Monday, May 17, 2010

कुम्हलाने लगा विकल्प, पर दोष जनता के सिर

अब कसाब के बहाने अफजल पर नूराकुश्ती शुरू हो गई। कसाब को सजा से पहले ही होम मिनिस्ट्री ने अफजल की फाइल ढूंढनी शुरू की। तो दिल्ली की शीला सरकार को चिट्ठी गई। पूछा गया, कई बार याद दिलाया जा चुका है। पर सरकार का जवाब नहीं आया। सो सरकार अपनी राय जल्द केंद्र को भेजे। पर जवाब तो तब आएगा, जब शीला को चिट्ठी मिलेगी। शीला दीक्षित ने दो-टूक कह दिया- अफजल पर होम मिनिस्ट्री से न चिट्ठी, न कोई संदेश। वैसे भी अभी चार साल से ही फाइल शीला के पास। वाकई चिट्ठी तो भेजी गई दिल्ली के होम सैक्रेट्री को। सो शीला क्या जानें। वैसे भी शीला को अपने होम सैक्रेट्री पर कितना एतबार, आप देख लो। जेसिका लाल हत्याकांड का दोषी मनु शर्मा हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा का बेटा। पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले मनु ने मां की बीमारी के नाम पर पैरोल मांगी थी। दिल्ली के होम सैक्रेट्री ने पंद्रह दिन की सिफारिश की। पर शीला की मेहरबानी देखिए, पैरोल एक महीने का दे दिया। यानी होम सैक्रेट्री की सिफारिश महज संवैधानिक मजबूरी, फैसला तो शीला ने पहले ही कर लिया था।
पिछले साल अप्रैल में शीला ने लोकसभा चुनाव निपटने के बाद कदम उठाने का भरोसा दिलाया। पर साल बीतने को, कोई फैसला नहीं लिया। वैसे भी शीला को आम आदमी को तड़पाने से फुरसत मिले, तो अफजल की फाइल पर सोचें। तीसरी बार सीएम बनते ही शीला को काम से फुरसत ही नहीं मिल रही। पहले बसों का किराया बढ़ाया। महंगाई आसमान छूने लगी। तो राशन-पानी की दुकान लगाई। रसोई गैस, सीएनजी की दरों में इजाफा किया। पानी का बिल तिगुना कर दिया। प्रणव दा ने आम बजट में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाईं। तो शीला ने भी काफी मेहनत के बाद दाम बढ़ा दिए। दूध-दही, घी, साग-सब्जी की कीमतें थोड़ी-थोड़ी कर बढ़ाईं। अब सोमवार को प्रॉपर्टी की डॉक्यूमेंटेशन फीस सौ रुपए से बढ़ाकर 20 हजार रुपए कर दी। अब कोई इतनी मेहनत करे, फिर भी नाम न ले, तो शीला के साथ न्याय नहीं। पहले चुनाव में व्यस्त थीं। अब कॉमन वैल्थ गेम्स की तैयारी में। सो अफजल पर आई-गई चिट्ठी कहीं दब गई होगी। तभी तो सोमवार को बीजेपी ने पूछ लिया। कहीं ऐसा तो नहीं शीला दीक्षित अफजल को आतंकी नहीं, पर्यटक मान रही हों? अपने संविधान के तहत यह प्रावधान कि माफी याचिका पर उस सरकार की राय ली जाती, जहां अपराध हुआ हो। अब दिल्ली-मुंबई की जनता की राय लो। तो अफजल-कसाब के बारे में जनता की क्या राय होगी, क्या शीला नहीं जानतीं? पर कोई जनता की सोचे, तब कोई बात हो। यहां तो कॉमन वैल्थ के नाम पर किसके वारे-न्यारे हो रहे, पता नहीं। पर बेचारा आम आदमी लुटता-पिटता जा रहा। तभी तो स्टेशन पर भगदड़ हुई, आम यात्री मारा गया। पर ममता यात्रियों को ही जिम्मेदार ठहरा रहीं। राजनीति की ये दो बड़ी महिलाएं संवैधानिक पद पर आसीन। पर क्या सोच सचमुच आम आदमी के हित में? ममता को रेल मंत्रालय नहीं, रायटर्स बिल्डिंग की आस। सो दिल्ली की बजाए कोलकाता में अधिक समय बितातीं। नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ मची। पर ममता को बंगाल के स्थानीय चुनाव से फुरसत नहीं। आखिर क्या हो गया है अपने नेताओं को। इन नेताओं के घर राजनीति की किस चक्की का आटा पहुंचता, जो खाते ही नेता बौरा जाते। आप खुद देखिए, महंगाई बढ़ी, तो शीला ने कहा- लोगों की आमदनी भी बढ़ी। ममता अपना महकमा संभाल नहीं पा रहीं। तो आम यात्री को ही जिम्मेदार बता दिया। झारखंड में शिबू सोरेन कुर्सी संभाल नहीं पा रहे। तो जनता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे। शरद पवार ने तो महंगाई पर आम आदमी के खाने-पीने की आदत में बदलाव और अधिक खाने की प्रवृत्ति को वजह बता दिया था। अब अगर स्टेशन की भगदड़ की घटना को लें। तो नवंबर 2005 में ऐसी ही भगदड़ मची थी। तब जांच कमेटी ने सिफारिश की थी। प्लेटफार्म से वेंडर कम करो। भीड़ की मॉनीटरिंग कैमरे से हो। आखिरी वक्त में प्लेटफार्म न बदले जाएं। पर इतवार को रेलवे ने आखिरी वक्त में प्लेटफार्म बदला। सो आपाधापी में जो हुआ, सबने देखा। क्या ममता को नहीं मालूम, कैसे स्टेशन पर जनरल डिब्बे की सीटें बिकती हैं? गरीब और इज्जत की बात तो खूब करतीं। पर कभी इस ओर ध्यान क्यों नहीं? क्या ऐसे बनेगा विश्व स्तरीय स्टेशन? दिल्ली मैट्रो की व्यवस्था ही देखिए। रोजाना आठ से दस लाख मुसाफिर सफर करते। पर ऐसी अव्यवस्था क्यों नहीं? सो ममता हों या शीला, गुरुजी हों या पवार, एक खतरनाक प्रवृत्ति दिख रही। विजनरी नेताओं का दौर अब खत्म हो चुका। शेखावत, ज्योति बसु, वाजपेयी, चंद्रशेखर जैसी शख्सियत सक्रिय राजनीति में नहीं। एक वक्त था, शेखावत सती प्रथा के खिलाफ खम ठोककर खड़े हो गए। भले पूरा समाज खिलाफ हो गया। अब अपने भैरोंसिंह शेखावत नहीं रहे। राजनीति ही नहीं, इंसानियत की मिसाल थे शेखावत। पर अब नया विकल्प क्या नवीन जिंदल जैसा। पढक़र आए अमेरिका से और वोट की खातिर खड़े हो गए थाप के साथ? हरियाणा में ही बंसीलाल थे। भले चुनाव हार गए, पर मुफ्त बिजली नहीं दी। मुफ्तखोरी का हश्र देख जनता ने आखिर बंसीलाल पर ही भरोसा जताया। अब जबसे वाजपेयी अस्वस्थ। बीजेपी में कैसी मारकाट मची, सभी जानते। सचमुच बड़े दिल, बड़ी सोच वाले नेता अब राजनीति में नहीं रहे। भारतीय राजनीति में विकल्प अब खिलने से पहले ही कुम्हला रहा। अब नक्सलियों ने बस उड़ा दी। पर सरकार की नीतियां अभी भी ढुलमुल ही।
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17/05/2010