Monday, February 14, 2011

फैसला ही नहीं, लकीर भी खींचे न्यायपालिका

कभी महंगाई तो कभी भ्रष्टाचार, आखिर सरकार कबूलने लगी। शासन के कामकाज में ही नहीं, नैतिकता में भी गिरावट। होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने पहले महंगाई को सरकार के बूते से बाहर बताया। अब शासन और नैतिक स्तर पर गिरावट की बात मान ली। पर नेताओं की फितरत कैसी, यह भी दोहरा दी। चिदंबरम ने कहा- ऐसी गिरावट कोई नई बात नहीं। यानी सत्ता का नाजायज फायदा उठाने में कोई दल पीछे नहीं। पर भ्रष्टाचार के मुद्दे ने जनता के बीच जगह बना ली। उधर मिस्र में हुस्नी मुबारक का तीन दशक का राज खत्म हो गया। सो भारत में भी कुछ लोग वैसी ही क्रांति की बात कर रहे। ऑन लाइन चर्चाओं में लोग एक-दूसरे से पूछ रहे- क्या अपने यहां भी कोई तहरीर स्क्वायर है? पर क्या अब अपने देश में क्रांति की मानसिकता है? लोगबाग चौपालों पर चर्चा खूब करेंगे। पर मानसिकता वही- भगत सिंह पैदा हो, पर पड़ोसी के घर। सचमुच जनता में क्रांति की भावना नहीं रही। समाज सुविधा भोगी हो चुका। या यों कहें- जो सुविधा भोगी नहीं, वह दो जून की रोटी जुगाडऩे में ही दिन-रात बिता देता। सो क्रांति की अलख कैसे जगे? यों अब बीजेपी मिस्र की क्रांति से प्रभावित। सो देश में जेपी जैसा आंदोलन खड़ा करना चाहती। पर जेपी जैसा कौन, यह बीजेपी को मालूम नहीं। आखिर मालूम भी कैसे हो, जब राजनीति से लोगों का भरोसा उठ चुका। क्या आज देश में कोई ऐसा सर्वमान्य नेता, जिसे क्रांति का अगुआ बनाया जा सके? पर जनता के दिल की चिंगारी कब शोला बन जाए, पता नहीं चलता। सो महंगाई-भ्रष्टाचार से जूझ रही कांग्रेस ने बजट सत्र से पहले फिर मत्थापच्ची की। जेपीसी पर सर्वदलीय मीटिंग के बात कांग्रेस कोर ग्रुप की सोमवार को पहली मीटिंग हुई। तो जेपीसी के तौर-तरीकों पर चर्चा हुई। विपक्ष की धार भोंथरी करने के लिए कांग्रेस जेपीसी को तो राजी। पर संसद में बहस के बाद। राष्ट्र्पति अभिभाषण के अगले दिन ही विपक्ष जेपीसी का एलान चाह रहा। पर कांग्रेस ने सोमवार को बीजेपी को घेरा। मनीष तिवारी बोले- स्पेक्ट्रम पर एनडीए राज की कलई खुल रही, सो बीजेपी बहस से कतरा रही। यानी शौरीनामा से कांग्रेस को राहत की उम्मीद। बजट सत्र में जेपीसी की बहस होगी, तो अरुण शौरी का भी मामला आएगा। पर बीजेपी को घेरने की सोच रही कांग्रेस अपने बड़बोले मंत्रियों का क्या करेगी? विदेश मंत्री यूएन में जाकर पुर्तगाली विदेश मंत्री का भाषण पढ़ आते। चिदंबरम-सिब्बल-जयराम के तो बोल बड़े ही अनमोल। सोमवार को ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने नई ऊर्जा भर दी। कह दिया- पीएम 90 फीसदी विकास दर चाहते। अब इसे ऊर्जा मंत्री की ऊर्जा कहें या पॉवरकट। जब नौ फीसदी विकास दर लाने में खुद सरकार हांफ रही। इतनी विकास दर में ही महंगाई अपना तांडव नृत्य दिखा रही। तो सोचिए, 90 फीसदी में क्या हाल होगा। इतना ही नहीं जब आठ-नौ फीसदी विकास दर में एक नील 76 खरब तक के घोटाले हो रहे। जब 90 फीसदी होगा, तो सोचिए, इकाई-दहाई वाले अपने नंबरिंग सिस्टम का क्या होगा? पर फिलहाल बात संसद सत्र की तैयारी की। कांग्रेस अब जनता की नब्ज भांप जेपीसी को राजी दिख रही। तो बीजेपी को भी कर्नाटक मामले में सोमवार को थोड़ी राहत मिल गई। कर्नाटक हाईकोर्ट ने विधानसभा स्पीकर के फैसले पर मुहर लगा दी। पांच निर्दलीय एमएलए की याचिका खारिज कर दी। अब ये एमएलए सुप्रीम कोर्ट जाने का दावा कर रहे। पर गवर्नर हंसराज भारद्वाज अब क्या करेंगे। उन ने स्पीकर के फैसले की वजह से ही येदुरप्पा सरकार को दुबारा बहुमत हासिल करने की हिदायत दी थी। पर हाईकोर्ट ने स्पीकर के फैसले को जायज माना। मौकापरस्त निर्दलीय एमएलए पहले बीजेपी से जुड़े। पर बाद में पाला बदल लिया। यों विश्वासमत हासिल करने का येदुरप्पाई तरीका भी जायज नहीं। पर गवर्नर हंसराज ने भी मिशनरी क्लब में शामिल होने की ठान रखी। गवर्नरों के जेहादी तेवरों की कई कहानी। राजस्थान में चौथे चुनाव के बाद किसी को बहुमत नहीं मिला। तो विरोधी दलों ने संयुक्त मोर्चा बना महारावल लक्ष्मण सिंह को नेता चुना। पर तब गवर्नर संपूर्णानंद ने मोर्चे से कम सीट वाली कांग्रेस के नेता मोहनलाल सुखाडिय़ा को शपथ दिला दी। हरियाणा में 1982 में लोकदल-बीजेपी गठबंधन की सीटें सबसे अधिक थीं। राज्यपाल जी.डी. तपासे ने राजभवन में समर्थकों की परेड की हिदायत दी। पर परेड से एक दिन पहले ही तपासे ने तपाक से भजनलाल को सीएम पद की शपथ दिला दी। सिब्ते रजी, एस.सी. जमीर, रोमेश भंडारी, बूटा सिंह, रामलाल, वेंकट सुब्बैया जैसे कई गवर्नर अपने जेहादी तेवर दिखा इतिहास में नाम दर्ज करा चुके। पर गवर्नरों को ऐसा मौका पाला बदलू विधायकों की वजह से ही मिलता। सो कर्नाटक हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर स्पीकर के फैसले को सही ठहराया। पर इतिहास साक्षी, गवर्नर और विधानसभा स्पीकरों ने मौका मिलने पर संविधान का मखौल उड़ाने में कभी कसर नहीं छोड़ी। सो मौकापरस्त नुमाइंदों को सजा भी मिलनी चाहिए। न्यायपालिका का फैसला सही। पर फिर कभी ऐसा न हो, ऐसी लकीर भी न्यायपालिका को ही खींचनी होगी। अपने नेताओं पर जनता को एतबार नहीं। सो शासन की कमजोरी हो या नैतिकता में गिरावट या लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन। न्यायपालिका को ही लकीर खींचनी होगी।
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14/02/2011