग लगी घर के ही चिराग से। बैठक बुलाई विरोधियों को मनाने के लिए। पर अपने ही विरोधी के पाले में जा बैठे। सो अब बीजेपी ने भी राजनीतिक पेच फंसा दिया। यादवी तिकड़ी ने कोटा के भीतर पिछड़ी-अल्पसंख्यक महिला का कोटा हुए बिना बिल पर राजी नहीं। तो अब बीजेपी कह रही, कोटा के भीतर कोटा मंजूर नहीं। सुषमा स्वराज ने तो बाकायदा गिल फार्मूले का राग अलाप दिया। यानी राजनीतिक दल खुद ही 33 फीसदी महिलाओं को टिकट दें। पर आधा सफर तय करने के बाद कोई वापस घर लौटे और फिर मंजिल तय करने की बात कहे, तो उसे आप क्या कहेंगे? यों सुषमा का इसमें कोई कसूर नहीं। अलबत्ता महिला बिल पर बीजेपी खुद से दो-चार हो रही। बीजेपी में कई ऐसे नेता, जो मौजूदा बिल के खिलाफ झंडा उठाए खड़े। याद है ना, जब राज्यसभा में बिल पास हुआ था। तब बीजेपी ने अंदरुनी बवाल थामने को आडवाणी के घर मीटिंग भी बुलाई थी। पर मीटिंग में सुषमा-मेनका की तीखी झड़प हो गई। कई सांसदों ने अपने नए नेतृत्व पर सवाल भी उठा दिए। सो बीजेपी अब हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही। तभी तो सुषमा ने सोमवार को नया पेच फंसाया। आम राय के पक्ष में, पर कोटा के भीतर कोटा नामंजूर। अब आप ही देखो, न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। विरोधी कोटा की जिद छोडऩे का राजी नहीं। तो बीजेपी कोटा के खिलाफ मुखर हो उठी। इतना ही नहीं, बीजेपी मार्शल इस्तेमाल के भी खिलाफ। अब सरकार की मुश्किल तो बढनी तय। अव्वल तो मार्शल बुलाकर बिल पास कराने की हिम्मत नहीं। अगर किया भी, तो अबके बीजेपी साथ नहीं देगी। अगर हंगामे के बीच वोटिंग कराया, तो हिंसक हंगामे से कोई इनकार नहीं कर सकता। राज्यसभा में तो महज सात हंगामाई थे। जिनने चेयरमैन की माइक तोड़ दी। फाइलों को गेंद की तरह उछाला। कमाल अख्तर ने तो कांच का गिलास सदन में तोड़ नस काटने तक की कोशिश की थी। सो सात बवालियों को सदन से बाहर फिंकवाने के लिए सरकार ने करीब 70 मार्शल सदन में बुलाए। पर लोकसभा में तस्वीर दूसरी। मुलायम, लालू, शरद और माया के ही सिपहसलारों को मिलाकर करीब 70 सांसद। ममता के 19 सांसद अभी छोड़ दें। तो क्या 70 सांसदों को सदन से बाहर निकलवाने के लिए 700 मार्शल बुलाए जाएंगे? अगर बुलाया भी तो, लोकसभा में इतनी जगह कहां होगी? क्या मार्शलों के लिए भी अलग से लोकसभा बनेगी? पर कांग्रेस इतनी हिमाकत दिखा पाएगी, यह संभव नहीं दिखता। अगर मार्शल नहीं बुलाया, तो मौजूदा बिल का पास होना संभव नहीं दिखता। यह बात कांग्रेस भी बाखूबी समझ रही, बीजेपी भी। सो फिलहाल बैठक-बैठक खेल रहे हैं राजनेता। कांग्रेस भी माहौल बना रही। विधि मंत्री वीरप्पा मोईली कई दफा कह चुके। बिना किसी बदलाव के दूसरे पार्ट में लोकसभा में बिल लाएंगे। अब कोई पूछे. जब कोई बदलाव नहीं करना। सरकार के पास कोई नया आईडिया नहीं। तो फिर काहे की सर्वदलीय बैठक बुलाई? अब फिर बैठक बुलाने का एलान। तो क्या बिल विरोधियों का स्टैंड सरकार या कांग्रेस को मालूम नहीं। आखिर जो स्टैंड 14 साल में नहीं बदला। वह क्या एक-दो बैठकों में बदल जाएगा? सो सोमवार की बैठक भी फेल हुई। पर यों कहिए कि कांग्रेस हो या बीजेपी या लेफ्ट या बाकी बिल विरोधी, सबकी इच्छा पूरी हो रही। सभी महिला आरक्षण के पक्ष में। पर फिर वही कहावत- पंचों की राय सिर माथे, पर पतनाला वहीं लगेगा। यादवी तिकड़ी को कोटा में कोटा चाहिए। अब बीजेपी को कोटा नहीं चाहिए। तो आखिर रास्ता क्या निकले? अगर सरकार कोटा में कोटा को राजी भी हो जाए। तो बीजेपी पेच फंसाएगी। या विरोधी किसी दूसरे फार्मूले पर राजी हो गए। तो कांग्रेस अपना मजबूत इरादा दिखाने को फिर पुराने बिल का ही राग अलाप देगी। यानी महिला बिल नहीं, सहुलियत की राजनीति सबका फार्मूला। सो बजट सत्र के दूसरे हिस्से में कांग्रेस भी राजनीति करेगी। महिला बिल एजंडे में शामिल होगा, उस दिन हाई-वोल्टेज ड्रामा और आखिर में ठंडे बस्ते का मुंह खुल जाएगा। पर बिल कब एजंडे में आएगा? अपना मानना तो यही, जिस दिन 21 अप्रैल को बीजेपी महंगाई के खिलाफ दस लाख लोगों के साथ संसद के घेराव का खम ठोक रही। हो न हो, लोकसभा के एजंडे में उस दिन महिला बिल शामिल हो जाए। ताकि अपने टीवी चैनलों का एके-47 संसद में ही रहे, बाहर न जाए। सो कुल मिलाकर बैठक-बैठक खेल बिल पर बैठने की तैयारी में हैं अपने नेतागण। --------
05/04/2010