Monday, March 28, 2011

क्रिकेट, कूटनीति, काला धन और कोर्ट

अब तो देश में और कोई मुद्दा नहीं क्रिकेट के सिवा। सो क्रिकेट में फिर कूटनीति घुस गई। अपने पीएम मनमोहन के न्योते पर पाक के पीएम यूसुफ रजा गिलानी भी मोहाली में मैच देखने पहुंचेंगे। तो भारत-पाक रिश्तों में पड़ी गांठ को सुलझाने की कोशिश होगी। पर यह कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं, अलबत्ता रिश्तों पर पड़ी बर्फ को पिघलाने की कोशिश। यानी मोहाली में क्रिकेट और कूटनीति का समागम होगा। पर कुछ कांग्रेसियों को अभी से आशंका, मोहाली तक तो सब ठीक। फिर कहीं खुदा न खास्ता पाक फाइनल में पहुंचा। तो वानखेड़े स्टेडियम में शिवसेनिकों को कैसे संभालेंगे? लोग अभी 26/11 के जख्म नहीं भूले। वैसे भी शिवसेनिकों को वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोदने का अच्छा-खासा अनुभव। साख खो रही शिवसेना को राजनीति के लिए भला इससे बेहतर मौका क्या मिलेगा। पर पाक भी कम फिक्रमंद नहीं। पाकिस्तानी गृहमंत्री रहमान मलिक ने तो पहले ही मैच फिक्सिंग की आशंका जता दी। अपने खिलाडिय़ों को फिक्सिंग से दूर रहने की कड़ी नसीहत दी। तो पाक खिलाड़ी बौखला गए। सो अब देश की निगाहें इस सवाल पर टिकीं। क्या पाक पीएम गिलानी मोहाली से सिर्फ कूटनीति कर विदा होंगे, या अपने खिलाडिय़ों को भी साथ लिवा ले जाएंगे? या क्या फिर शिवसेनिकों को अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिलेगा? बाल ठाकरे ने तो ट्रेलर दिखा दिया। गिलानी-जरदारी को न्योते पर एतराज जता मनमोहन सरकार को सलाह दी- कसाब और अफजल को भी मोहाली का मैच दिखाओ। यों क्रिकेट और राजनीति का गठजोड़ कोई नई बात नहीं। पिछले वल्र्ड कप से जब अपनी टीम फिसड्डी बनकर लौटी थी। तो देश का नजारा छोडि़ए, अपने सांसद आग-बबूला हो गए थे। इसी वल्र्ड कप से पहले दक्षिण अफ्रीका में अपनी टीम पिटी थी। तो अपने सांसद ऐसे उखड़े, तबके कोच ग्रेग चैपल ने सांसदों को अपने काम पर ध्यान देने की नसीहत तक दे डाली थी। इतना ही नहीं, इस बार की तरह पिछले वल्र्ड कप में भी सरकार क्रिकेट के रंग में सराबोर थी। आम आदमी के लिए भले सरकार फुर्ती न दिखाए। पर दूरदर्शन पर क्रिकेट का प्रसारण करवाने के लिए अध्यादेश तक ले आई थी। आम आदमी को चाहे रोटी-पानी मिले, न मिले, क्रिकेट जरूर देखें। अपने लोगों की सोच भी अजीब हो गई। कभी सिर पर ऐसे बिठाएंगे, मानो भगवान हों। पर टीम एकाध मैच हारी नहीं कि दुआ मांगने वाले हाथ पुतले फूंकने लगते। पिछले वल्र्ड कप के वक्त तो प्रशंसकों ने टीम इंडिया की अर्थी तक निकाल दी थी। क्रिकेट टीम के प्रदर्शन की फिक्र सबको होती। देश में आतंकवादी हमले हो जाएं। अपने जवान आतंकियों का मुकाबला करते शहीद हो जाएं। किसानों पर लाठियां भांजी जाएं। महिलाओं-बच्चों का शोषण हो। तो आंखों में आंसू ढूंढे नहीं