Monday, January 3, 2011

बोफोर्स पर सीबीआई का साथ, ट्रिब्यूनल का तमाचा

 बीते साल के साये ने नए साल को भी दबोच लिया। नए साल के चौथे दिन ही सूर्य ग्रहण। अब यह ग्रहण किसके लिए शुभ या अशुभ, यह तो कोई ज्योतिषी ही बताएगा। पर अपना देश तो अरसे से राजनीतिक ग्रहण का शिकार। जनता लुटती जा रही, नेताओं के घर भरते जा रहे। तभी तो भ्रष्टाचार सुरसा की तरह मुंह फैला चुका। सो 2010 के आखिर में भ्रष्टाचार का जो हवन शुरू हुआ, थम नहीं रहा। अब ग्रहण से पहले भ्रष्टाचार के हवन में बोफोर्स का भी घी टपक गया। बोफोर्स मामले में इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल ने क्वात्रोची और बिन चड्ढा को रिश्वत दिए जाने का दावा किया। ट्रिब्यूनल ने माना- बोफोर्स सौदे के लिए क्वात्रोची और चड्ढा को दलाली दी गई। ट्रिब्यूनल ने बाकायदा भुगतान की प्रक्रिया का भी ब्यौरा दिया। अब इतना बड़ा खुलासा हो, तो विरोध की आग धधकनी तय थी। सो बीजेपी के अरुण जेतली ने हमेशा की तरह बोफोर्स पर कमान संभाली। बोले- सरकारी नीति का उल्लंघन कर बोफोर्स सौदे में दलाली दी गई। सच्चाई दब नहीं सकती, सो ट्रिब्यूनल के फैसले से सच सामने आ गया। पर उन ने नया राग छेड़ा- सीबीआई की ईमानदारी पर भरोसा नहीं। सो अब बोफोर्स दलाली की जांच एसआईटी से हो। पर राजनीति की असली जंग मंगलवार को दिखेगी। बोफोर्स की जांच कर रही सीबीआई पिछले साल ही क्वात्रोची के खिलाफ मुकदमे की फाइल बंद करने की अर्जी डाल चुकी। जिस पर दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगी। सीबीआई ने अर्जी में कहा था- क्वात्रोची के खिलाफ कोई सबूत नहीं। सो केस को आगे बढ़ाने का कोई मतलब नहीं। पर अब इस नए खुलासे के बाद सीबीआई क्या कहेगी? आखिर सीबीआई को क्या हो गया? कभी सिख विरोधी दंगे के आरोपी जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दिला रही। तो सीबीआई कभी तेरह साल की मासूम बच्ची आरुषि का हत्यारा नहीं ढूंढ पा रही। राजनीतिक आकाओं के इशारे पर कभी ये फाइल बंद, कभी वो फाइल बंद, यही सीबीआई का ढर्रा बन गया। अगर सीबीआई के पास क्वात्रोची के खिलाफ कोई सबूत नहीं। तो आईटी ट्रिब्यूनल ने कैसे इतना बड़ा खुलासा किया? अब कांग्रेस को सांप सूंघना लाजिमी। सो ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद अभिषेक मनु सिंघवी बोले- पढ़ेंगे, सोचेंगे, फिर बोलेंगे। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने तो सफाई देने के बजाए विपक्ष के नेता अरुण जेतली पर ही निशाना साध दिया। बोले- जेतली ने खुद कानून मंत्री रहते क्या कर लिया? इसे कहते हैं- नाच ना जाने, आंगन टेढ़ा। एनडीए काल में क्या हुआ, यह 29 अप्रैल 2009 को कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की टिप्पणी से स्पष्ट। जब सीबीआई ने क्वात्रोची पर मेहरबानी दिखाते हुए रेड कार्नर नोटिस वापस लेना तय किया था। तब सिंघवी ने कहा था- बोफोर्स मामले में सिर्फ अदालती कार्रवाई पर 200 करोड़ खर्च हो चुके। जिनमें 150 करोड़ तो सिर्फ एनडीए राज में खर्च हुए। फिर भी हाथ कुछ नहीं लगा। सो क्वात्रोची के खिलाफ रैड कॉर्नर नोटिस के अब कोई मायने नहीं थे। पर सिंघवी को अपना यह बयान याद होगा या नहीं, यह तो वही जानें। पर सवाल वही, आखिर ट्रिब्यूनल को सबूत कैसे मिल गए? अब भले कांग्रेस सीबीआई के बेजा इस्तेमाल से इनकार करे। पर बोफोर्स दस्तावेज देश में लाने वाले सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगिंदर सिंह की एक टिप्पणी भी बताते जाएं। उन ने कहा था- सीबीआई स्वतंत्र एजेंसी नहीं है। हो सकता है, आप इससे सहमत नहीं हों। पर क्वात्रोची को 73.2 लाख डालर मिले थे। वह दस्तावेज स्विटजरलैंड के अधिकारियों ने खुद मुझे दिए थे। अब जोगिंदर सिंह की बात छोड़ भी दें। तो बोफोर्स घोटाले का समूचा घटनाक्रम अपनी कहानी खुद बयां कर रहा। तेईस साल हो चुके, पर न दलाली की रकम वापस लौटी, न दलाल क्वात्रोची हत्थे चढ़ा। अलबत्ता 64 करोड़ की दलाली की जांच में अब तक 300 करोड़ खर्च हो चुके। अब अगर पुराने मामले छोड़ दें, तो यूपीए के वक्त हुए खेल को ही देखो। फरवरी 2007 में अर्जेंटीना में क्वात्रोची गिरफ्तार हुआ। सीबीआई के पास आठ फरवरी को खबर आ चुकी थी। पर खुलासा 23 फरवरी को हुआ। जब तक अपने सीबीआई वाले पहुंचते, छब्बीस फरवरी को क्वात्रोची जमानत पर छूट चुका था। अपनी सुप्रीम कोर्ट ने क्वात्रोची के लंदन खाते से पैसा न निकले, यह सुनिश्चित करने की हिदायत सरकार को दी। पर आदेश से पहले ही लीगल ओपीनियन की आड़ में एडीशनल सोलीसीटर जनरल बी. दत्ता लंदन जाकर खाते खुलवा चुके थे। क्वात्रोची अपनी दलाली की रकम निकाल चुका था। फिर 2008 में लीगल ओपीनियन के जरिए क्वात्रोची से रेड कार्नर नोटिस हटाने की बात हुई। तो अप्रैल 2009 में वह भी हट गया। अब कोई पूछे, सीबीआई क्वात्रोची के खिलाफ जांच कर रही थी या बचाने की कोशिश? सो 29 अप्रैल 2009 को यहीं पर एक सवाल उठाया था- क्वात्रोची को क्लीन चिट के बाद क्या मानहानि भी देगी सरकार? सीबीआई और कांग्रेस की रहनुमाई वाली सरकार को शायद ऐसा करने में भी गुरेज न होता, गर देश में लोकतंत्र न होता। सो सोमवार को ट्रिब्यूनल ने तमाचा मारा। अब मंगलवार को आंशिक सूर्य ग्रहण का कांग्रेस पर कितना असर पड़ा, यह कोर्ट के फैसले से ही मालूम पड़ेगा।
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03/01/2011