Wednesday, February 24, 2010

आखिर कब तक बेचारा रेलवे बिन 'चारा' दूध दे?

वाकई सचिन जैसा कोई नहीं। दोहरा शतक मार ग्वालियर में इतिहास रच दिया। कैरियर के आखिरी पड़ाव पर भी जोशीले जवानों को बता दिया। गर हो जज्बा, तो उम्र आड़े नहीं आ सकती। सचिन तेंदुलकर के रिकार्ड कभी टूटें या न टूटें, वह तो सही मायने में भविष्य के आदर्श हो गए। उधर सचिन ने युवाओं को भविष्य दिखाया। इधर ममता बनर्जी ने रेलवे के भविष्य का खाका परोस दिया। अबके ममता एक्सप्रेस विजन की पटरी पर दौड़ी। यों माल भाड़ा और यात्री किराए में बढ़ोतरी न कर सामाजिक सरोकार का संकल्प भी दोहराया। पर मुख्य फोकस रेलवे का भविष्य संवारना रहा। सो विजन-2020 का संकल्प जताया। सालाना एक हजार किलोमीटर रेल लाइन बिछाने का लक्ष्य। अगले दस साल में नेटवर्क में 25 हजार किलोमीटर इजाफे की तैयारी। काम को अंजाम देने के लिए सौ दिन के भीतर टास्क फोर्स बनेगी, जो निवेश के मामले तेजी से निपटाएगी। रेलवे का निजीकरण नहीं होगा। पर बिजनेस कम्युनिटी को निवेश का न्योता दे दिया। यों लक्ष्य तो वाकई सुहाना। पर कहीं यह सपना बनकर न रह जाए। खुद ममता ने बजट भाषण में बताया। जब देश आजाद हुआ, तो 1950 में रेल के पास 53,596 किलोमीटर की लाइन थी। अ_ïावन साल बीत गए। पर आंकड़ा कहां पहुंचा, मालूम है। अपने रेल नेटवर्क का विस्तार महज 64,015 किलोमीटर पर सिमटा हुआ। यानी 58 साल में न जाने कितने मंत्री आए-गए। पर नई लाइनें बिछीं सिर्फ 10,419 किलोमीटर। सालाना औसत देखिए। तो महज 180 किलोमीटर लाइन हर साल बिछी। ऐसा क्यों न हो। अपने देश में जितने भी रेल मंत्री आए-गए। सबने शपथ तो संविधान की ली। पर रेलवे को राजनीतिक टूल बनाकर चुनाव में इस्तेमाल किया। जिस प्रदेश का मंत्री, उस प्रदेश की तो हमेशा से मौजां ही मौजां होती रहीं। सो अबके ममता अपने बंगाल पर मेहरबान। तो कोई अचरज नहीं। पर लालू को रेलवे रिवर्स गियर में जाता दिख रहा। यों लालू भूल गए, उन ने तो रेलवे को ऐसा चूसा। जितना बिहार को भी पंद्रह साल नहीं चूस पाए होंगे। पर बात रेल मंत्री के क्षेत्र प्रेम की। तो ममता बनर्जी की कर्मभूमि पर जन्मभूमि भारी पड़ी। ममता ने सबको सौगातें दीं। पर बंगाल को कुछ ज्यादा मिला। वैसे भी मंत्री बंगाल की वजह से बनीं। सो जैसे बाकी मंत्री रेल को अपना आधार मजबूत करने का जरिया बनाते रहे। वैसा उन ने भी किया। अब जरा बंगाल को क्या मिला। आप खुद देख लें। विश्व स्तरीय स्टेशन दस एलान हुए। तो दो बंगाल के खाते में गए। मल्टीफंकशनल कॉप्लेक्स 93 में से आधा दर्जन बंगाल गए। छह बॉटलिंग प्लांट में से एक बागल गया। डबल डेकर की शुरुआत दिल्ली-कोलकाता के बीच होगी। चौवन नई ट्रेनों में 28 बंगाल के खाते