Thursday, April 29, 2010

कभी बीजेपी भी चाल, चरित्र, चेहरे वाली पार्टी थी!

आखिर वही हुआ, जो बीजेपी की कहानी में हमेशा होता आया। बीजेपी ने फिर साबित कर दिया, सत्ता के आगे नीति, नैतिकता, सिद्धांत कुछ भी नहीं। कर्नाटक में जो एच. डी. देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी ने अक्टूबर 2007 में किया। अब शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन कर रहे। सो बाप को किनारे कर अपनी सियासत चमकाने में जुट गए। राजनीति का ऐसा पासा फेंका, आम आदमी के हित की बजाए कुर्सी दिखने लगी। सो समर्थन खींचने की धमकी महज घुडक़ी बनकर रह गई। सीएम की कुर्सी का लॉलीपॉप देख बीजेपी के मुंह से लार टपकने लगी। सो बुधवार को किए फैसले पर गुरुवार को भी अमल नहीं कर पाई। बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड ने इमरजेंसी मीटिंग बुला फैसला तो ले लिया। पर अमल के बजाए सौदेबाजी कर रही। हेमंत सोरेन ने ऐसा फार्मूला दिया, न उगले बन रहा, न निगले। सो गुरुवार को समर्थन वापसी पर बीजेपी ने भरपूर ड्रामा किया। पहले कहा, गवर्नर को 11 बजे मिलकर समर्थन वापसी की चिट्ठी देंगे। फिर एलान हुआ, सभी एमएलए पांच बजे गवर्नर से मिलेंगे। फिर सात बजे और अब मामला शुक्रवार के लिए टल गया। अब कोई पूछे, समर्थन वापसी की चिट्ठी देने में काहे की ड्रामेबाजी। अगर जनता के हित में सरकार की कुर्बानी देने का फैसला किया। तो उसी झामुमो के समर्थन से खुद की सरकार बनाने में क्यों जुटी? हेमंत सोरेन ने यही फार्मूला दिया है बीजेपी को। हेमंत ने बुधवार ही लोकसभा में शिबू के वोट को मानवीय भूल बताया था। तो गुरुवार को बाप से बीजेपी को चिट्ठी भिजवा दी। शिबू ने मुख्यमंत्री के लेटर हैड पर नितिन गडकरी और सुषमा स्वराज को माफीनामा भेजा। लोकसभा में वोट को खराब तबियत की वजह से मानवीय भूल बताया। एनडीए के साथ रहने की प्रतिबद्धता दोहराई। झारखंड के गठन में एनडीए की भूमिका का मक्खन भी लगाया। पर बीजेपी का दिल चिट्ठी से नहीं पसीजा। अलबत्ता हेमंत के फार्मूले ने गदगद कर दिया। यानी झारखंड में बीजेपी का सीएम होगा। दौड़ में यशवंत सिन्हा, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास का नाम भी आ गया। यों अब तक यशवंत ही आगे। अब दूसरा फार्मूला भी चल रहा। बीजेपी इस फार्मूले से दोहरी रणनीति साधना चाह रही। बाबूलाल मरांडी को सीएम बनाने का ऑफर। बाकी बीजेपी-झामुमो समर्थन करें। ऐसे में बीजेपी को अपना बिछुड़ा हुआ साथी भी मिल जाएगा। शिबू से दुबारा हाथ मिलाने से भद्द भी नहीं पिटेगी। पर मरांडी झारखंड में बीजेपी को औकात में ला चुके। सो फिलहाल मरांडी बीजेपी के झांसे में फंसते नहीं दिख रहे। पर बीजेपी अपने ही जाल में फंस गई। अब किस मुंह से दुबारा शिबू की झामुमो से हाथ मिलाए। यों बीजेपी नए फॉर्मूले में दलील दे सकती, देखो, शिबू से एतराज था। सो शिबू को हटा राज्य की जनता के हित में नई सरकार बनाई। हेमंत ने फार्मूले में कुछ ऐसी ही दलील दी। ताकि बीजेपी कह सके, शिबू लोकसभा के सांसद हैं। झारखंड की सत्ता से कोई सरोकार नहीं। पर झारखंड में शिबू के बिना हेमंत की राजनीतिक हैसियत ही क्या। अब दलीलें कुछ भी हों, पर गुरुवार को पेच कहां फंस गया। चिट्ठी सौंपने में अब-तब का खेल चलता रहा। तो इधर बीजेपी झामुमो की ओर से ठोस प्रस्ताव की बाट जोहती रही। सत्ता लोलुपता ने बीजेपी को तकनकी दांव-पेच में फंसा दिया। अगर बीजेपी सीधे गवर्नर को समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंप देती। तो गवर्नर दूसरे पक्ष कांग्रेस को बुलाकर पूछते। और फिर राष्ट्रपति राज की सिफारिश हो जाती। सो सत्ता के लालच में गवर्नर से मिलने का टाइम बदलता रहा। फार्मूला बन रहा था, बीजेपी समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंपेगी। तो झामुमो हाथोंहाथ नेतृत्व परिवर्तन की। पर अब अगर शुक्रवार को झामुमो ने हेमंत सोरेन के फार्मूले को पार्टी के प्रस्ताव के तौर पर भेजा। तो पहले बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड बैठेगा। फिर बीजेपी समर्थन वापसी की नहीं, शायद नेतृत्व परिवर्तन की चिट्ठी सौंपेगी। गुरुवार को सुबह से लेकर रात तक बीजेपी झारखंड के झूले में ही झूलती रही। दो बार कोर ग्रुप की मीटिंग हुई। अनौपचारिक बैठकें तो अनगिनत हुईं। अब बीजेपी के इस हाई वोल्टेज ड्रामे को क्या कहेंगे आप। शिबू को विश्वासघाती बताया। पर क्या सीएम की कुर्सी मिलने से अब शिबू विश्वासपात्र हो जाएंगे? बीजेपी के एक बड़े नेता ने आज कहा- हमारा मुंह तो खुला हुआ है। अगर सामने भोजन रखा जाएगा, तो हम क्यों नहीं खाएंगे। यही बात 28 अक्टूबर 2007 को बीजेपी के एक नेता ने कही थी। कहा था- हवन तीन बजे न सही, छह बजे ही। जेडीएस ने हमारी बात मान ली, सो हम भी तो कोई सन्यासी नहीं। आखिर राजनीति इसीलिए तो कर रहे। क्या यही पार्टी विद डिफरेंस वाली बीजेपी? कल जिसे विश्वासघाती बताया, आज उसी से गलबहियां। आखिर यह राजनीति का कैसा चरित्र? कांग्रेस तो सत्ता की राजनीति करती ही रही। पर बीजेपी खुद को चाल, चरित्र, चेहरे वाली बताती रही। फिर भी बीजेपी के ड्रामे में एकता कपूर के सास भी कभी बहू थी सीरियल से भी अधिक ट्विस्ट। अब कहीं बीजेपी पर एकता कोई सीरियल बनाए। तो शायद यह टाइटल मौजूं होगा- कभी बीजेपी भी चाल, चरित्र, चेहरे वाली पार्टी थी। अब सोचो, बीजेपी को अधर में लटका कल देवगौड़ा की तरह शिबू-हेमंत किसी नई सौदेबाजी पर उतर आएं, तो हैरत नहीं।
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29/04/2010