Friday, April 23, 2010

तो राजनीतिक आईपीएल में भी मैच फिक्सिंग!

यों आईपीएल का फाइनल इतवार को हो जाएगा। पर संसद में चल रहा लीग मैच खत्म नहीं हो रहा। सो शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में कामकाज ठप रहा। अबके समूचा विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा। तो सरकार के होश फाख्ता हो गए। विवाद में शरद पवार-प्रफुल्ल पटेल का नाम गले की हड्डी बना। संसद में कुछ ने इस्तीफा मांगा। तो कुछ जांच की मांग पर ही सिमटे रहे। सो प्रणव मुखर्जी ने मोर्चा संभाला। चेहरे पर थोड़ा गुस्सा, थोड़ा धैर्य दिखा। तो दादा ने जेपीसी का एलान नहीं किया, पर विचार का झुनझुना थमा गए। फिर भी विपक्ष नहीं माना। सो देर शाम कांग्रेस कोर ग्रुप में मंथन हुआ। पर जेपीसी को लेकर कांग्रेस ऊहापोह में फंस गई। कोर ग्रुप में दो मत उभरे। पहला- जेपीसी को भी आखिर मौजूदा एजेंसी पर ही निर्भर रहना होगा। दूसरा- जेपीसी बनी, तो अब तक जो राज सिर्फ सरकार के पास, सबको मालूम हो जाएगा। सो प्रणव दा ने अब तक की जांच का ब्यौरा रखा। फिर तय हुआ, सरकारी एजेंसी सही काम कर रही। पर विपक्ष का हंगामा जारी रहा, तो क्या होगा। सो मामला पीएम पर छोड़ दिया। अब सरकार तेल और तेल की धार देखेगी। वित्त विधेयक का फच्चर न होता, तो शायद जेपीसी की हां या ना शुक्रवार को ही हो जाती। पर सरकार की बड़ी चुनौती वित्त विधेयक पास कराने की। सो अगर अगले हफ्ते संसद में स्थितियां बदलीं। तो सरकार मामले को लटकाएगी। तब तक शायद ललित मोदी की विदाई भी हो जाए। अगर विपक्ष ने रार ठान ली। तो शायद जेपीसी गठित हो जाए। पर बीजेपी ने तो शुक्रवार को ही साफ कर दिया। सोमवार के हंगामाई एजंडे में फोन टेपिंग मुद्दा होगा। अरुण जेतली ने भी तैयारी कर ली। सो दोनों सदनों में फोन टेपिंग पर हंगामा बरपेगा। एक मैगजीन में खुलासा हुआ, यूपीए सरकार 2006 से ही कई बड़े राजनेताओं के फोन टेप करा रही। जिसमें करीब-करीब सभी दलों के नेता शामिल। कांग्रेस भी यही चाह रही, हंगामा आईपीएल से दूसरे मुद्दे पर शिफ्ट हो। पर कोर ग्रुप में एक और आकलन हुआ। भले विपक्ष जेपीसी की मांग पर एकजुट हो। पर पवार-पटेल के इस्तीफे को लेकर बंटा हुआ। अब देखो, शुक्रवार को शरद यादव, बासुदेव आचार्य, गुरुदास दासगुप्त ने इस्तीफा मांगा। पर बीजेपी जेपीसी की मांग से आगे नहीं बढ़ी। अब भले जेपीसी के बाद पवार-पटेल का इस्तीफा बीजेपी अनिवार्य बता रही। पर सोचो, जेपीसी का दायरा सीमित रखा गया, तो क्या होगा। सो बीजेपी शुक्रवार को बुरी तरह घिर गई। शशि थरूर का इस्तीफा मांगने में बीजेपी ने तनिक भी देर नहीं की। या यों कहें, ट्विटर को राजनीतिक तेवर बीजेपी ने ही दिया। सो थरूर को इस्तीफा देना पड़ा। पर अब पवार-पटेल का नाम आया। तो बीजेपी को मानो सांप सूंघ गया। इस्तीफा मांगना तो दूर, पवार-पटेल के बचाव में बीजेपी इस कदर उतरी, जितनी एनसीपी भी नहीं। सो प्रेस कांफ्रेंस में एस.