में। टेगोर जयंती के नाम पर हावड़ा-बोलपुर में म्यूजियम। संगीत अकादमी, सांस्कृतिक परिसर, अनुसंधान केंद्र, डिब्बों के आधुनिकीकरण, किसानों के लिए रेफ्रीजिरेटेड कंटेनर भी बाया बंगाल। बाकी सर्वे आदि आप छोड़ दो। तो कुल मिलाकर ममता ने बंगाल चुनाव की बड़ी बिसात बिछा दी। उन ने सिर्फ रेलवे नहीं, किसान, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे तमाम पहलू छूकर बता दिया। अपनी रेल का यार्ड रायटर्स बिल्डिंग में ही बनेगा। ममता गठबंधन की सरकार में मंत्री ठहरीं। सो कांग्रेस की मांग को भी बजट में पूरी जगह दी। अमेठी हो या रायबरेली, कांग्रेस को ममता ने खुश कर दिया। अब रेलवे के जरिए राजनीति की बिसात बिछे। तो रेलवे का विजन कहां पूरा होगा। वाहवाही लूटने को बजट में हर साल सैकड़ों ट्रेन का एलान होता। पर कभी ट्रेनों में भीड़ कम होती दिखी? समय पर ट्रेनें स्टेशन पहुंचीं? साफ-सफाई और खान-पान तो ऐसा, मुसाफिर यही कहकर मंजिल तक पहुंच जाते। छोड़ो, एक दिन की ही तो बात है। पर बंगाल एक्सप्रेस दौड़ाकर भी ममता रेलवे के कायापलट का दावा कर रहीं। बांग्ला में एक विचार रखा- 'नहीं नहीं भय, होबे होबे जय। खुले जाबे एई द्वार।' यानी डरो नहीं, तो जीत अवश्य मिलेगी। रास्ते अपने आप खुल जाएंगे। पर कब तक रेलवे बिना 'चारा' दूध देगा। नेताओं ने रेलवे को दुधारू गाय बना खूब दुहा। पर विकास धेला न हुआ। सो अब धड़ाधड़ दुर्घटनाएं हो रहीं और मुसाफिर को मंजिल तक पहुंचाने वाली ट्रेन मुसाफिरों का ही खून पी रही। लालू ने सरप्लस दिखाने के चक्कर में रेल को निचोड़ दिया। सो मुसीबत ममता के बजट में साफ दिख रही। योजनाओं का एलान तो खूब हुआ। पर धन कहां से आएगा, किसी को मालूम नहीं। अब आप ही सोचो, रेलवे का विजन-2020 कैसे पूरा होगा। आजादी के 58 साल बाद रेलवे का नेटवर्क रेंगता दिखा। बजट में ममता ने भारत-चीन युद्ध के बाद निराशा से उबरने के लिए नेहरू के अनुरोध पर लगा मंगेशकर का गाया गीत... जरा याद करो कुर्बानी... गाया। तो चीन की रेलवे का इतिहास बता दें। अपनी आजादी के वक्त भारत की तुलना में चीन के पास एक चौथाई रेल लाइनें भी नहीं थीं। चीन की राजधानी बीजिंग से गूंगजाऊ की 1100 किलोमीटर की दूरी तय करने में तीन से चार दिन लग जाते थे। पर आज हर रोज चीनी यात्री महज तीन घंटे में यह यात्रा पूरी कर रहे। वर्ष 2012 तक चीन में रेल लाइनों की लंबाई 79,900 किलोमीटर से बढ़कर 1,10,000 किलोमीटर पहुंच जाएगी। भारत में कैसी हालत, खुद ममता ने बजट में बता दिया। सो कब तक यों ही रेलवे को नेतागण राजनीति की दुधारू गाय बना दुहेंगे? मुसाफिरों की जिंदगी मुश्किल में डालेंगे?
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24/02/2010