Wednesday, October 13, 2010

कॉमनवेल्थ, कर्नाटक और क्लाइमैक्स!

तो कॉमनवेल्थ और कर्नाटक क्लाइमैक्स के दौर में पहुंच गए। गुरुवार को खेल का महाकुंभ भी निपटेगा। कर्नाटक की राजनीतिक उठापटक भी थमेगी। पर संयोग, दोनों 'खेल' निपटाने के बाद भी कर्ताधर्ता राहत की सांस नहीं ले पाएंगे। कॉमनवेल्थ गेम्स के भ्रष्टाचार की परतें फिर से उधड़ेंगी। बेतहाशा खर्च पर सवाल पहले की तरह ही उठेंगे। पर मैडल और उद्घाटन-समापन के जश्न में कहीं भ्रष्टाचार दफन न हो जाए। स्टेडियम के निर्माण पर बेतहाशा खर्च का सवाल संसद में उठा था। तो खेल मंत्री एमएस गिल ने खर्च को जायज ठहराने की नौकरशाही दलीलें खूब दी थीं। सो कॉमनवेल्थ में हुए भ्रष्टाचार को लेकर किसी को सजा मिलेगी, उम्मीद ना के बराबर। अब तो पेट भरने के बाद आयोजकों में पीठ ठोकने की होड़ मच चुकी। शीला अपनी पीठ ठोक रहीं, तो कलमाड़ी अपनी। गिल-जयपाल की भूमिका तो फिलहाल न तीन में, न तेरह में। पर बीजेपी तो इसी से गदगद कि कलमाड़ी ने उद्घाटन समारोह में ही कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी का नाम लिया। अगर कॉमनवेल्थ के आयोजन की तारीफ हुई। तो इसमें कोई शक नहीं, श्रेय बटोरने बीजेपी भी मैदान में कूदेगी। पर कॉमनवेल्थ की बात समापन के बाद करेंगे। फिलहाल कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक कॉमनवेल्थ की कहानी। बुधवार को बीजेपी ने गवर्नर हंसराज भारद्वाज पर हमला तेज कर दिया। आडवाणी-जेतली-सुषमा-वेंकैया ने मोर्चा उठा पीएम के दर अलख जगाई। हंसराज के समूचे राजनीतिक कैरियर और गवर्नरी का पोथा पीएम के सामने खोल दिया। बीजेपी ने हंसराज को संविधान से हटकर काम करने वाला नेता साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीएम को सौंपे ज्ञापन में बीजेपी ने कहा- हंसराज भारद्वाज राज्यपाल बनाए जाने के बावजूद राजनीतिक अतीत और राजनीति से खुद को अलग नहीं रख पाए। उन ने यह साबित कर दिया कि वह गवर्नर जैसे संवैधानिक पद के लायक नहीं हैं। अरुण जेतली बोले- कानून मंत्री के रूप में भी हंसराज भारद्वाज ने ऐसे आचरण किए। जिससे यह साफ हो गया कि संविधान से इतर उनकी एक आस्था है और अपनी वफादारी साबित करने में संविधान से इतर काम करना उनकी राजनीतिक रणनीति रही है। इतना ही नहीं, निष्पक्ष रहना हंसराज भारद्वाज के स्वभाव में ही नहीं है। यानी बीजेपी ने अपनी तरफ से सारे तथ्य गिना दिए। जैसे कभी मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला और बूटा सिंह, एससी जमीर, सिब्ते रजी के मामले में गिनवा चुकी। पर बीजेपी की शिकायत का हश्र क्या हुआ, सबको मालूम। जब सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा भंग करने को असंवैधानिक ठहराया, तब भी मनमोहन ने बूटा को न हटाया और न बूटा ने खुद इस्तीफा दिया। अलबत्ता जब कोर्ट ने विस्तृत फैसला दिया। तो बूटा गवर्नरी से चलता हुए। नवीन चावला के मामले में तो मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी की सिफारिश कूड़े के डिब्बे में डाल दी गई। सो हंसराज पर कोई कार्रवाई होगी, ऐसी उम्मीद फिलहाल तो नहीं। तभी तो बीजेपी नेताओं की शिकायत मनमोहन ने मौनी बाबा की तरह तफ्सील से सुनी। पर कोई भरोसा नहीं दिया। वैसे भी हंसराज पर कार्रवाई मनमोहन के वश की बात नहीं। जब तक हंसराज पर दस जनपथ का साया, उनकी कुर्सी पर कोई काली छाया नहीं पड़ सकती। पर गवर्नर की वजह से कांग्रेस की किरकिरी हो चुकी। यों जेहाद पर उतरे गवर्नर की सिफारिश पर बटन दबाया होता। तो कर्नाटक का मुद्दा कांग्रेस के लिए फिदायीन बन जाता। सो अबके कांग्रेस ने सब्र से काम लिया। गवर्नर की सिफारिश को किनारे कर एक और मौका देने की हिदायत दी। ताकि गवर्नर की लाज बच जाए और बीजेपी को भी शिकायत का मौका न मिले। सचमुच गवर्नर हंसराज ने कर्नाटक में जिस तरह से काम किया, अब कांग्रेस के नेता खुद चूक मान रहे। कांग्रेस मान रही, गवर्नर ने पद की मर्यादा से इतर कांग्रेस के नेता की तरह बयानबाजी की। प्रदेश कांग्रेस भी इस मुद्दे को सही ढंग से हैंडल नहीं कर पाई। अगर कांग्रेस ने पहले से ही आक्रामक तेवर अपनाया होता। तो बीजेपी को राजनीतिक बढ़त नहीं मिलती। रही-सही कसर गवर्नर हंसराज ने अपने नौकरशाह सलाहकारों की वजह से जल्दबाजी दिखाकर पूरी कर दी। अगर राष्ट्रपति की सिफारिश करने में वक्त लेते, तो शायद बीजेपी को भी बहुमत हासिल करने के तरीके पर जवाब देना भारी पड़ता। पर फौरी सिफारिश कर गवर्नर ने हवा का रुख बीजेपी के पक्ष में मोड़ दिया। अब बेभाव की पड़ी, तो गवर्नर अपनी ही चाल में फंस गए। गुरुवार को येदुरप्पा सरकार फिर से विश्वास प्रस्ताव पेश करेगी। तो 208 की विधानसभा में ही बहुमत साबित करना होगा। क्योंकि अयोग्य करार दिए गए सोलह एमएलए हाईकोर्ट जा चुके। जिनका फैसला सोमवार को आएगा। बुधवार को पांच निर्दलीयों ने जल्द राहत की मांग की। सीलबंद लिफाफे में वोट का हक मांगा। पर कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। अब हवा का रुख देख एक निर्दलीय एमएलए की वापस बीजेपी की ओर लौटने की खबर। सो येदुरप्पा ने विश्वास मत जीत लिया। तो गवर्नर की पहली सिफारिश पर सीधे सवाल उठेंगे। यों कर्नाटक का क्लाइमैक्स भले गुरुवार को खत्म हो जाए। पर येदुरप्पा सरकार की स्थिरता पर सस्पेंस बना रहेगा। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया- गुरुवार का विश्वास मत उसके सोमवार के फैसले से ही तय होगा।
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13/10/2010