एस. आहलूवालिया पहुंचे। तो मीडिया ने सवालों की झड़ी लगा दी। चौतरफा घुमाफिरा कर वही सवाल। सो आहलूवालिया खीझ गए। मीडिया से ही सवाल पूछना शुरु कर दिया। पटेल-पवार के खिलाफ एक भी सबूत दिखा दें। अब कोई पूछे, थरूर के बारे में कौन सा सबूत मिल गया था। महज ट्विटर पर ललित मोदी ने सुनंदा पुष्कर के शेयर का खुलासा किया। तो बीजेपी ने मोदी का कहा सच मान लिया। तब बीजेपी नेताओं ने सुनंदा-थरूर के रिश्ते पर खूब चुटकियां लीं। अब विवाद में प्रफुल्ल पटेल की बेटी पूर्णा का नाम आया। पूर्णा आईपीएल से जुड़ी हुई। उसने आईपीएल के सीईओ सुंदर रमन का भेजा ई-मेल अपने पिता के पीए को भेजा। फिर वही मेल थरूर तक पहुंचा। पर आहलूवालिया कह रहे, उस ई-मेल में ऐसा कुछ नहीं। उन ने मीडिया को नसीहत दी, पहले मेल पढि़ए। फिर तय करिए, वह दोषी है या नहीं। आहलूवालिया की खीझ यहीं तक नहीं। उन ने तो बाकायदा मीडिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया। पर सवाल उठा, बीजेपी के ही यशवंत ने पवार-पटेल का इस्तीफा मांगा। तो असहज आहलूवालिया बोले- यशवंत ने जो कहा, उससे असहमत नहीं। जरा गौर करिए, आहलूवालिया ने यह नहीं कहा, सहमत हैं। सो सवाल, कहीं ऐसा तो नहीं, बीजेपी को डर लग रहा। आंच पवार-पटेल तक पहुंची। तो बीजेपी भी झुलसेगी। सचमुच आईपीएल विवाद पर बीजेपी में दो खेमे बन चुके। बीजेपी के कनफ्यूजन की वजह भी यही। वैसे भी आईपीएल या बीसीसीआई से जुड़े नेता चैरिटी के लिए नहीं जुड़े। दुनिया को मालूम, अपनी बीसीसीआई के पास कितना माल। सो मोदी को हटाने के बाद राजनीतिक आईपीएल के मैच फिक्सिंग की तैयारी। ललित मोदी तो अब आत्मघाती दस्ता हो गए। भले खुद जाएं, पर कइयों को बेनकाब करने की ठान चुके। सो जेपीसी की चर्चा तेज हो गई। पर इतिहास साक्षी, जेपीसी ने मामले को जितना सुलझाया नहीं, उतना लटकाए रखा। हर्षद मेहता घोटाला हो या केतन पारिख घोटाला, जेपीसी तो बनी, पर रपट आने में तीन से चार साल लग गए। यानी जेपीसी का मतलब साफ, मोदी को हटाओ, फिर जांच के नाम पर विवाद ठंडे बस्ते में। पर जेपीसी क्या तीर मार लेगी। आखिर जेपीसी को भी सरकार की जांच एजेंसियों का ही सहयोग लेना पड़ेगा। सो विवाद के बाद भी बेफिक्र शरद पवार कह रहे- जिसे जो करना है, करने दीजिए। खुद सत्ता में, प्रमुख विपक्ष बीजेपी भी साथ। तो पवार क्यों हों फिक्रमंद। बीजेपी भी आईपीएल की पिच से पवार से गठजोड़ की बिसात बिछा रही।
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23/04/2010