Thursday, April 22, 2010

मोदी को हटाने की रस्म भर न रह जाए जांच

क्या ललित मोदी देश और क्रिकेट की जरूरत बन गए हैं? क्या मोदी-आईपीएल के सिवा देश की कोई समस्या ही नहीं? फटाफट क्रिकेट से फटाफट पैसे कइयों ने बनाए। पर जांच सरकारी अंदाज में ही क्यों चल रही? क्या सोमवार या मोदी के हटने तक यही खेल चलता रहेगा? बीसीसीआई के चीफ तो शशांक मनोहर। उन ने मोदी पर गैरकानूनी ढंग से काम करने का आरोप लगाया। बिन मोदी भी 26 अप्रैल की मीटिंग का खम ठोका। तो सवाल, अगर मोदी गलत, तो फिर आईपीएल सीजन-थ्री खत्म होने का इंतजार क्यों? आखिर बाकी लोग ईमानदार, तो एक बेईमान को क्यों नहीं हटा पा रहे? पर सच्चाई शायद कुछ और। आईपीएल के हमाम में सिर्फ मोदी नहीं, बड़े-बड़े सूरमा नंगे। सो शशि थरूर के ट्विटर से निकला आईपीएल का जिन्न अब बोतल में जाने को राजी नहीं। अब ट्विटर प्रेम से थरूर नपे। तो प्रफुल्ल पटेल के गले ई-मेल का फंदा। सरकार में पटेल नागरिक उड्डयन मंत्री का ओहदा संभाल रहे। सो दो-चार दिन की ना-नुकर के बाद अब खुद प्रफुल्ल पटेल ने मान लिया। थरूर की मदद करने के लिए ललित मोदी से बात की थी। पर ई-मेल का खेल देखिए। कोच्चि-पुणे टीम की नीलामी से दो दिन पहले आईपीएल के सीईओ सुंदर रमन ने प्रफुल्ल की बेटी पूर्णो पटेल को ई-मेल भेजा। पूर्णो आईपीएल में बतौर कर्मचारी तैनात। पूर्णो ने ई-मेल अपने पिता के निजी सचिव चंपा को भेजा। फिर चंपा ने शशि थरूर को। ई-मेल में बोली लगने वाली दोनों टीमों के बारे में आय-व्यय का अनुमान था। अब एनसीपी इसे गोपनीय नहीं, साधारण दस्तावेज बता रही। पर सवाल, मेल इतने रास्तों से होता हुआ थरूर तक क्यों पहुंचा? अब झूठ-सच का भी खेल देखिए। सुंदर रमन को पता नहीं पूर्णो ने मेल पिता के पीए को क्यों भेजा। पर पूर्णो की दलील, सुंदर के कहने पर ऐसा किया। अब कोई पूछे, नीलामी से पहले ही नफा-नुकसान का ब्यौरा भेजने का क्या मतलब? पर सिर्फ प्रफुल्ल का ही नाम नहीं, खुद पवार के समधी बी. आर. सुले का भी नाम। सो गुरुवार को पवार की सांसद पुत्री सुप्रिया सुले ने आईपीएल में अपने पति की हिस्सेदारी का खंडन किया। पर श्वसुर का प्रसारण कंपनी एमएसएम में दस फीसदी शेयर 1992 से। यही बात एनसीपी प्रवक्ता डी.पी. त्रिपाठी ने भी कही। बोले- सुले का शेयर तबसे, जब आईपीएल का जन्म भी नहीं हुआ था। चुनौती दी, अगर किसी के पास सबूत हों, तो दिखाए। एनसीपी का आईपीएल से कोई लेना-देना नहीं। अब एनसीपी की सफाई तो ठीक, पर डी.