Friday, March 4, 2011

भ्रष्टाचार के ‘मोड़’ पर क्वात्रोची बरी!

कहने को संसद सर्वोच्च, पर विधानसभा चुनाव भारी पड़ रहा। चुनाव की खातिर बजट सत्र का गला घोंटने पर सत्तापक्ष-विपक्ष में जबर्दस्त सहमति बन गई। सो संसद सत्र रिशिड्यूल होना तय। अब पहला चरण होली के बाद 25 मार्च तक चलेगा। फिर चुनावी शोर खत्म होने के बाद 23 मई से 10 जून के बीच दसेक दिन का सत्र बुलाया जाएगा। सो संसद सत्र पर मंडराए चुनावी बादल से कवि सुदामा पांडे धूमिल की कुछ पंक्तियां याद आ गईं। जिनमें लिखा- संसद तेल की वह घानी है, जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है। और यदि यह सच नहीं है, तो यहां एक ईमानदार आदमी को अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है। जिसने सत्य कह दिया है, उसका बुरा हाल क्यों है? धूमल की ये पंक्तियां कवि की कल्पना नहीं, सच्चाई। संसद में कोई भी सरकार सच का सामना नहीं करना चाहती। विपक्ष भी विरोध की रस्म-अदायगी कर चुप बैठ जाता। सो थॉमस मसले पर शुक्रवार को बीजेपी ने चुप्पी की चादर ओढ़ ली। पर पहली बार पीएम ने जम्मू जाकर जुबान खोली। तो बतौर पीएम जिम्मेदारी कबूल ली। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सम्मान की बात दोहराई, भविष्य में ऐसा न होने का भरोसा दिलाया। पर सूखी-सूखी जिम्मेदारी कबूलने का क्या मतलब? अब तो एक और झूठ सामने आया। गुरुवार को कानून मंत्री मोइली ने थॉमस के इस्तीफे की पुष्टि की थी। पर शुक्रवार को थॉमस के वकील ने न सिर्फ इस्तीफे से इनकार किया। अलबत्ता फैसले के खिलाफ अपील करने का खम ठोक दिया। सो अब कांग्रेसी खेमा दलील दे रहा- इस्तीफे की कोई जरूरत ही नहीं। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति रद्द की। सो अधिसूचना जारी होगी। पर थॉमस का मामला निपटा नहीं, बोफोर्स केस ने विपक्ष को एक और मुद्दा थमा दिया। दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट मान ली। बोफोर्स सौदे में दलाली खाने वाले ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ अब केस बंद हो गया। सीबीआई ने भ्रष्टाचार के इस मौसम में सबसे बड़ा केस बंद करवा बाकियों को इशारा कर दिया। अब जरा बोफोर्स केस बंद करने की सीबीआई की दलील देखिए- पच्चीस साल बीत चुके। ढाई सौ करोड़ खर्च हो चुके। क्वात्रोची को भारत नहीं लाया जा सका। सो अब केस को आगे चलाने का कोई मतलब नहीं। दलील तो सही, पर सवाल बहुतेरे। आखिर क्वात्रोची को भारत लाने में सीबीआई और सरकार सफल क्यों नहीं हुईं, यह कौन बताएगा? बोफोर्स केस में सरकार बदलने के साथ आए उतार-चढ़ाव का जवाब कौन देगा? अगर क्वात्रोची को कांग्रेस की सरकार आरोपियों की लिस्ट से बाहर कर रही। तो सवाल- क्या आजादी के बाद भी विदेशी हमारे देश के खजाने को यों ही लूट ले जाएंगे? अंग्रेजों ने सोने की चिडिय़ा भारत का खूब दोहन किया। पर आजाद देश को विदेशियों के हाथ लुटाने वालों की यह कैसी राष्ट्रभक्ति? अब निचली अदालत से ही सही। फिलहाल क्वात्रोची बोफोर्स केस से तो बरी ही हो गए। सो मनमोहन सरकार अब चाहे, तो क्वात्रोची की थोड़ी और मदद कर सकती। जैसे दिसंबर 2005 में एडीशनल सोलीसीटर जनरल बी. दत्ता को भेजकर क्वात्रोची के लंदन स्थित बैंक खाते डिफ्रीज करवाए। क्वात्रोची को दलाली की रकम निकालने की इजाजत दे दी। अब किसी कानून के जानकार को भेज दें। ताकि क्वात्रोची भारत सरकार पर मानहानि का मुकदमा कर सके। आखिर 25 साल तक किसी को आरोपी बनाना और फिर आखिर में केस बंद करना किसी यातना से कम नहीं। रेड कार्नर नोटिस की वजह से इंटरपोल ने मलेशिया और अर्जेंटिना में दो बार गिरफ्तार किया। कई दिन जेल में बिताने पड़े। पर आखिरकार भारत ने सोची-समझी देरी कर मलेशिया और अर्जेंटिना की अदालत से भी क्वात्रोची को रिहा होने दिया। सो सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को मिली अदालती मंजूरी के बाद तो क्वात्रोची मानहानि का दावा करने के हकदार। शायद ऐसा कर दिया। तो जितनी रकम दलाली में नहीं मिली होगी, उससे अधिक मिल जाएगी। वैसे भी भारत की जनता भले गरीब हो। पर नेताओं के लिए देश वैसे ही सोने की चिडिय़ा, जैसे अंग्रेजों के समय थी। तभी तो घोटाले नहीं, यहां एक नील 76 खरब के महाघोटाले होते। सत्तर हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ होते। ‘आदर्शों’ की तो कमी नहीं देश में। पर ऐसे माहौल में जब बोफोर्स केस की फाइल बंद करने का फैसला सुनाने चीफ मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विनोद यादव पहुंचे। तो कुर्सी पर बैठते ही मजरूह सुल्तानपुरी की दो लाइन सुना दीं- ‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोडऩा अच्छा।’ यानी मजिस्ट्रेट ने सीबीआई की दलील मान ली। पर सवाल- क्या भ्रष्टाचार के सागर में डूबे देश के ताजा माहौल को ‘खूबसूरत मोड़’ कहेंगे? आखिर राजाओं-कलमाडिय़ों को क्या संदेश मिलेगा? यही ना, केस को लंबा उलझाओ। आखिर में सत्ता के बलबूते फाइल तो बंद हो ही जाएगी। यों फाइलें तो खुलती और बंद होती रहेंगी। पर शुक्रवार को राजनीति की एक बुलंद आवाज हमेशा के लिए बंद हो गई। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह का निधन हो गया। वह भी उसी दिन, जिस दिन सोनिया गांधी ने अपनी कांग्रेस वर्किंग कमेटी का एलान किया। अर्जुन वर्किंग कमेटी में स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाए गए। पर सोनिया की वर्किंग कमेटी मनमोहन के केबिनेट फेरबदल जैसी ही रही।
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04/03/2011