Thursday, September 16, 2010

अयोध्या: फैसला हो, पर फासला न बढ़े

'मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में। ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलाश में।' कबीर की इस वाणी को मजहबी ठेकेदारों ने आत्मसात किया होता। तो मंदिर-मस्जिद का कोई झगड़ा न होता। पर आजादी के 63 साल बाद देश एक बार फिर खुद को वहीं खड़ा पा रहा। सो अयोध्या विवाद पर 24 सितंबर को संभावित फैसले से पहले केंद्र सरकार को अपील जारी करनी पड़ी। मनमोहन केबिनेट ने प्रस्ताव पारित कर अदालती फैसले के सम्मान पर जोर दिया। शांति सौहार्द कायम रखते हुए कानूनी विकल्प अख्तियार करने की सलाह दी। प्रस्ताव में साफ कहा गया- सभी तबके के लोगों को अदालती फैसले के बाद धैर्य और शांति रखनी होगी। एक वर्ग की ओर से दूसरे वर्ग को उकसाने का प्रयास नहीं होना चाहिए और ना ही किसी की भावनाएं आहत की जानी चाहिए। केबिनेट की अपील में संस्कृति और सर्व धर्म समभाव की दुहाई देते हुए देश की तरक्की की बात कही गई। यानी अयोध्या पर आने वाला फैसला महज अदालती फैसला नहीं, अलबत्ता विविधता में एकता वाले देश के इम्तिहान की घड़ी। सचमुच साठ साल बाद फैसले की घड़ी आ रही। अयोध्या में विवादित स्थल पर राम जन्मभूमि या बाबरी मस्जिद, इस पर लड़ाई मुगल काल से चली आ रही। मंदिर का दावा करने वालों की दलील, 1538 में बाबर ने मंदिर तोडक़र मस्जिद बनवाई। अंग्रेजों के शासनकाल में 1885 में पहली बार मुकदमा हुआ। तब मस्जिद के पास चबूतरा को भगवान राम का जन्म स्थान बता भजन-कीर्तन की इजाजत मांगी गई। पर अंग्रेज राज में फैजाबाद कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी। कोर्ट की दलील थी- मस्जिद के ठीक सामने मंदिर दो समुदायों के बीच झगड़े की वजह बनेगा। फिर 22-23 दिसंबर 1949 को राम, सीता, लक्ष्मण की मूर्ति वहां रखी गई। पहली जनवरी 1950 को निर्मोही अखाड़े के गोपाल दास विशारद ने अपील की, मूर्ति न हटाई जाए और पूजा-अर्चना की अनुमति मिले। अखाड़े की ओर से 1959 में फिर अपील दायर हुई। तो 1961 में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नमाज की अनुमति मांगी। फिर 1989 में रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने वीएचपी में शामिल होकर राम के मित्र की हैसियत से याचिका लगाई। जिसमें भगवान राम को भी एक पक्ष बनाया गया। कहा गया- मैं राम हूं, यहीं पैदा हुआ था। मेरे भक्तों को पूजा करने की छूट दी जाए। फिर दोनों पक्षों की ओर से लगातार दलीलें दी जाती रहीं। अदालती आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई कर अपनी रपट सौंप दी। बीजेपी-वीएचपी की ओर से गुरुनानक देव से लेकर ब्रिटिश किताब की दलील दी गई। हिंदू चिंतन में देव होने की दलील के साथ-साथ इस्लाम धर्म में मस्जिद के लिए जमीन खरीदे जाने वाली दलील का भी जिक्र किया गया। अब जमीन के मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच क्या फैसला सुनाएगी, यह तो 24 सितंबर को साफ होगा। पर जहां मंदिर-मस्जिद के पैरोकार अभी से माहौल बनाने में जुटे। वहां सरकार संवेदनशील मुद्दे से निपटने के उपाय में जुटी। मायावती सरकार तो पहले ही अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करने की मांग कर चुकी। गुरुवार को मनमोहन केबिनेट ने भी एहतियात बरतते हुए शांति की अपील की। यों फैसले का अंदाजा भले देश की जनता को न हो। पर अदालत में अपना पक्ष रखने वाले शायद अपनी दलीलों की ताकत भांप चुके। सो अदालती फैसले से आठ दिन पहले संघ ने बाकायदा एलान कर दिया। संघ प्रमुख मोहन भागवत तीन दिन से दिल्ली में डेरा डाले बैठे। बीजेपी-वीएचपी नेताओं के साथ लगातार मंत्रणा चल रही। सो मंत्रणा का असर गुरुवार को संघ के बयान में दिखा। संघ के प्रवक्ता राम माधव बोले- राम मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था का विषय है। संघ का पूरा प्रयास होगा कि संसद से कानून बनाकर ही समाधान ढूंढा जाना चाहिए। अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। जब कोर्ट के फैसले पर देश की निगाहें टिकी हों। तब विवाद से जुड़ा एक पक्ष अदालती फैसले के बजाए संसद से कानून बनाने की पैरवी करे। तो मायूसी का अंदाजा लगाया जा सकता। अब कोई पूछे, जब मामले में संघ-वीएचपी की ओर से पैरवी करने वाले रविशंकर प्रसाद जैसे कानूनदां अपनी दलील के प्रति आश्वस्त होकर अपना बखान कर रहे। तो फैसले से ठीक पहले संसद से कानून बनाने की मांग क्यों हो रही? क्या अब बीजेपी-संघ-वीएचपी को अपनी दलील में दम नहीं नजर आ रहा? यों वाजपेयी राज हो या संघ के पुराने तेवर, हमेशा यही कहा गया- अयोध्या विवाद आपसी बातचीत से हल हो या अदालती फैसले से। वीएचपी ने साथ में संसद से कानून पारित करने पर भी जोर दिया। अब अदालती फैसले से पहले बीजेपी में भले खामोशी हो। पर संघ परिवारियों की मंत्रणा कोई यों ही नहीं। जामा मस्जिद के शाही इमाम तो जुमातुल विदा के वक्त ही आगामी रणनीति पर विचार कर चुके। पर फिलहाल संघ में हलचल अधिक हो रही। सो केंद्र सरकार हो या अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली अदालत, कोशिश यही हो रही कि न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान हो और कहीं प्रतिक्रिया न हो। सो गुरुवार को केंद्र ने अपील जारी की। तो शुक्रवार को हाईकोर्ट ने सभी पक्षों में सहमति बनाने के लिए बुला रखा। पर संघ सोमनाथ मंदिर जैसा कानून बनाने की दलील देगा। संघ की रणनीति, अगर फैसला मंदिर के हक में नहीं आया, तो सरकार का रुख देखकर अगली रणनीति तय करेंगे। पर अपनी अपील यही, मंदिर-मस्जिद विवाद में अब तक बहुत पानी बह चुका। सो अयोध्या पर फैसला तो हो, पर कोशिश यही हो कि हिंदू-मुसलमान में फासला न बढ़े।
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16/09/2010