Thursday, January 28, 2010

ईको फ्रेंडली तो ठीक, पर वोटर फ्रेंडली कब?

 संतोष कुमार
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        भले बीजेपी आपस में लड़ती-भिड़ती रहे। पर पर्यावरण से दोस्ताना करेगी। नितिन गडकरी नित नए नुस्खे निकाल रहे। अभी अध्यक्ष पद पर न औपचारिक चुनाव हुआ, न राष्ट्रीय परिषद से अनुमोदन। पर इंदौर में बीजेपी कॉउंसिल की तैयारी ऐसे हो रही। मानो, अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन हो। और आहुति के बाद यज्ञ का घोड़ा देश की राजनीति पर भगवा झंडा लहराएगा। सो पहले टेंट का शिगूफा छेड़ा। तय हो गया, नेता टेंट में ही रहेंगे। जिस नेता को टेंट न सुहाए, अपनी जेब ढीली कर होटल का लुत्फ उठाए। अब टेंट के साथ ईको फ्रेंडली का भी फार्मूला बन गया। यानी बीजेपी के नए निजाम सब कुछ नया करना चाह रहे। सो वैलेंटाइन डे के तीसरे दिन इंदौर में तीन दिन बीजेपी की मीटिंग चलेगी। तो टेंट से नेतागण एंबेसडर कार या लग्जरी गाडिय़ों में नहीं, अलबत्ता ट्रिन-ट्रिन कर साइकिल की घंटी बजाते ओमेक्स सिटी पहुंचेंगे। यों तीन दिन के लिए ओमेक्स सिटी का नाम भी बदला होगा। सो बीजेपी नेता-वर्कर कुशाभाऊ ठाकरे नगर पहुंचेंगे। पर जिन्हें साइकिल चलाना न आता हो, या स्वास्थ्य साथ नहीं दे। तो उसका भी मुकम्मल इंतजाम। बैट्री चालित और बायो डीजल से चलने वाली गाडिय़ों का बंदोबस्त होगा। कुछ इंतजाम शिवराज करेंगे। बाकी बगल के राज्य छत्तीसगढ़ से रमन सिंह लिवा लाएंगे। रमन सिंह ही छत्तीसगढ़ में बायो डीजल का प्रयोग कर रहे। सो बीजेपी अपने प्रयोग का प्रदर्शन भी करेगी। यानी फाइनल हो चुका, नो पेट्रोल-नो डीजल। तीन दिन तक नेता और वर्कर केले की पत्तल में खाना खाएंगे। लिखने के लिए भी हाथों से निर्मित कागज बंटेंगे। थैला भी जूट का बना होगा। स्थानीय आयोजकों को दो-टूक हिदायत मिल चुकी। कहीं प्लास्टिक का टुकड़ा भी नजर नहीं आना चाहिए। यानी कुल मिलाकर गडकरी ने ईको फ्रेंडली और सादगी से भरी मीटिंग का पुख्ता बंदोबस्त कर लिया। यों देखने-सुनने में तो ईको फ्रेंडली और सादगी की बात ठीक। पर सादगी के प्रदर्शन में खर्च कितना बैठेगा? टेंट लगाने को आयोजन स्थल पर मिट्टïी का भराव हो रहा। जहां टेंट भी होंगे, वीआईपी के हेलीकॉप्टर के लिए हेलीपैड भी। टेंट भी कोई अपने सुरक्षा बलों जैसा खस्ता हाल नहीं होगा। अलबत्ता जिसका जितना बड़ा कद, टेंट की लग्जरी भी उसी हिसाब से। अब स्विस टेंट हो, तो लग्जरी का अंदाजा भी आप लगा लें। किसी फाइव स्टार से कम तो नहीं, भले ज्यादा हो। यानी कहने को तो टेंट, पर खजाना खाली होगा। लैदर-रैक्सीन की जगह जूट के बैग कहीं महंगे पड़ेंगे। साधारण कागज की जगह हस्त निर्मित कागज की कीमत भी ज्यादा