Monday, November 23, 2009

इंडिया गेट से
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मूर्छित बीजेपी को संजीवनी
या अब काठ की हांडी नहीं?
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 संतोष कुमार
-----------तीसरे दिन भी संसद नहीं चली। लिब्राहन रपट की लीक चेन पुलिंग साबित हुई। सो अब आम आदमी के मुद्दे हाईजैक हो गए। मूर्छित बीजेपी को तो मानो संजीवनी मिल गई। रपट लीक में अटल का नाम ले सरकार ने फंदा गले में डाल लिया। सो सोमवार को संसद के दोनों सदन तो ठप हुए ही। राजनीति की आब-ओ-हवा बदल दी। लिब्राहन रपट 30 जून से ही सरकार के पास। पर अब संसद में पेश करने से पहले सिलेक्टिव लीक हो गई। लीक रपट में अटल, आडवाणी, जोशी दोषी बताए गए। सो संसद में हंगामा बरपना ही था। होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम को फौरन भरोसा और सफाई देनी पड़ी। अब इसी सत्र में एटीआर के साथ रपट पेश करेंगे। बोले- 'लिब्राहन आयोग की रपट की सिर्फ एक प्रति। जो होम मिनिस्ट्री की सेफ कस्टडी में। हमारी तरफ से मीडिया में रिपोर्ट लीक नहीं हुई।Ó चिदंबरम ने रपट लीक को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। पर विश्वसनीयता को लेकर कन्नी काट गए। न हामी भरी, न इनकार किया। दूसरी तरफ जस्टिस लिब्राहन का भी लीकेज से इनकार। लिब्राहन तो पूछने पर इस कदर भड़के। पत्रकारों से कह दिया- 'दफा हो जाओ।Ó अब अगर चिदंबरम ने लीक नहीं की। न लिब्राहन ने। तो क्या ऊपर से हनुमान जी रिपोर्ट लेकर आए? ताकि मूर्छित पड़ी रामभक्त बीजेपी को संजीवनी मिल सके? पर अब संसद की अवमानना का सवाल उठा। तो जल्द रपट पेश करने का दबाव बढ़ गया। सोनिया गांधी ने भी सिपहसालारों से गुफ्तगू की। पर बीजेपी तो वाजपेयी के नाम से रिचार्ज हो गई। आडवाणी ने लोकसभा में मोर्चा संभाला। तो वाजपेयी के नाम पर बैटिंग की। बोले- 'रिपोर्ट से मैं स्तब्ध हूं। मेरा या मेरी पार्टी का इंडाइटमेंट होता, समझ में आता है। लेकिन जिन वाजपेयी जी के नेतृत्व में मैंने जीवन भर राजनीति में काम किया। उनके बारे में कोई ऐसा कहे, तो मैं नहीं रुक सकता। इसलिए मैंने पहली बार प्रश्रकाल स्थगित करने का नोटिस दिया।Ó यानी अटल की छवि को ढाल बना बीजेपी आक्रामक हो गई। यों वाजपेयी को लेकर बीजेपी ही नहीं, आयोग के वकील रहे अनुपम गुप्त ने भी सवाल उठाए। जब वाजपेयी को समन नहीं किया गया। तो दोषी कैसे ठहराया जा सकता? अनुपम गुप्त ने तो एक पते की बात कही। बोले- 'अगर सचमुच रपट में वाजपेयी का नाम। तो यह आडवाणी की भूमिका से फोकस शिफ्ट करने का प्रयास।Ó अब जो भी हो, पर सोमवार को रपट की आड़ में राजनीति की चमकार शुरू हो गई। लोकसभा में आडवाणी ने तीन अहम बातें कहीं। अयोध्या आंदोलन से जुडऩे को अपना सौभाग्य बताया। तो बाबरी ढांचा ढहने को जिंदगी का दुखद दिन। पर विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर बने। यही आडवाणी की जिंदगी की साध। सो आडवाणी बोले- 'अयोध्या में मंदिर तो है। पर भगवान राम के जन्मस्थान के अनुरूप नहीं। सो वहां भव्य मंदिर बने, यह मेरे जीवन की साध और जब तक यह साध पूरी नहीं होगी। इसके लिए काम करता रहूंगा।Ó आडवाणी के तेवर हू-ब-हू 1989 के दौर वाले। पर लोकसभा में आडवाणी ने मंदिर आंदोलन को सौभाग्य बताया। तो मुलायम सिंह ने मस्जिद की हिफाजत का खम ठोका। बोले- 'आडवाणी जी, मंदिर आपका सौभाग्य, तो मेरा भी सौभाग्य कि हम आपसे टकराए और मस्जिद की हिफाजत की।Ó अब आडवाणी-मुलायम के बयान के क्या निहितार्थ? मुलायमवादियों ने तो बीड़ा उठा लिया। यूपी में मुलायम अपनी बहू को चुनाव नहीं जितवा पाए। सो अब पार्टी जिंदा रखने को सियासी खेल खेलेंगे। मुस्लिम समाज से चंदा वसूलने की तैयारी। बदले में उसी जगह मस्जिद बनाने का भरोसा दिलाएगी। अगर सचमुच ऐसा हुआ। तो क्या देश में 17 साल पुराना इतिहास दोहराएगा? या काठ की हांडी फिर नहीं चढ़ेगी? भले सीधे सबूत हों या न हों। पर बाबरी विध्वंस घटना नहीं, साजिश थी। यों दंगों पर राजनीति ज्यादा होती, न्याय कम मिलता। सियासतदानों को अपनी राजनीति चमकाने के लिए मुद्दा जिंदा रखने की आदत हो चुकी। पर बात बाबरी ढांचा गिराने की साजिश की। तो खुद बीजेपी के लोग ही कबूल रहे। अयोध्या आंदोलन से पैदा हुए तनाव के बाद यूपी में कल्याण सरकार की बर्खास्तगी तय मानी जा रही थी। सो रणनीति थी, पहले कल्याण सिंह बर्खास्त हों। फिर उत्तेजना का माहौल पैदा कर ढांचा ढहाया जाए। पर पांच दिसंबर की रातोंरात रणनीति बदल गई। आडवाणी ने कल्याण के घर खाना खाया। तो भीड़ के भड़कने का अंदेशा चर्चा का विषय था। कल्याण चाहते थे, गुंबद को नुकसान न पहुंचे। पर बीजेपी नेताओं की जुबानी ही। रात में अशोक सिंघल और मोरोपंत पिंगले ने रणनीति बना ली। एतिहासिक मौका है, चूकना नहीं चाहिए। यूपी में अपनी सरकार, पता नहीं भविष्य में हो या न हो। सो पहले ढांचा गिराओ, बाद में बनाएंगे। रात में यह बात सिर्फ सिंघल-पिंगले तक सीमित रही। सुबह बजरंग दल के अध्यक्ष विनय कटियार को अलर्ट किया गया। ताकि बजरंगदली हुड़दंग मचा सकें। अगले दिन छह दिसंबर को वही हुआ। कल्याण सिंह तक जब खबर पहुंची। तो गुस्से में फोन पटक दिया। पर याद है ना, बाद में कल्याण क्या कहते थे। फिर भी जनता ने चुनाव में साथ नहीं दिया। यानी बीजेपी नेताओं की ही मानें। तो बाबरी ढांचा गिराना साजिश थी। भले छह दिसंबर नहीं, तारीख कोई और होती।

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23/11/2009