Wednesday, September 22, 2010

कॉमनवेल्थ के महाभारत में आयोजक ही दुशासन!

जिस देश को महात्मा ने अपने खून से सींचा। भारतवासियों को अपने देश पर गर्व। विविधता में एकता अपने देश की अमिट पहचान। पर 12 साल से दिल्ली की सीएम की कुर्सी पर बैठीं शीला दीक्षित को अब देश से नफरत हो रही। कॉमनवेल्थ गेम्स पर पानी फिर रहा। तो मैडम शीला और आयोजन से जुड़े कलमाडियों-जयपालों-गिलों के होश फाख्ता। मीडिया ने कॉमनवेल्थ की तैयारियों पर सत्य क्या बोल दिया। शीला ऐसे बिफरीं, मानो ‘सत्य’ बोलकर मीडिया ने गुनाह कर दिया हो। हिकारत भरी नजरों के साथ मीडिया पर बरसीं। बोलीं- ‘ऐसा देश नहीं देखा, जो अपने ही देश को बदनाम करे। ये मेरा, इनका या आपका गेम नहीं, देश का गेम है।’ यों सोलह आने सही, ये देश का गेम। पर यह भी सच, देश के इज्जत की डोर आयोजकों ने संभाल रखी। अगर आयोजक अपनी कमजोरी छिपाने की कोशिश करेंगे। तो मीडिया भला चुप क्यों बैठे। लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ यों ही नहीं माना गया। आखिर कब तक नेताओं को इस बात की छूट दी जाए कि वह देश को द्रोपदी बना खुद ‘दुशासन’ बने रहे? दुशासन बनने वाले नेता यह क्यों भूल जाते, तब भी लाज बचाने भगवान कृष्ण आए थे। अगर देश की इज्जत और आन-बान-शान पर कोई आंच आएगी, तो सबसे पहले मीडिया ही आगे आएगा। पर सवाल, जिन शीलाओं-कलमाडियों-जयपालों से काम नहीं संभल रहा, वे कुर्सी से चिपक उलटा मीडिया को भाषण क्यों पिला रहे? गेम्स से ठीक तेरह दिन पहले मुख्य आयोजन स्थल जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के पास बना फूटओवर ब्रिज की तेरहवीं हो जाए। अगले दिन यानी बुधवार को स्टेडियम के भीतर की सीलिंग उखड़ जाए। तो क्या मीडिया इन नेताओं की पीठ थपथपाए? कुर्सी से जोंक की तरह चिपके नेताओं के अंधे और बहरेपन को कौन नहीं जानता। अगर मीडिया अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वाह न करे। तो हिटलर की नीति लागू करने में सत्ताधीश कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। आखिर शीला दीक्षित मीडिया और भारत देश से इतनी खफा क्यों? क्या महात्मा गांधी के इस देश में ‘सत्य’ बोलना गुनाह हो गया? क्या यह सच नहीं, कॉमनवेल्थ के जो काम 2004-05 से शुरु होने थे। वह 2008 में शुरु हुए? क्या शुरुआती साल में कॉमनवेल्थ के कमीशन तय हो रहे थे? सचमुच अपने देश में राजनीति-नौकरशाही की सांठगांठ ने कमीशनखोरी को प्रथा बना दिया। जहां कोई भी प्रोजैक्ट शुरु होने से पहले कमीशन तय किए जाते। ऊपर से नीचे तक कमीशन का अनुपात बनाया जाता। फिर बचे हुए धन में कांट्रेक्टर अपना मुनाफा निकाल काम करता। सो रोड हो, या पुल या ओवर ब्रिज या सीलिंग, वही हश्र होता। जो नेहरू स्टेडियम के अंदर-बाहर हुआ। पर नेताओं की नाकामी की आंच अब सचमुच देश की साख पर आने लगी। नामी-गिरामी एथलीटों ने गेम्स में आने से इनकार कर दिया। अपने बंदोबस्तों पर ऊंगली उठा दी। सौ मीटर रेस के वल्र्ड चैंपियन वोल्ट काफी पहले दिल्ली आने से इनकार कर चुके। फिर भी शीलाओं-कलमाडियों-जयपालों-एमएस गिलों ने अफसरशाही के भरोसे सबकुछ छोड़ दिया। अब नट यानी कलई ‘ढह’ और ‘गिर’ रहे। तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे वाली हालत। ओवर ब्रिज ढहने से 27 मजदूर घायल हो गए। जिनमें चार की हालत गंभीर। पर शीला-जयपाल और टीम कलमाड़ी के ललित भनोट की नजर में यह छोटी-मोटी घटना। सोचिए, उस हादसे में किसी टाटा-बिरला-अंबानी जैसे अमीरों की कार को खरोंच भी आ जाती। तो ऐसा हल्का बयान नहीं आता। शीला के बयान को देख-सुन अब कॉमनवेल्थ गेम नहीं ‘शेम-शेम’ कहने को मजबूर। बुधवार को शीला उवाच की बनागी देखिए। बोलीं- ‘आपलोगों को सकारात्मक चीजें नहीं दिखती। एक हजार क्षमता वाले बस स्टैंड बनवाए, जैसा दुनिया में कहीं नहीं। नेहरू स्टेडियम इतना भव्य बना, पर आप नहीं दिखा रहे।’ यानी मजदूरों का घायल होना शीला के लिए खास बात नहीं। सो दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जमकर क्लास ली। मुआवजे की रकम बढ़ाने के आदेश दिए। सभी खेल स्थलों की जांच के लिए अफसरों को भेजने का हुक्म दिया। अब आप देख लो, कॉमनवेल्थ गेम्स में गड़बड़ी पर विधायिका यानी संसद, न्यायपालिका और मीडिया में आवाज उठ चुकी। तो क्या सिर्फ कार्यपालिका यानी शीला मंडली ही ईमानदार और देशप्रेमी? सो बीजेपी के वेंकैया ने भी हल्ला बोला। शीला-जयपाल को नसीहत दी, हल्के बयान देकर देश का नाम बदनाम न करें। उन ने 26 मामलों में भ्रष्टाचार की जांच की भी मांग की। पर अब तक शीला मंडली का बचाव करने वाली कांग्रेस को ‘ओवरब्रिज’ ने बता दिया। कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए बनी दीवारें भले कमजोर, पर भ्रष्टाचार की खाई बहुत गहरी। सो अभिषेक मनु सिंघवी बोले- ‘आप धैर्य रखिए, खेल अच्छे से होंगे और दोषियों की जिम्मेदारी भी तय होंगी।’ यानी कांग्रेस ने इशारा कर दिया। अगर कॉमनवेल्थ गेम्स पर देश को शर्मसार होना पड़ा। तो शीला हो या कलमाड़ी, कुर्सी छोड़ ‘कॉमन’ होना पड़ेगा। पर क्या अब तक देश की कम बदनामी हुई? कनाडा कॉमनवेल्थ गेम्स के एंड्रयू पिप ने टिप्पणी की, भारत के लिए अपनी चमक बिखेरने का मौका था। पर उसने कमियों को दूर करने के बजाए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी मोल ले ली। सचमुच जब सीवीसी ने काम की क्वालिटी पर सवाल उठाए। तो पीएमओ तक से परदा डालने की कोशिश हुई। संसद में कलमाड़ी घिरे, तो गिल ने नतमस्तक होकर बचाव किया। अब उखड़ते इंतजामों पर मैडम शीला एंड कंपनी बिफर रही।
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22/09/2010