होगी। यानी बीजेपी की महंगी सादगी। पर गडकरी तो ईको फ्रेंडली से दुनिया को मैसेज देना चाह रहे। साथ ही अपनी निजामशाही को यादगार बनाने की भी कोशिश। पर कोई पूछे, यह कैसी सादगी। यह तो वही बात हो गई। जैसे महंगाई के जमाने में अगर किसी गरीब को दाल नसीब नहीं हो रही। तो उसे जूस पीने की नसीहत दे दो। यानी बीजेपी की सादगी महंगाई के जमाने में दाल की जगह जूस पीने वाली। माना, सादगी और ईको फ्रेंडली का विचार उम्दा। पर सिर्फ तीन दिन ही क्यों? तीन दिन इंदौर में बीजेपी सादगी और ईको फ्रेंडली का प्रदर्शन कर पर्यावरण का कौन सा भला कर लेगी। अगर वाकई कोई दिल से सादगी दिखाए। ईको फ्रेंडली बनना चाहे। तो जो चीजें गडकरी इंदौर में तीन दिन के लिए करवा रहे। उसे समूची बीजेपी अपनी दिनचर्या का हिस्सा क्यों नहीं बना लेती? सही मायने में तो इससे पर्यावरण का भला होगा। सो बीजेपी की इंदौर मीटिंग पर्यावरण की रक्षा कम। शोशेबाजी और स्टंट ज्यादा लग रही। सो अकेले इंदौर मीटिंग से बीजेपी ग्लोबल वार्मिंग कम नहीं कर सकती। पर भोंडा प्रदर्शन कर जनता को बरगलाना ही राजनीति। सादगी की मिसाल सही मायने में देखनी हो। तो 11 अशोका रोड में ही दिख जाएगी, बस नजरिया चाहिए। प्यारेलाल खंडेलवाल बीजेपी के वरिष्ठï नेताओं में से एक रहे। संगठन के लिए जिंदगी गुजार दी। आखिरी पड़ाव में राज्यसभा भेजे गए। तो भी उन ने बड़ा सरकारी बंगला नहीं लिया। अलबत्ता बीजेपी हैड क्वार्टर के ही एक छोटे से कमरे में आखिरी सांस ली। पर गडकरी का नए अध्यक्ष के तौर पर जोश लाजिमी। गडकरी की इच्छाशक्ति पर भी संदेह जताने का अपना कोई इरादा नहीं। पर सादगी की बात, तो कुछ सवाल उठाने ही होंगे। गडकरी वाकई टेंट के मुरीद। तो बीजेपी दफ्तर के पीछे ही अपना ठिकाना क्यों नहीं बना लेते? क्यों टाइप-8 सरकारी बंगला चाहिए? दिल्ली में गडकरी जबसे आए, तबसे अपनी सादगी बता रहे। दफ्तर आने-जाने के लिए किराए की टेक्सी ले रखी। यों किराए की टेक्सी, सुनने में तो वाकई सादगी लग रही। पर उस टेक्सी की कार का नाम है- 'कैमरी'। टोयोटा की लग्जरी कार। भले कोई किसी गाड़ी में बैठे, एतराज नहीं। पर वर्कर और आम वोटर तीन दिन के दिखावे से क्या क्लाइमेट चेंज समझेगा और क्या सादगी। उसे तो जीवन-यापन को साधारण सी जिंदगी चाहिए। जो आज के महंगाई के दौर में दुश्वार हो रहा। जनता को तो जमीन पर काम दिखना चाहिए। तभी वोट मिलता। सो ईको फ्रेंडली तो ठीक है, पर वोटर फ्रेंडली कब होंगे जनाब। स्टंट से वोट नहीं मिलता। वोट के लिए वोटर फ्रेंडली होना बेहद जरूरी। पर तीन दिन के बाद जब बीजेपी वापस उसी ढर्रे पर होगी। तो वोटर यही पूछेंगे ना- प्रवचन नहीं, अमल करिए जनाब।
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28/01/2010