Monday, January 11, 2010

कांग्रेस की लफ्फाजी या लफ्फाजी भरी कांग्रेस?

इंडिया गेट से
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कांग्रेस की लफ्फाजी या
लफ्फाजी भरी कांग्रेस?
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 संतोष कुमार
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          तो आज की शुरुआत सवाल से। क्या अपनी राजनीति की जुबान ही भद्दी हो चुकी या सिर्फ जुबान की राजनीति हो रही? माना, एचडी देवगौड़ा दंतहीन, विषहीन यानी सत्ताविहीन हो चुके। तो क्या बौखलाहट में किसी को भी डंक मारते रहेंगे। देवगौड़ा देश के पीएम रह चुके। पर कभी 'राष्ट्रीय'  न हुए, न शायद होंगे। कर्नाटक की राजनीति में ही उमड़-घुमड़ करते रहे। कभी खुद सीएम बनने की ललक। तो कभी बेटे को सीएम बनाने की अलख। सो कर्नाटक में एक ही टर्म में बीजेपी-कांग्रेस-देवगौड़ा ने सत्ता सुख भोगा। पर बीजेपी और कांग्रेस की सरकार में गौड़ा कॉमन फैक्टर रहे। कभी इधर तो कभी उधर। सो चुनाव में जनता ने इधर-उधर कहीं का न छोड़ा। यानी देवगौड़ा की बौखलाहट लाजिमी। पर पूर्व पीएम की मर्यादा भी तो कोई चीज। देवगौड़ा ने कर्नाटक के सीएम येदुरप्पा को बास्टर्ड कह दिया। देर रात जाकर माफी मांगी। तो ऐसे, मानो अहसान कर रहे। बोले- 'अगर येदुरप्पा मेरी टिप्पणी से वाकई आहत हुए हैं। तो मैं माफी मांगता हूं।'  पर राजनीति में किसकी जुबान ओछी नहीं। हाल के ही कुछ साल का मजमून आप देख लीजिए। वाजपेयी पीएम थे। तो नरेंद्र मोदी ने विरोधी दल की नेता और उनके बेटे के लिए इटली की कुतिया-जर्सी बछड़ा शब्द इस्तेमाल किया। प्रमोद महाजन ने भी मोनिका लेविंस्की से तुलना कर दी। जेतली ने पीएम मनमोहन सिंह को नाइट वॉचमैन बताया। पर कांग्रेसी भी कम नहीं। कभी पीएम वाजपेयी को गद्दार कहा। तो गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कह चुकीं। हाल ही में मोदी का कांग्रेस को बुढिय़ा और गुडिय़ा कहना भी उम्दा जुबान नहीं। अब बीजेपी नेता पर भद्दी टिप्पणी हुई। तो बीजेपी देवगौड़ा को इशारों में ही मेंटल कह रही। सत्ता न होने की हताशा बताया। पर सत्ता में तो बीजेपी भी नहीं। सो बीजेपी की इस खस्ता हालत की क्या वजह? अब विनय कटियार भी गोविंदाचार्य की राह पर। तो बीजेपी कह रही- 'हमारे यहां पढऩे-पढ़ाने, अध्यात्म की परंपरा। वैसे भी कटियार सरयू किनारे बसते हैं।'  यानी हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। कटियार को बीजेपी ने इशारा कर दिया। अब देखने वाली बात तब होगी, जब अगले महीने इंदौर के तंबू में बीजेपी की वर्किंग कमेटी-कॉउंसिल होगी। कहीं ऐसा न हो, पहले दिन ही तंबू का बंबू उखड़ जाए। पर बीजेपी को छोडि़ए। देवगौड़ा की अभद्र भाषा पर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल हुए। तो सिंघवी ने पहले जी-भर येदुरप्पा