मिलते। अब तो बापू की जयंती हो या पुण्यतिथि, रस्म अदायगी भर रह गई। पर सचिन, धौनी, सहवाग, युवराज सस्ते में आउट हो जाएं, तो लोगों को खाना हजम नहीं होता। क्रिकेट अब धर्म बन गया। ओलंपिक के जन्मदाता पियरे द कुबर्तिन ने कहा था- खेल में एक की हार, दूसरे की जीत तय। सो खेल को खेल भावना से खेलना चाहिए। पर क्रिकेट के मामले में यह कितना सच? भारत-पाक का सेमीफाइनल ही लो, ऐसा लग रहा, मानो मोहाली में जंग होने जा रही। आखिर ऐसा क्यों न हो, जब खुद पीएम क्रिकेट को कूटनीति से जोड़ रहे। सचमुच क्रिकेट को देश ने जितना प्यार दिया, राष्ट्रीय खेल हाकी को उतनी ही दुत्कार मिली। हाकी खिलाड़ी जब राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार लेने दिल्ली पहुंचते, तो उन्हें पहाडग़ंज के सस्ते होटलों में ठहराया जाता। पर अगर क्रिकेटर आ जाएं, तो मौर्या-ताज से नीचे बात नहीं होती। हाकी खिलाड़ी साधारण टेक्सी में राष्ट्रपति भवन पहुंचते। तो अपने क्रिकेटर्स या तो महंगी कार में जाएंगे, या कुछ तो ऐसे जो पद्म पुरस्कार लेने राष्ट्रपति भवन पहुंचना अपनी शान के खिलाफ समझते। उन दोनों खिलाडिय़ों का नाम वल्र्ड कप के बाद याद दिलाएंगे। पर वजह बता दें, वे दोनों खिलाड़ी राष्ट्रपति भवन इसलिए नहीं गए, क्योंकि विज्ञापन की शूटिंग में व्यस्त थे। सो अल्पसंख्यक कल्याण के लिए जस्टिस सच्चर कमेटी की पैरोकार कांग्रेस और सरकार को अपनी एक सलाह- क्यों न हाकी के लिए भी कोई जस्टिस सच्चर कमेटी गठित करे। पर हाकी नहीं, बात क्रिकेट की। सिर पर ऐसा जुनून चढ़ा हुआ, टीवी खोलो या अखबार। या फिर किसी दफ्तर में घुस जाओ, आपको यही लगेगा- देश में कोई और गम नहीं सिवा क्रिकेट के। क्रिकेट, बालीवुड और अंडरवल्र्ड का रिश्ता किसी से छुपा नहीं। तभी तो काला धन जमा करने वालों पर कभी नकेल नहीं कसी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछ ही लिया- सरकार की जांच सिर्फ हसन अली तक ही सीमित। यह तो सिर्फ एक ही व्यक्ति, बाकी कहां हैं? कोर्ट ने सीधा सवाल उठाया- जांच एजेंसियां 2008 से क्यों सोई हुई थीं। तब कार्रवाई क्यों की, जब हमने पहल की। अगर रिट याचिका दायर न होती, तो कुछ नहीं होता। अब कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद कांग्रेसी क्या कहेंगे? जो अब तक दावा कर रहे थे- काले धन पर जो भी जानकारी जुटाई, हमने जुटाई, एनडीए ने नहीं। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बदनीयती से परदा हटा दिया। साफ हो गया- काला धन हो या राजा का बाजा बजना, सब सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से हुआ। वरना अपनी सरकार तो क्रिकेट का लीग मैच ही खेल रही थी। कोर्ट ने जब, जिसका नाम लिया, उस पर कार्रवाई कर दी। मोहाली जैसा कोई कड़ा मुकाबला नहीं करती।
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28/03/2011