Wednesday, April 14, 2010

कांग्रेस को भी लगा बीजेपी वाला रोग

बजट सत्र के दूसरे चरण की तैयारी हो गई। विपक्ष के तरकश में थरूर, एटमी दायित्व बिल, महिला आरक्षण, महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव जैसे मुद्दे। तो सत्ता पक्ष की राह में कांटे ही कांटे। अब थरूर पर भले राजनीतिक पारा चढा हुआ। पर शशि थरूर असम में छुट्टियां मनाने चले गए। पीएम मनमोहन ने वाशिंगटन से ही एलान कर दिया। जांच के बाद ही थरूर पर कोई कार्रवाई संभव। यानी पीएम के लौटने तक आईपीएल की परतें उधड़ती रहेंगी। बुधवार को थरूर को धमकी भरा एसएमएस आया। तो उधर ललित मोदी ने मजाक उड़ाया, मुझे भी धमकी आई। सो संसद में आईपीएल का करप्शन सिर चढक़र बोलेगा। पर असली मुसीबत आंतरिक सुरक्षा की। विपक्ष ने ब्रेक के बाद पहले दिन ही दंतेवाड़ा कांड पर कामरोको प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया। आडवाणी के घर मीटिंग में एनडीए ने तय किया। अब जब दंतेवाड़ा हमले पर होम मिनिस्टर चिदंबरम के खिलाफ अपने ही जहर बुझे तीर छोड़ रहे। तो विपक्ष भला क्यों चूके। चिदंबरम ने इस्तीफे की पेशकश का सुर्रा छोड़ विरोधियों को चित करने की सोची। पर विरोध थमने का नाम नहीं। तभी तो पीएम के आदेश पर जारी कैबिनेट सैक्रेटरी के.एम. चंद्रशेखर के फरमान की धज्जियां अपनों ने ही उड़ा दी। कांग्रेस के जनरल सैक्रेट्री दिग्विजय सिंह ने बाकायदा लेख लिखकर सवाल उठाए। तो रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में साफ कर दिया। बंगाल में चल रहा नक्सल विरोधी ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद हो। ममता की दलील, ऑपरेशन जनता और विपक्ष को कुचलने की साजिश है। सो संसद में सरकार कैसे अपना बचाव करेगी, यही देखने वाली बात। यों नक्सली ऑपरेशन के खिलाफ ममता की मजबूरी अलग। पर कोई पूछे, दिग्गी राजा की क्या मजबूरी, जो उनने मीडिया के जरिए चिदंबरम के खिलाफ मोर्चा खोला? दिग्विजय ने चिदंबरम को बौद्धिक अकड़ू, ज्यादा बुद्धिमान और जिद्दी बताया। नक्सलवाद के खिलाफ चिदंबरम के तौर-तरीकों को कटघरे में खड़ा किया। कहा- च्चिदंबरम माओवादी समस्या को लॉ एंड ऑर्डर की तरह देख रहे हैं। जबकि इसे आदिवासी समस्या के नजरिए से देखा जाना चाहिए।ज् उनने चिदंबरम के जिद्दी रवैया पर कुछ यूं फोकस किया। लिखा- च्मैंने जब चिदंबरम के सामने अपना सुझाव रखा। तो उन्होंने इसे अपनी जिम्मेदारी मानने से इनकार कर दिया। जबकि केबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के तहत होम मिनिस्टर का यह फर्ज बनता है कि वह मुद्दे को संपूर्णता में केबिनेट के समक्ष रखे, न कि मतांध होकर।ज् यानी खुन्नस की जड़, चिदंबरम ने भाव नहीं दिया। पर दिग्गी राजा किसकी पैरवी कर रहें? क्या बंदूक थामे नक्सली से बातचीत होगी? अगर विकास की मुख्य धारा में शामिल होना है। तो बंदूक छोड़ बातचीत की मेज पर आना होगा। पर दिग्गी कभी हिंदू आतंकवाद का जुमला उछालते। तो कभी बटला हाउस मुठभेड में मारे गए आतंकियों के घर जाकर सहानुभूति जताते। यों दिग्गी राजा ने बीजेपी को भी निशाने पर लिया। छत्तीसगढ़ में बीजेपी की चुनावी जीत को नक्सली सांठगांठ का नतीजा बताया। राज्य की जिम्मेदारी पर भी सवाल उठाए। पर असली निशाना चिदंबरम और नक्सलियों से निपटने का उनका तरीका ही रहा। अब दिग्गी राजा अपनी ही सरकार के होम मिनिस्टर पर इतना बड़ा आरोप मढ़े। तो बिना राहुल-सोनिया की सहमति संभव नहीं। चिदंबरम ने इस्तीफे की खबरें प्लांट की थी। तो समूची कांग्रेस असहज हो गई। चिदंबरम की नक्सलियों पर सख्ती कुछ कांग्रेसियों को हजम नहीं हो रही। या यों कहें, कांग्रेस एक तरफ सख्ती, तो दूसरी तरफ नरमी का संदेश देना चाह रही। पर दिग्गी राजा ने अपने लेख में कुछ अहम सवाल उठाए। मसलन, नक्सली समस्या जंगली क्षेत्र में रहने वाले लोगों की उम्मीद को नजर अंदाज कर नहीं सुलझ सकती। क्या इन तक जनवितरण प्रणाली, मनरेगा, स्वास्थ्य मिशन और अन्य गरीबपरक नीतियां पहुंची? क्या हमारी वन नीति, खनन नीति, भूमि व जल नीति जनता केंद्रित हैं? उस ऐतिहासिक पेसा कानून का क्या हुआ, आदिवासियों में पंचायती व्यवस्था के लिए बनी थी? क्या जन सहयोग के बिना सिर्फ पुलिस-सेना के जरिए नक्सल समस्या सुलझ जाएगी? बुलेट नक्सलियों की बंदूक से निकले या पुुलिस की बंदूक से। आखिरकार शिकार आम हिंदुस्तानी ही होगा। सो उस क्षेत्र की समस्या सुलझाए बिना नक्सलवाद से नहीं निपटा जा सकता। अब भले दिग्गी राजा की बात सही। पर सवाल देख यही लगा, दिग्गी राजा सत्ता पक्ष के नेता कम, विपक्ष के ज्यादा हैं। अब कोई दिग्गी राजा से पूछे, आजादी के साठ साल तक आदिवासी मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाएं। तो जिम्मेदार किस सरकार की नीतियां। देश में करीब 50 साल तक कांग्रेस का ही राज रहा। जिन नीतियों की बात दिग्गी ने की, पिछले छह साल से मनमोहन सरकार क्या कर रही। रही बात राजनीतिक सांठगांठ की। तो वाकई नेता ही एक-दूसरे की पोल खोल सकते। पर दिग्गी राजा को अपनी बात कहने के लिए सार्वजनिक मंच की जरुरत क्यों पड़ी? आखिर मुद्दे ने तूल पकड़ा। तो कांग्रेस ने बटला की तर्ज पर दिगगी को फिर नसीहत दी। निजी राय भी पार्टी फोरम पर ही रखे। अब दिग्गी की निजी राय हो या किसी के इशारे पर दी गई। कांग्रेस को भी बीजेपी का रोग लग गया। जैसे बीजेपी में पार्टी फोरम से पहले नेता मीडिया में बोलते। वैसे ही अब कांग्रेस ने किया।
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14/04/2010