Tuesday, October 26, 2010

अभिव्यक्ति की आजादी से ‘गुलाम’ हुई कांग्रेस-बीजेपी

कॉमनवेल्थ घोटाला हो या कश्मीर की किचकिच, खत्म नहीं होने वाली। पर पहले बात घोटाले की। तो जरा कॉमनवेल्थ के आयोजन से हुए फायदे को देखिए। अपने भारत की रैंकिंग ग्लोबल करप्शन इंडेक्स में 84 वें से 87 वें पर पहुंच गई। यानी करप्शन में अपना देश सीधे तीन पायदान छलांग मार गया। बेचारा चीन ओलंपिक कराने के बाद भी 78वें नंबर पर झक मार रहा। सचमुच ऐसे दो-चार कॉमनवेल्थ और हो गए। तो भ्रष्टाचारी देशों की सूची में अपना भारत अव्वल होगा। वैसे भी भ्रष्टाचारियों पर अपने यहां कार्रवाई गाहे-ब-गाहे ही होती। अब देख लो, कॉमनवेल्थ गेम्स को निपटे तेरह दिन हो गए। पर इसे जांच की तेरहवीं न कहें, तो और क्या कहें। अभी तक पीएम की बनाई शुंगलू कमेटी ने जांच का खाका तक नहीं बनाया। कुछ और वक्त लगने की बात कर रहे। यानी तब तक कलमाड़ी-शीला-जयपाल-गिल-अंबिका एंड कंपनियों को कागज बदलने को काफी वक्त मिल जाएगा। अब कोई पूछे, देश को कब तक यों ही लूटते रहेंगे नेता-नौकरशाह? भ्रष्टाचारी देशों की सूची में भारत लगातार आगे बढ़ रहा। फिर भी नेताओं को शर्म नहीं आ रही। अब तो ऐसा लग रहा, कोई उम्दा खरीददार मिल जाए, तो ये देश को भी बेचने से नहीं चूकेंगे। कश्मीर पर जिस तरह राष्ट्र विरोधी बयानों का दौर शुरू हुआ, इस अंदेशे की पुष्टि कर रहा। अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी और अरुंधती राय ने 21 अक्टूबर को दिल्ली में सेमिनार कर आजाद कश्मीर की अलख जगाई। जब सेमिनार में कुछ देशभक्तों ने तिरंगे झंडे लहराए। तो चिदंबरम की दिल्ली पुलिस ने झंडा लहराने वालों को बाहर कर राष्ट्र विरोधियों को संरक्षण दिया। अब गिलानी-अरुंधती के बोल ने केंद्र सरकार को मुश्किल में डाला। तो राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की मंजूरी देनी पड़ी। पर एफआईआर दर्ज करने में अभी इफ एंड बट का खेल। सरकार को डर, गिरफ्तारी से कोई बवाल न मच जाए। सरकार की ऐसी ही लचर नीतियों ने अलगाववाद को हमेशा शह दी। तभी तो देश विरोधी बयान देने के बाद भी अरुंधती राय को कोई मलाल नहीं। अलबत्ता भारत को ही धता बता रहीं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुकदमे की हरी झंडी दी। तो अरुंधती राय ने बयान जारी कर कह दिया- मैंने लाखों लोगों के न्याय की बात कही। पर जिस देश में न्याय मांगने वालों को जेल भेजने की बात हो। ऐसे देश में मुझे दया आती है। अब अगर अरुंधती को सचमुच देश पर दया आ रही। तो क्यों नहीं पाकिस्तान की नागरिकता लेकर पीओके में हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठातीं? अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं, कोई राष्ट्र विरोधी बयान देना शुरू कर दे। खुद विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने गिलानी और अरुंधती की टिप्पणी को अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। सीधे-सीधे उन ने देशद्रोह बता दिया। पर सवाल, कार्रवाई में इतनी देरी क्यों? जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने भी माना। अभिव्यक्ति की आजादी का बेजा इस्तेमाल हो रहा। फारुख बेलौस बोले- हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तान का बेड़ा गर्क कर रहे। कुछ लोग आजादी की अभिव्यक्ति का इस कदर फायदा उठा रहे, जिसकी कोई सीमा नहीं। तो इसमें फारुख क्या करें। यों बेजा इस्तेमाल की बात तो फारुख ने सोलह आने सही कही। पर वह कुछ भी करने में असक्षम, यह सही नहीं। फारुख के बेटे उमर ही जम्मू-कश्मीर के सीएम। अगर वोट बैंक की राजनीति छोड़ दें, तो अलगाववादियों पर नकेल कसना कोई बड़ी बात नहीं। पर खुद उमर ने विधानसभा के भीतर अभिव्यक्ति की आजादी का कैसा इस्तेमाल किया, क्या फारुख ने नहीं देखा? जब उमर कश्मीर के विलय पर सवालिया निशान लगा रहे थे, तब फारुख ने क्या किया? घाटी में जाकर फारुख हों या पडगांवकर या मनमोहन, वही बात करते, जो अलगाववादियों को पसंद। सो कश्मीर सिर्फ राजनीति का मुद्दा बनकर रह गई। कांग्रेस इस कदर फंस चुकी कि अरुंधती की हैसियत पर सवाल उठा उनका निजी बयान बता रही। पर बीजेपी ने हमेशा की तरह पडगांवकर से लेकर अरुंधती-गिलानी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यों बीजेपी के भीतर विभीषणों की कमी नहीं। राम जेठमलानी ने पार्टी लाइन के उलट पडगांवकर का समर्थन किया। बीजेपी के बयानों को बचकाना और अशिष्ट हरकत कह गए। पर बेचारी बीजेपी कुछ नहीं कर पाई। खाल बचाने को प्रकाश जावडेकर बोले- जेठमलानी तो जेठमलानी हैं। वह उनकी निजी राय, पार्टी सहमत नहीं। पर कोई पूछे, अगर जेठमलानी को बीजेपी अशिष्ट और बचकानी नजर आ रही। तो उसके टिकट से सांसद क्यों बने हुए? बीजेपी को भी जेठमलानी की राय पार्टी लाइन के इतर दिख रही। तो कार्रवाई क्यों नहीं कर रही? अपने जसवंत सिंह को निजी हैसियत से किताब लिखने पर इसी बीजेपी ने बर्खास्त कर दिया था। जसवंत पर विचारधारा के उलट काम करने का आरोप लगाया। पर जेठमलानी क्या कर रहे? जातीय जनगणना हो या इस्लामाबाद में हुई कृष्णा-कुरैशी की साझा प्रेस कांफ्रेंस में कृष्णा की चुप्पी का मसला। भरी सभा में जेठमलानी ने अपनी ही बीजेपी का चीरहरण किया। पर जेठमलानी के हाथ चीरहरण करवा बीजेपी को मजा आ रहा। राज्यसभा में पांच अगस्त को जेठमलानी ने एसएम कृष्णा की सराहना की थी। अब पडगांवकर का बचाव कर रहे। पर बीजेपी निजी विचार बता भाग नहीं सकती। कश्मीर के मसले पर जब पीएम से बीजेपी का डेलीगेशन पिछली बार मिला। तो आडवाणी-जेतली-सुषमा के साथ चौथे अहम शख्स जेठमलानी ही थे। सो कश्मीर पर जेठमलानी की राय को बीजेपी निजी बताकर भाग नहीं सकती।
----------
26/10/2010