Friday, June 25, 2010

तो पैंतीस साल बाद भी मानसिकता 'इमरजेंसी' की

महंगाई सिंह.... माफ करिए मनमोहन सिंह की सरकार तेरह महीने की हो गई। पर तेरह महीने में ही आम आदमी का चौथा निकाल दिया। तो सोचो, बाकी के तीन साल ग्यारह महीने में क्या होगा? मनमोहन सरकार की दूसरी पारी में चौथी बार पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़े। बाईस मई 2009 को दूसरी बार शपथ ली। तो जुलाई में दाम बढ़ाए। फिर आम बजट में प्रणव दा ने कीमत बढ़ा इतिहास रचा। पहली अप्रैल से बीएस-4 मानक लागू होने से कीमतें बढ़ीं। अब चौथी बार में कीमतें ऐसी बढ़ाईं, आम आदमी का दम निकाल दिया। जमाखोर, घूसखोर, सूदखोर, यहां तक कि आदमखोर भी सुना। पर कोई चुनी हुई सरकार गरीबखोर और आम आदमी खोर हो जाएगी, किसी ने सपने में भी न सोचा होगा। शुक्रवार को पेट्रोल 3.73 रुपए, डीजल दो रुपए, कैरोसिन तीन रुपए और रसोई गैस 35 रुपए महंगी हो गई। आठ साल बाद पहली बार गांव की रोशनी का सहारा कैरोसिन तेल महंगा हुआ। गांव में बिजली के खंभे और तार भले पहुंच गए हों। पर बिजली नहीं पहुंची, सो गांव में दीये और लालटेन ही सहारा। अब कोई पूछे, क्या यही है आम आदमी की सरकार? पर सरकार और कांग्रेस मजबूरी का रोना रो रहीं। देश की तरक्की के लिए उठाया गया कदम बता रहीं। तो क्या अब आम आदमी की लाश पर देश का विकास होगा? जब गरीब महंगाई की वजह से भूखे मर जाएंगे, तो विकास किसके लिए होगा? कभी कॉमन वैल्थ गेम्स के नाम पर आम आदमी की कमर तोड़ी जा रही, तो कभी विकास दर के नाम पर। आखिर कब तक आम आदमी ही पिसता रहे? अबके जो कीमतें बढ़ीं, सिर्फ पेट्रोल-डीजल तक सीमित नहीं। अलबत्ता अब कुछ भी ऐसा नहीं, जो सस्ता मिल सके। अब तो जहर भी महंगा हो चुका। कुएं, तालाब, नदियां भी सूख चुकीं। सो डूब मरना भी मुश्किल हो चुका। बाकी बची ट्रेन, तो पता नहीं कब केंसिल हो जाए। सो मुरली देवड़ा ने जब कीमतें बढ़ाने का एलान किया। तो दोहरी बेशर्मी भरे अंदाज में कह दिया- 'अभी तो थोड़ा भाव बढ़ाया है। भगवान करेगा, मार्केट में भाव थोड़ा ठीक होगा, तो हम घटा देंगे।' पहली बेशर्मी यह, इतनी कीमतें बढ़ाईं, पर कह रहे- थोड़ा भाव बढ़ाया। दूसरी और सबसे बड़ी बेशर्मी, सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया। पर मुरली देवड़ा भगवान के नाम पर भी आम आदमी को ठग रहे। असल में तेल की कीमतें अब सरकारी नियंत्रण से बाहर हो चुकीं। सो मुरली देवड़ा तो क्या, उनके आका भी घटाने की नहीं सोच सकते। अब तो तेल कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय बाजार के हिसाब से कीमतें तय करेंगी। हर पखवाड़े नफा-नुकसान का जायजा होगा। तो कंपनियां आम आदमी का हित नहीं, अपना लाभांश देखेंगी। सो तेल पर अब खुला खेल फर्रुखाबादी होगा। पर सवाल, कब तक आम आदमी को ठगेगी अपनी सरकार? हर बार वही देश की तरक्की का रोना-धोना और कीमतें बढ़ाना। पर संयोग देखिए, मनमोहन की पहली पारी खत्म होने को थी। तब भी जून में दाम झटके से बढ़ाए गए। अबके दूसरी पारी का पहला साल पूरा हुआ। तो झटके से आम आदमी को हलाल कर दिया। सनद रहे, सो याद दिलाते जाएं। तब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 140 प्रति बैरल पहुंच गई थी। चार जून 2008 को पेट्रोल पांच रुपए, डीजल तीन रुपए, रसोई गैस 50 रुपए महंगा हुआ था। महंगाई की मार झेल रही जनता को मनमोहन ने जुबानी सांत्वना देने की कोशिश की। पहली बार ऐसा हुआ, जब पीएम ने बढ़ी कीमतों पर राष्ट्र को संबोधित किया। तब मनमोहन ने जो कहा, आप देख लो- 'हमने विकास किया, पर चिंता की बात, तरक्की के साथ महंगाई भी बढ़ी। पर बढ़ी कीमतों से तो तेल कंपनियों के घाटे का सिर्फ दसवां हिस्सा पूरा होगा। नब्बे फीसदी बोझ सरकार उठाएगी। कर्ज और बांड समस्या का समाधान नहीं। कंपनियों को घाटे में डालकर हम अपना भविष्य बिगाड़ रहे। हमें अपने लिए नहीं, अपनी पीढ़ी के लिए सोचना चाहिए। पेट्रोल-डीजल-एलपीजी-बिजली-पानी की बचत करें। आपको किफायती बनना होगा। भविष्य में सही दाम चुकाने होंगे।' यानी हर बार एक ही दलील। तो कोई पूछे, आखिर विकास किसका हो रहा? पर नेताओं की नौटंकी का जवाब नहीं। जून 2008 में चुनावी साल था। तो सोनिया गांधी के निर्देश पर कांग्रेस शासित राज्यों में सेल्स टेक्स घटाने का ड्रामा हुआ। दिल्ली में शीला सरकार ने रसोई गैस में 40 रुपए की छूट दी। सिर्फ दस रुपया बढऩे दिया। पर दिल्ली और केंद्र के चुनाव निपटे। तो सब्सिडी वापस ले ली। अबके फिर यह संभव, जनता का विरोध देख सोनिया चिट्ठी लिख दें। दिखावे की खातिर कैरोसिन के दाम घट जाएं। पर सचमुच देश की विडंबना, आज 35 साल बाद भी इमरजेंसी की मानसिकता खत्म नहीं हुई। आज के दिन ही 1975 में इंदिरा ने इमरजेंसी लगाई। पर कांग्रेस की मानसिकता जून 2008 और जून 2010 में वैसी ही दिख रही। समूचा देश महंगाई की मार से कराह रहा। फिर भी तेल-रसोई गैस के दाम में बढ़ोतरी का साहस शायद कांग्रेस ही कर सकती। पर यूपीए के सहयोगियों की नौटंकी भी कम नहीं। ममता, पवार, करुणा की हरी झंडी लेकर ही शुक्रवार को दाम बढ़े। पर तीनों ने बढ़ोतरी पर एतराज जताना शुरू कर दिया। फिर भी सरकार के साथ ही रहेंगे, भले आम आदमी तड़प-तड़प कर क्यों न मर जाए। मानसून सत्र में अपने सांसदों, मंत्रियों के वेतन-भत्ते पांच गुना बढ़ेंगे। सो मन्नू भाई की मोटर तो पम-पम चलेगी। बाकी आम आदमी वही फटे हाल, बदहाल, पैदल।
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25/06/2010