Tuesday, February 2, 2010

जब पीएम-सीएम अपना, तो सिर्फ जुबानी तीर क्यों?

 संतोष कुमार
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         अपने सरकारी स्कूल में रोजाना प्रार्थना के बाद एक प्रतिज्ञा ली जाती थी। सभी छात्र-छात्राएं दांया हाथ आगे कर कहते थे- 'भारत हमारा देश है। हम सब भारतवासी भाई-बहन हैं...।'  पर क्या अब प्रतिज्ञा बदलनी होगी। जो महाराष्टï्र के हैं, वो सिर्फ महाराष्टï्र को ही देश बताएंगे। और जो बाहर के हैं, क्या यह कहेंगे- 'महाराष्टï्र को छोड़कर बाकी हम सब भारतवासी हैं?'  अगर राजनीति के धुरंधर यों ही जुबान चलाते रहे। तो शायद वह दिन भी दूर नहीं हो। जब राज ठाकरे के गुर्गों ने 2008 में तांडव मचाया। तो बीजेपी हो या कांग्रेस, सिर्फ आलोचना कर चुप रहीं। जेहन में तब महाराष्टï्र चुनाव थे। अब बिहार चुनाव की बारी। तो बिहारियों के हितैशी बनने में कोई पीछे नहीं। अब बीजेपी को शिवसेना से रिश्ते तोडऩे में भी शायद गुरेज न हो। विनय कटियार ने तो नितिन गडकरी की बीजेपी को नसीहत दे दी। शिवसेना से रिश्तों की समीक्षा पर जोर दिया। पर बीजेपी अभी तेल की धार देखना चाह रही। सो मंगलवार को बीजेपी ने कटियार की राय को निजी बता पल्ला झाड़ लिया। पर टेक्सी परमिट से शुरू विवाद अब वाया संघ गडकरी तक। गडकरी से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तक। सो शिवसेना को तो मानो संजीवनी मिल गई। कहां राज ठाकरे ने मिट्टïी पलीद करने का बीड़ा उठा लिया था। अब मराठी मानुष की लड़ाई में शिवसेना राज से बढ़त ले रही। पर चचा-भतीजे में गुरु-चेले वाली कहावत। सो चचा मराठी भाषा की बात कर रहे। तो भतीजे ने अब महाराष्टï्र में पैदा होने वाले मराठियों का नारा उछाल दिया। पर चचा-भतीजे की फुफकार को आप जाने दो। अब तो कोई शक-शुबहा नहीं। ठाकरे बंधुओं को देश की नहीं, अपनी सियासत की फिक्र। सो चंद गुंडों के सहारे तोड़-फोड़ की राजनीति पर उतारू। अब ऐसे लोगों को तरजीह देना ही बेकार। सो सवाल तो सत्ता में बैठे क्षत्रपों से पूछा जाना चाहिए। राहुल गांधी बिहार की टोह लेने पहुंचे। तो कहीं बिहारियों का दर्द समझ आया। सोमवार को मिथिला यूनिवर्सिटी में राहुल का करिश्मा नहीं चला। अलबत्ता आग-बबूला छात्रों ने सवालों की बौछार की। तो राहुल की बोलती बंद हो गई। वाकई सवाल चुभने वाले थे। अव्वल ऐसे सवाल तो हर क्षेत्र में नेताओं से पूछे जाने चाहिए। एक छात्र ने पूछा- 'जब केंद्र में आपकी सरकार, महाराष्टï्र में आपकी सरकार। तो तब आपने आवाज क्यों नहीं उठाई, जब मुंबई में बिहारियों को मारा जा रहा था।'  