को कोसा। आखिर में नैतिक सिद्धांत और मर्यादित भाषा का पाठ पढ़ाया। पर देवगौड़ा का नाम न लिया। यानी राजनीति की मर्यादा भी वक्त के हिसाब से। पर भाषा सिर्फ गाली-गलौज की नहीं। एक भाषा आम आदमी की खातिर भी। आप जरा खुद गौर फरमाइए। महंगाई का करंट 11000 वोल्ट से दौड़ रहा। पर शरद पवार मन के साथ-साथ शरीर से भी हांफ रहे। सो कह दिया- 'महंगाई कब कम होगी, मुझे नहीं पता। मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं।' पर पवार शायद भूल गए। अगर वह ज्योतिषी होते, तो कुंभ के मेले में किसी घाट पर चंदन घिस रहे होते। लोगों के हाथ की रेखा देख ठगी का धंधा कर रहे होते। यों अब भी पवार का काम कुछ खास अलग नहीं। दो टर्म से देश के कृषि-खाद्य मंत्री। पर लोगों को सिर्फ झूठे दिलासे दिला रहे। यों शरद पवार हों या कांग्रेस, वक्त के हिसाब से महंगाई पर अलग-अलग दलीलें जरूर दीं। ताकि आम आदमी एक ही दलील सुनते-सुनते बोर न हो जाए। पवार ज्योतिषी नहीं। तो वित्त मंत्री रहते पी. चिदंबरम भी कह चुके- 'महंगाई रोकने को मेरे पास जादुई छड़ी नहीं।'  कभी एनडीए राज पर ठीकरा फोड़ा, तो कभी बीजिंग ओलंपिक पर। कभी आर्थिक महामंदी को कोसा। अब कांग्रेस अपना दामन बेदाग दिखाने को शरद पवार पर चढ़ बैठी। केबिनेट कमेटी ऑन प्राइस में पीएम पवार को खरी-खरी सुना चुके। इसे कहते हैं हाथी के दांत। पर क्या कांग्रेस और सरकार जिम्मेदार नहीं? सोनिया गांधी की सीडब्लूसी कई दफा प्रस्ताव पास कर चुकी। पर सरकार सोई रही। तो सोनिया ने कड़े कदम क्यों नहीं उठाए? सोनिया तो संसदीय दल की अध्यक्ष। पीएम मनमोहन हों या वित्तमंत्री प्रणव। आखिर हैं तो सोनिया द्वारा ही नियुक्त नेता। पर कांग्रेस कह रही, महंगाई रोकने को आवश्यक कदम उठाए जा रहे। फिर भी महंगाई नहीं रुक रही। सो अकेले पवार पर हमला कांग्रेस की नई लफ्फाजी। जैसे शशि थरूर पर कांग्रेस कर रही। सादगी पर कैटल क्लास, हैडली-वीजा और अब नेहरू पर सवाल उठाए। पर हमेशा की तरह कांग्रेस गरजी, बरसी नहीं। यानी लफ्फाजी में कांग्रेस की सानी नहीं। तभी तो चीन इंच-इंच करके भारतीय सीमा में घुसपैठ कर चुका। पर अपनी सरकार को देखो, न सही मैप और न ही घुसपैठ का अंदाजा। मीडिया ने घुसपैठ का मामला उठाया। तो विदेश मंत्रालय से संयम की नसीहत मिल गई। चीन के मुद्दे पर मनमोहन सरकार गांधारी की भूमिका में। कभी मैकमोहन लाइन को लेकर चीन पर दबाव नहीं बनाया। अबके लद्दाख में जैसी चीन की घुसपैठ, 1962 में चीन ने तवांग पर ऐसे ही कब्जा किया। फिर महीने भर बाद चीन-भारत युद्ध। जैसा राग चीन पर, वैसा ही आस्ट्रेलिया में नस्ली हमले पर। सो इतिहास देखकर आप खुद ही तय कर लें। आजादी से अब तक सत्ता में रहते कांग्रेस ने सिर्फ लफ्फाजी की या कांग्रेस आदतन ही लफ्फाजी भरी।
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11/01/2010