Thursday, July 1, 2010

राजनीति में क्रिकेट मंत्री, क्रिकेट में कृषि मंत्री

तो शरद पवार अब इंटरनेशनल हो गए। गुरुवार को आईसीसी की अध्यक्षी संभाल ली। तो इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे भारतीय हो गए। यों जगमोहन डालमिया जब आईसीसी से रिटायर हुए, तो बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन की कुर्सी भी बामुश्किल नसीब हुई। पर पवार राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी। सो कब, कहां और कौन सा मोहरा बिठाना, डालमिया से बेहतर जानते। तभी तो बीसीसीआई के अध्यक्ष शशांक मनोहर, पर कोई भी फैसला बिना पवार के नहीं होता। पवार की यही खासियत, जिस रास्ते से होकर गुजरते, वहीं तूती बोलती। चाहे महाराष्ट्र की सियासत हो या यूपीए सरकार में कम सीट होने के बाद भी रुतबा या फिर दुधारू गाय बीसीसीआई। पर विवाद से भी पवार का गहरा नाता। आईपीएल के हमाम में कैसे पवार की पोल खुली, सबको मालूम। बतौर कृषि मंत्री कामकाज भले कांग्रेस को रास नहीं आए। पर यह पवार का पावर ही, जो दूसरे टर्म में भी कृषि के साथ-साथ खाद्य आपूर्ति का भारी-भरकम मंत्रालय लिए बैठे हुए। अबके पवार का पावर इंटरनेशनल हुआ। पर वहां भी विवाद की छाया पड़ गई। आस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम जॉन हावर्ड उपाध्यक्ष बनना चाहते थे। ताकि दो साल बाद पवार का उत्तराधिकार मिल सके। पर एफ्रो-एशियाई देशों ने विरोध किया। हावर्ड की काबिलियत पर सवाल उठाए। तो आईसीसी ने भी आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के वोट से नए नाम मांग लिए। सो हावर्ड के हिमायती मैल्कम स्पीड खफा हो गए। स्पीड खुद आईसीसी की कमान संभाल चुके। पर 2008 में विवादों के साथ स्पीड का टर्म खत्म हुआ। अब हावर्ड की दावेदारी क्रिकेट की समझ न होने की वजह से खारिज हुई। तो मैल्कम स्पीड ने पवार पर निशाना साधा। कह दिया, पवार भी आईसीसी अध्यक्ष बनने के लायक नहीं। यों स्पीड की टिप्पणी महज भड़ास निकालना। पर स्पीड ने एक और बात कही- 'आईसीसी के अध्यक्ष बनने वाले शरद पवार भारत सरकार में कृषि मंत्री हैं, जो एक अरब बीस करोड़ लोगों के पेट भरने का गंभीर पूर्णकालिक काम है। वह अच्छे और साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति हैं, लेकिन वह आईसीसी अध्यक्ष के तौर पर पार्ट टाइम ही काम करेंगे और अगर मेरी मानें, तो उन्हें क्रिकेट प्रशासन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि वह आईसीसी अध्यक्ष बनने के लायक नहीं हैं।' यों स्पीड ने बात सही कही, पर अपनी नजर में महज कल्पना। शरद पवार भले एक अरब बीस करोड़ लोगों के पेट से जुड़ा मंत्रालय संभाल रहे हों, पर दिल और दिमाग क्रिकेट में ही बसा। जब बीजेपी में प्रमोद महाजन जिंदा थे, तब आडवाणी-राजनाथ की ट्विन भारत सुरक्षा यात्रा चल रही थी। तब मुंबई-पुणे-सोलापुर के रास्ते में कई जनसभाएं हुईं। लोग आडवाणी से अधिक प्रमोद का भाषण सुनना पसंद करते थे। याद है, तभी प्रमोद महाजन ने शरद भाऊ को क्रिकेट मंत्री का तमगा दिया था। तब पवार बीसीसीआई के अध्यक्ष थे। यानी मैल्कम स्पीड ने जो 2010 में कहा, प्रमोद महाजन 2006 में ही खारिज कर चुके। पवार अगर सचमुच अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते, तो देश खाद्यान्न संकट के कगार पर खड़ा नहीं होता। सही मायने में पवार का पार्ट टाइम क्रिकेट नहीं, अलबत्ता मंत्री पद की जिम्मेदारी। पर राजनीति के धुरंधर पवार के लिए इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। जो क्रिकेट वाले कृषि मंत्री बता रहे, तो आम जनता और विरोधी 'क्रिकेट मंत्री'। पर पवार की किस्मत देखिए, गुरुवार को ही आईसीसी में पदभार संभाला। तो इधर महंगाई की दर चार फीसदी गिर गई। यों यह दर पेट्रोल-डीजल-गैस के दाम बढऩे से पहले की। अभी तो दाम बढ़ोतरी ने अपना असर दिखाना शुरू ही किया। साथ में सियासत भी चल रही। गुरुवार को बीजेपी ने देश भर की 26 जगहों पर एक साथ रैली का एलान किया था। पर कई जगह रैली रद्द करनी पड़ी। तो कई जगह ऐसी, जहां सूचीबद्ध नेता पहुंचा ही नहीं। सो शाम वाली रैलियों में दिन वाले कई नेताओं को ओवर टाइम करना पड़ गया। यानी महंगाई पर विरोध की सिर्फ शोशेबाजी हो रही। अब तो कांग्रेस ने विरोध को फुस्स करने की नई रणनीति बना ली। सोनिया गांधी की रहनुमाई वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ने खाद्य सुरक्षा और सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ वाले बिल पर फुर्ती दिखा दी। सोनिया ने दो कमेटी बना दीं। ताकि किसी भी तरह मानसून सत्र में दोनों बिल लाकर विपक्ष की धार भोंथरी कर सके। इतना ही नहीं, खाद्य सुरक्षा बिल में सोनिया मार्का लगाने को अब 25 किलो की जगह 35 किलो अनाज मुहैया कराने का प्रस्ताव। पर वाजपेयी सरकार में बीपीएल को 35 किलो ही अनाज मिलता था। सो सोनिया मार्का में नया कुछ नहीं। पर महंगाई से ध्यान बंटाने की इससे कारगर कोई और रणनीति भी नहीं। वैसे भी महंगाई पर घेरे में सिर्फ कांग्रेस। पवार तो अब आईसीसी चले गए। वैसे भी पवार कई दफा कह चुके, वह कोई ज्योतिषी नहीं, जो बता सकें, महंगाई कब कम होगी। अपने मुरली देवड़ा तो महंगाई को भगवान भरोसे छोड़ चुके। मनमोहन सरकार के मंत्रियों के कहने ही क्या, जब-जब मुंह खोलते, महंगाई को सिर्फ बढ़ाते। पवार ने दूध, चीनी, प्याज, आलू, दाल, गेहूं, चावल पर जब-जब बयान दिए, महज हफ्ते भर में कीमतें बढ़ गईं। अब तो मनमोहन भी खम ठोककर कह रहे, सब्सिडी का बोझ सरकार नहीं उठाएगी। यानी महंगाई के बोझ तले दबी जनता जमींदोज होने को तैयार हो जाए। पर पवार के लिए क्या कहेंगे। जो राजनीति में तो क्रिकेट मंत्री होने का आरोप झेल ही रहे। तो क्रिकेट वाले भी क्रिकेट का पार्ट टाइमर बता रहे।
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01/07/2010