सवाल में दम ही नहीं, विस्फोटक सवाल भी। देश में पीएम कांग्रेस का, महाराष्टï्र में सीएम कांग्रेस का। यानी पीएम-सीएम और डीएम अपनी हुकूमत का। तो कांग्रेस ने तब एकशन क्यों नहीं लिया। अगर तब घाव पर मरहम लग जाता। दोषियों को सजा मिलती। तो शायद भाषाई हुड़दंग आज नासूर नहीं बनता। पर छात्रों के सवालों के आगे निरुत्तर राहुल बिहार के गया पहुंचे। तो उन ने शिवसेना और राज ठाकरे के खिलाफ आवाज बुलंद की। याद दिलाया, 26/11 के हमले में मुंबई को बचाने वाले एनएसजी जवानों में बिहार, यूपी के थे। तब ठाकरे बंधुओं ने क्यों नहीं कहा, इन जवानों में से पहले बिहारी-यूपी वालों को हटाओ। सो राहुल की बात शिवसेना को चुभ गई। तड़के फिर जुबान चलाई। तो कहा- 'राहुल मराठी शहीदों का अपमान कर रहे।'  माना, करकरे, काम्टे, सालस्कर जैसे जांबाज आफीसर ने शहादत दी। पर मुंबई की बाकी पुलिस क्या कर रही थी। बेहतर होगा, ठाकरे बंधु राम प्रधान कमेटी की रपट पढ़ लें। अब राहुल गांधी कह रहे, उत्तर भारतीयों के लिए चुप नहीं बैठेंगे। देश का दुर्भाग्य नहीं, तो और क्या। जब राहुल गांधी तक को बार-बार सफाई देनी पड़ रही। भारत हर भारतीय का। अक्टूबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने। सो राहुल महाराष्टï्र, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों की मजबूती के पीछे बिहारियों की भूमिका खुलकर बखान कर रहे। पर जब 27 अक्टूबर 2008 को राज ठाकरे की नफरत से खफा बिहार का एक छात्र राहुल राज मुंबई की बस में घुसकर राज का पता पूछ रहा था। मुंबई की पुलिस ने उस राहुल राज के ऊपर इतनी गोलियां बरसाईं। गिनना मुश्किल हो गया। पर तब होम मिनिस्टर आर.आर. पाटिल ने पुलिस कार्रवाई को जायज ठहराया। क्या कभी ऐसी फौरी कार्रवाई नफरत फैलाने वाले ठाकरे बंधुओं पर हुई? राज ठाकरे कभी गिरफ्तार हुए, तो पुलिस याचक की मुद्रा में दिखी। गिरफ्तारी के वक्त में भी राज के हाथों में सिगरेट होती थी। अब आप ही सोचो, बिहार चुनाव न होते। तो क्या राहुल गांधी के ज्ञान चक्षु यों ही बंद पड़े रहते। राज ठाकरे ने भाषाई हुड़दंग किया। तो कांग्रेस के विलासराव देशमुख से अशोक चव्हाण तक सबने सियासत के ओछे खेल में साथ निभाया। पर अब भी ठाकरे बंधुओं की जुबान जहर उगल रही। कोई जुबां बंद कराने का साहस नहीं दिखा रहा। शायद बिहार चुनाव तक जुबान के सहारे ही मामला खिंचेगा। फिर चुनाव बाद सब ठंडा। यही तो हुआ महाराष्टï्र चुनाव से पहले। हिंदी भाषियों पर हमले हुए। तो लोकसभा से जेडीयू के सांसदों ने इस्तीफा दे दिया। पर बीजेपी तब शिवसेना के डर से दुबकी रही। वही हाल कांग्रेस का। अगर तभी राज ठाकरे की नकेल कस दी होती। तो आज ऐसी नौबत न आती। अब राहुल चुप न बैठने की बात कर रहे। पर कब तक? क्या जब कांग्रेस विपक्ष में आएगी, तब शिवसेना को माकूल जवाब देंगे? पर राजनीति में नई शुरुआत का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता। चाहे युवा गडकरी-राहुल हों या बुजुर्ग मनमोहन-आडवाणी।
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02/02/2010