Thursday, January 6, 2011

रास्ते तो छह सुझाए, पर मंजिल नहीं तेलंगाना की!

तो बोफोर्स केस की फाइल फिलहाल बंद नहीं होगी। कोर्ट ने सीबीआई की नीयत पर शक जाहिर करते हुए अब दस फरवरी की तारीख तय कर दी। यों शर्म का परदा फाड़ चुकी कांग्रेस ने हर हाल में क्वात्रोची को राहत दिलाने की ठान रखी। सो अब इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल के फैसले को ही अप्रासंगिक ठहराना शुरू कर दिया। कांग्रेस की ओर से कोई ऐसे बयान आएं, तो बोलने वाले का नाम बताने की जरूरत नहीं। बटला हाउस एनकाउंटर में अपने सुरक्षा बल की शहादत को भुला मारे गए आतंकवादी के प्रति सहानुभूति जतानी हो। आतंकी के घर वालों को दिलासा दिलाने आजमगढ़ जाने की बात हो। नक्सलवादियों से प्यार करने की बात हो। या आतंकवाद पर वोट बैंक की सियासत। सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता का काम। सो जो भी मामला कांग्रेस के खिलाफ जाता हो, अपने दिग्विजय सिंह सिर्फ सवाल उठाना ही जानते। अब उनने ट्रिब्यूनल के फैसले के समय पर ही सवाल उठा दिए। दलील दी- फैसला 31 दिसंबर को ही क्यों आया, इसकी जांच हो। अब आप क्या कहेंगे? ट्रिब्यूनल ने जो सबूत दिए, उन पर कांग्रेस गौर नहीं कर रही। सो कहीं ऐसा न हो, हर मुद्दे पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले दिग्विजय देश के लिए ही प्रश्न बन जाएं। कोई भी नागरिक यह सवाल पूछ सकता- आखिर क्वात्रोची के लिए ऐसी जिद क्यों ठान रही कांग्रेस? क्वात्रोची तो एक दलाल। फिर पूरी सरकार ऐसे बचाने में क्यों जुटी, मानो सगा हो। अब भले सरकार ‘फोर्स’ लगाकर बोफोर्स की फाइल बंद करवा ले। पर सवाल फिर भी रहेगा, आखिर दलाली की रकम गई कहां? क्वात्रोची पर इतनी मेहरबानी की क्या वजह रही? यों कांग्रेस ने जितनी क्वात्रोची की फिक्र की। उसकी आधी फिक्र भी आम आदमी के लिए की होती। तो महंगाई की मारी जनता आज खून के आंसू नहीं रोती। चिदंबरम तो कह ही चुके- महंगाई रोकना सरकार के बूते में नहीं। सोनिया-मनमोहन-प्रणव जुबानी चिंता जता रहे। सो खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 18.32 फीसदी पहुंच गई। आखिर यह आम आदमी के साथ कैसी दिल्लगी, जो सीधे दिल को लग रही। पर जनता के साथ वादाखिलाफी शासकों की फितरत बन चुकी। तभी तो तेलंगाना की आग थमने का नाम नहीं ले रही। पिछले साल नौ दिसंबर को केबिनेट ने आनन-फानन में फैसला लिया। चिदंबरम ने तेलंगाना गठन का सार्वजनिक एलान कर दिया। पर ऐसी आग लगी, कांग्रेस दोधारी तलवार पर खड़ी दिखी। सो आम सहमति के नाम पर पल्ला झाडऩे की कोशिश हुई। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बी. श्रीकृष्ण की रहनुमाई में कमेटी बना दी। अब साल भर बाद कमेटी की रपट आ गई। गुरुवार को आंध्र से जुड़े सभी राजनीतिक दलों की मीटिंग में रपट सार्वजनिक हुई। कमेटी ने मसले के समाधान के लिए छह विकल्प सुझाए। पर विकल्प देखकर बचपन की कुछ यादें ताजा हो गईं। गांव का कोई बच्चा शहर से पढक़र छुट्टियों में घर आता। तो दो-चार लोग घेरकर उसकी परीक्षा लेने लगते। अक्सर यह सवाल पूछकर उसकी परीक्षा ली जाती। इसका अंग्रेजी में अनुवाद करो- छब्बू की छत पर छह छछूंदर छह दिनों से छछुआ रहे थे। अब कोई भी व्यक्ति ऐसे सवाल से सिर धुनने लगे। अब आप खुद ही श्रीकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट के छह सुझाव देखिए। पहला- संयुक्त आंध्र प्रदेश कायम रखा जाए। दूसरा- आंध्र प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटा जाए। तीसरा- आंध्र प्रदेश को रायल तेलंगाना और तटीय आंध्र, दो राज्यों में बांट दिया जाए। चौथा- आंध्र को दो राज्यों में बांटकर वृहत हैदराबाद को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। पांचवां- मौजूदा भौगोलिक सीमा के आधार पर ही सीमांध्र और तेलंगाना राज्य का निर्माण हो, साथ ही हैदराबाद को तेलंगाना की राजधानी बना दिया जाए। सीमांध्र अपनी नई राजधानी अलग बना ले। छठवां- आंध्र प्रदेश को संयुक्त रख तेलंगाना क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वैधानिक रूप से अलग रीजनल काउंसिल बनाई जाए। अब कोई पूछे- कमेटी ने क्या नया सुझाव दिया? कमेटी ने अपनी छह सिफारिशों में से तीन तो खुद ही अव्यवहारिक बता दीं। सो कमेटी की साल भर की एक्सरसाइज का क्या फायदा मिला? तेलंगाना का मुद्दा जहां था, वहीं अटका पड़ा। तेलंगाना को लेकर ऐसे फार्मूले पहले भी आ चुके। सो कुल मिलाकर कमेटी ने सभी फार्मूलों का संकलन कर रपट सौंप दी। पर रपट आते ही विरोध शुरू हो गया। टीआरएस ने हैदराबाद के साथ तेलंगाना से कम कुछ भी मंजूर न करने का एलान कर दिया। तो अब दोधारी तलवार पर चल रही कांग्रेस और चिदंबरम ने छठे विकल्प को कारगर बताना शुरू कर दिया। यानी रीजनल काउंसिल बना क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने की कोशिश। पर क्या यह फार्मूला भी कारगर होगा? तेलंगाना का आंदोलन 1960 के दशक में शुरू हुआ। तो कांग्रेस से अलग होकर डा. चेन्ना रेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति बनाई। पर तभी जवाब में जय आंध्र का गठन हुआ। फिर विकास और रोजगार के असंतुलन को दूर करने के लिए 1967 में तेलंगाना के लिए पब्लिक एंप्लायमेंट एक्ट में संरक्षण की व्यवस्था की गई। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहरा दिया। अगर तभी सरकार जाग गई होती, तो छठा फार्मूला आज सचमुच कारगर दिखता। पर अब बहुत देर हो चुकी। सो तेलंगाना की खातिर निकली तलवार अब म्यान में वापस पहुंचाना संभव नहीं। शरद यादव ने तो सोलह आने सही कहा- कमेटी की रिपोर्ट दिशाहीन। हम जहां थे, वहीं खड़े हैं। सचमुच कमेटी ने रास्ते तो छह सुझाए। पर मंजिल नहीं मिल रही।
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06/01/2011