Friday, February 26, 2010

जब चला काला जादू, आंख बंद, डिब्बा गायब

बंगाल काला जादू के लिए खूब मशहूर। सो अबके बजट में प्रणव दा का जादू सिर चढ़कर बोला। अब कोई बड़ा चुनाव होता। तो ऐसा जादू दादा क्या, कोई भी न दिखाता। ले-देकर बिहार के चुनाव इसी साल। जहां कांग्रेस की हालत वैसी ही, जैसे महंगाई के मारे आम आदमी की। सो जादूगर की जादूगरी देखिए। टेक्स स्लैब में बड़ा बदलाव कर शर्ट की जेब में पैसे डाले, पेंट की जेब से निकाल लिए। यों टेक्स छूट में अपने जैसों को कोई राहत नहीं मिली। अलबत्ता हायर-मिडिल क्लास की बल्ले-बल्ले। पर पलक झपकते ही पेट्रोल-डीजल की एक्साइज ड्यूटी बढ़ गई। बजट तो बाद में पारित होगा। कीमतें शुक्रवार की आधी रात से ही बढ़ गईं। सो जिनको भी राहत मिली, उन लोगों के चेहरे पर मोनालिसा सी मुस्कान। आखिर हंसे या रोए, कोई समझ नहीं पा रहा। महंगाई पर एक दिन पहले संसद में महाभारत हो। दूसरे दिन सरकार महंगाई की आग में पेट्रोल-डीजल डाल देगी, ऐसा किसी ने सपने में भी सोचा न होगा। सो विपक्ष को तो संजीवनी मिल गई। अरसे बाद पहली बार विपक्ष में ऐसी एकजुटता दिखी। जब बिना फ्लोर स्ट्रेटजी बनाए समूचा विपक्ष वाक आउट कर गया। क्या लेफ्ट, क्या लालू, क्या मुलायम। सब बीजेपी के संग हो लिए। इंदिरा राज में जैसे इमरजेंसी के खिलाफ विपक्ष एकजुट था। अबके महंगाई पर मनमोहन सरकार के खिलाफ। मुलायम सिंह ने तो यही एलान किया, इमरजेंसी जैसी जंग लड़ेंगे। पर कहीं होली के हुल्लड़ में विपक्षी तेवर हैंग ओवर न हो जाएं। वैसे हैंग ओवर उतारने के लिए संसद में होली के अगले दिन भी छुट्टी हो गई। अब विपक्ष की धार बुधवार को दिखेगी। पर प्रणव दादा ने तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा आम आदमी को कह दिया। बुरा न मानो, होली है। अब कांग्रेस ने यों ही ऐसी जुर्रत नहीं की। अलबत्ता मौका देख कड़े फैसले लिए। सोशल सैक्टर में आवंटन बढ़ाया। ताकि चुनाव आते-आते असर दिखने लगे। फिलहाल महंगाई का शोर। तो कांग्रेसियों को मानसून का भरोसा। अपने प्रणव दा ने भाषण की शुरुआत में ही इंद्र देवता के सामने हाथ फैला दिए। बेहतर मानसून की उम्मीद जताई। कांग्रेस यही मानकर चल रही। मानसून के बाद नई फसल आएगी। तो महंगाई खुद दम तोड़ देगी। सो सोशल सैक्टर और कर्मचारी वर्ग के लिए बजट का पिटारा खुल गया। प्रणव दा ने आंकड़ों की बाजीगरी जमकर दिखाई। टेक्स में राहत दी। तो ढिंढोरा पीटा, 26,000 करोड़ राजस्व की हानि होगी। यानी कर्मचारियों पर अहसान जताने की कोशिश। पर बजट में ही खुलासा हो गया। डीजल-पेट्रोल जैसी चीजों पर अप्रत्यक्ष कर लगा सरकार 46,500 करोड़ की उगाही करेगी। यानी कुल जमा 20,500 करोड़ का मुनाफा। पर आम आदमी को क्या मिला। जिन लोगों को टेक्स में छूट मिली। उनके लिए न छूट बड़ी बात, न पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतें। जिंदगी तो मुहाल उस आम आदमी की। जो दाल-रोटी सस्ती होने की उम्मीद लगाए बैठा था। पर बदले में क्या मिला। भले पेट्रोल-डीजल से गरीब का सीधा सरोकार नहीं। पर ढुलाई के बहाने फिर कीमतों में उछाल आएगा। शहरी महिलाओं के लिए माइक्रोवेब ओवन सस्ते तो हो गए। पर सोना-चांदी थोड़ी-बहुत मात्रा में ही सही, हर महिला इस्तेमाल करती। फिर भी प्रणव दा ने फिक्र नहीं की। अलबत्ता सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात सब महंगी कर दीं। वैसे भी सोना आम महिलाओं को तो चिढ़ा ही रहा था। अब प्रणव दा ने ऐसी कारीगरी दिखाई। सपने में भी देख आम महिला डर जाएगी। अब गांव-गरीब की बात करने वाली सरकार का भी हिसाब-किताब देखिए। राहुल बाबा दलित एजंडे पर मायावती से मोर्चा ले रहे। सो मुकुल वासनिक के मंत्रालय का बजट 80 फीसदी बढ़ गया। पर नरेगा की नब्ज देखिए। पिछले बजट में 39,000 करोड़ के करीब था। अबके 40,100 करोड़ रुपए। अपनी संसद पिछले सत्र में शिक्षा के मौलिक हक का कानून पास कर चुकी। पर पिछले बजट में 26,800 करोड़ आवंटन हुआ था। अबके नया कानून बन जाने के बाद भी आवंटन 31,036 करोड़ पर अटका। हरित क्रांति पर प्रणव दा ने खूब जोर दिया। झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पूर्वी यूपी, बंगाल में क्रांति का विस्तार करेंगे। पर बजट आवंटन हुआ महज 400 करोड़। यानी ऊंट के मुंह में जीरा। आज भी देश का 58 फीसदी रोजगार कृषि से जुड़ा। पर 400 करोड़ से क्या होगा। देश में पैदावार घट रही। अंधाधुंध औद्योगिकीकरण से कृषि का रकबा घट रहा। आर्थिक समीक्षा में कृषि क्षेत्र की गिरावट स्पष्टï हो चुकी। बजट में कृषि ऋण की ब्याज दर पांच फीसदी कर दी। किसान कर्ज माफी की सीमा छह माह के लिए बढ़ा दी। फिर भी दादा का हाथ तंग दिखा। कृषि का विकास कैसे हो, इसकी कहीं फिक्र नहीं। पर खाद्य सुरक्षा बिल जल्द आएगा। अपने रुपए का निशान बनेगा। ताकि दुनिया के मनी क्लब में भारत भी शामिल हो। यूनिक आईडी कार्ड से लेकर परियोजनाओं की मॉनीटरिंग, नक्सलवाद से निपटने की भी योजना। पर बजट भाषण के सवा घंटे बाद दादा ने बजट का मजा किरकिरा कर दिया। मुरली देवड़ा की फांस सीधे अपने गले में ले ली। कुल मिलाकर बजट का निचोड़ यही। चुनाव की दीर्घकालिक रणनीति बना कांग्रेस ने कृषि और महंगाई को भगवान भरोसे छोड़ दिया।
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26/02/2010