पी. त्रिपाठी ने एक और बात कही। बोले- हम खेल के राजनीतिकरण में विश्वास नहीं करते। शायद इससे बड़ा मजाक नहीं हो सकता। पर त्रिपाठी से जब पूछा गया- थरूर ने इस्तीफा दिया, तो पटेल-पवार क्यों नहीं। तपाक से जवाब आया- ऐसा सवाल ही नहीं उठता। त्रिपाठी ने लगे हाथ यह भी कह दिया, बीजेपी के लोग भी तो बीसीसीआई से जुड़े। कांग्रेस कोई दबाव नहीं डाल रही। हमारा गठबंधन ठीक-ठाक चल रहा। अब गठबंधन ठीक-ठाक कैसे न चले। आईपीएल की वित्तीय अनियमितता पर बवाल मचा हुआ। तो इधर सरकार का वित्त विधेयक संकट में। समूचा विपक्ष एकजुट होकर 27 अप्रैल को कटौती प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा। ऐसे में कांग्रेस भला सहयोगियों को नाराज करने का जोखिम क्यों उठाए। सो थरूर की विदाई के बाद जब प्रणव-चिदंबरम-पवार मंगलवार को बैठे थे। तब यही तय हुआ, कम से कम मोदी को हटाओ। पवार भी मान गए। तभी तो गुरुवार को प्रणव दा ने प्रफुल्ल पटेल का नाम उछलने पर चुप्पी साध ली। दो-टूक कहा- जांच चल रही है, उसके बाद ही कुछ कहेंगे। सो पवार के दूध में मक्खी बने ललित मोदी बौखला गए। चौतरफा घिरे मोदी कभी गवर्निंग कॉउंसिल की मीटिंग को अवैध ठहरा रहे। तो अब कोर्ट जाने की धमकी। पर मोदी कहीं भी जाएं, जैसे राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन से विदाई हुई। आईपीएल की कमिश्नरी भी जानी तय। मोदी शायद भूल गए, आईपीएल उनके घर की दुकान नहीं, अलबत्ता बीसीसीआई के मातहत। पर मोदी की बौखलाहट की वजह पवार की कांग्रेस से राजनीतिक सांठगांठ। सो मोदी बीसीसीआई के अमर सिंह हो गए। ब्लैकमेल पर उतर आए। कभी राज खोलने की धमकी दे रहे। तो कभी ऐसा दिखा रहे मानो, मोदी बिन आईपीएल सून। सपा से विदाई से पहले अमर सिंह ने हू-ब-हू यही किया था। पहले ब्लॉग लिख नाराजगी जाहिर की। फिर मुलायम सिंह के राज खोलने की धमकी। कभी कुछ, तो कभी कुछ बोलते रहे। यही हाल ललित मोदी का। ट्विटर से खेल शुरू हुआ। पर अब इनकम टेक्स से लेकर प्रवर्तन निदेशालय तक पीछे पड़ चुका। अब तक की जांच में 275 करोड़ के घोटाले की खबर। सो कभी आईटी, तो कभी ईडी मोदी से घंटों पूछताछ कर रहा। यानी एनसीपी, सरकार, बीसीसीआई, बीजेपी हर जगह से एक बात बिलकुल साफ हो रही। ललित मोदी 26 अप्रैल को विदा होंगे। यानी आईपीएल में राजनीति का खेल घुस चुका। हर रोज छापे पड़ रहे। दस्तावेज खंगाले जा रहे। पर हैवीवेट नए नामों से सबको सांप सूंघ रहा। प्रणव दा भी जांच की बात कर रहे। थरूर के इस्तीफे के लिए संसद ठप कराने वाली बीजेपी भी। पवार-प्रफुल्ल का नाम उछला। तो गोपीनाथ मुंडे बोले- चाहे कोई भी हो, जांच होनी चाहिए। पर इस्तीफा नहीं होगा। सो कहीं ऐसा न हो, मोदी को डंप करने के बाद भ्रष्टाचार का आईपीएल दब जाए। और जांच के बाद लोग यह कहने को मजबूर न हों- ना बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपैया।
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22/04/2010