Wednesday, June 9, 2010

तो अपने 'नीरो' भी बसाएंगे भोपाल!

आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में नीरो वाली कहावत आपने कई दफा सुनी होगी। कहते हैं, जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी बजा रहा था। अब संयोग कहें या कुछ और, आज के दिन ही 68 ईसवी में नीरो ने आत्महत्या की थी। आत्महत्या प्रायश्चित के लिए की या कोई और वजह, इसके लिए इतिहास खंगालना होगा। सो इतिहास की बात फिर कभी, पर अब 26 साल बाद अपनी सरकार भोपाल की त्रासदी का प्रायश्चित करने की सोच रही। यानी 26 साल तक भोपाल के पीडि़त जलते रहे, अपने खैर-ख्वाह नेता बंसी बजाते रहे। किसको मालूम नहीं था, अदालत दो साल से अधिक की सजा नहीं सुना सकती। जब एफआईआर ही कमजोर धारा में दर्ज हो। तो जज का क्या कसूर। अपनी जांच एजेंसी सीबीआई ने क्या किया, किसी से छुपा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में जो फैसला दिया, वह भी सबके सामने था। पर 1984 से 1996 तक की कहानी छोड़ दो, तो उसके बाद किस राजनीतिक दल या सरकार ने भोपाल गैस पीडि़तों के लिए कुछ किया। अब अदालत ने महज दो साल की सजा सुनाई। पीडि़तों के जख्म पर फिर चोट हुई। तो अब मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार को भोपाल गैस पीडि़त अपनी जनता दिखने लगे। केंद्र में बैठी मनमोहन सरकार को भी ख्याल आ गया पीडि़तों की राहत और पुनर्वास का। मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पांच मेंबरी कमेटी गठित कर दी। एलान किया- 'पीडि़त राज्य की जनता। सो राज्य सरकार अब अपनी जनता का केस लड़ेगी। राज्य सरकार ऊपरी अदालत में अपील करेगी। पर पहले पांच मेंबरी कमेटी केस से जुड़े सभी कानूनी पहलुओं का अध्ययन करेगी।' यों शिवराज ने एक पते की बात कही। आईपीसी की धारा 71 के तहत हर मौत के लिए धारा 304-ए का एक अलग अपराध बनता है। सो हर मौत के लिए दो-दो साल की सजा हो, तो दोषियों को लंबी सजा संभव। पर कोई पूछे, यह बुद्धि पहले क्यों नहीं आई? जब पीडि़तों का घाव कैंसर बन गया, तो ही राजनेताओं की इंद्रियां जाग रहीं। सबको मालूम, अब वारेन एंडरसन को लाकर सजा दिलाने की कुव्वत मनमोहन सरकार में नहीं। याद है, तीन मार्च को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस हुई। आडवाणी ने ओबामा के आगे सरकार को सरेंडर बताया। तो पीएम ऐसे भडक़े, जैसे खुद ओबामा हों। उन ने कहा था- 'मैंने कई बार ओबामा से बात की है। पर यूएस की पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं आया।' अब आप ही सोचिए, अगर यूएस की पॉलिसी में बदलाव आएगा, तो क्या ओबामा अंदरूनी पॉलिसी मनमोहन को बताएंगे? अब ऐसी पैरोकारी होगी, तो एंडरसन पर कैसी उम्मीद? पर कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने मंगलवार को जुबानी रस्म अदायगी निभा ली। बोलीं- 'कांग्रेस इस बात पर दृढ़ है कि प्रत्यर्पण की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए और वारेन एंडरसन को भारत लाकर मामले को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाया जाए।' अब कानूनी अड़चन आपको कल यहीं पर बता चुके। कोई भी देश अपने नागरिक का प्रत्यर्पण नहीं करता। अलबत्ता विदेश में किए गए उसके अपराध पर देश में ही घरेलू कानून के तहत मुकदमा चलता। यानी एंडरसन का न अमेरिका में कुछ बिगड़ा, न भारत में बिगड़ेगा। अलबत्ता बुधवार को जितने खुलासे हुए, शायद नीरो का भी सिर शर्म से झुक जाए। वारेन एंडरसन को भोपाल में गिरफ्तार कर गैस्ट हाउस में रखा गया था। पर तबके चीफ सैक्रेट्री ब्रह्म स्वरूप ने डीएम मोती सिंह और एसपी स्वराज पुरी को बुलाकर एंडरसन को रिहा करने की हिदायत दी। तब कांग्रेस के अर्जुन सिंह सीएम थे। एंडरसन की रिहाई की औपचारिकता पूरी करने के बाद मोती की कार में ही एयरपोर्ट पहुंचाया गया। एयरपोर्ट पर सीएम अर्जुन सिंह का विमान आव-भगत को तैयार था। सो एंडरसन दिल्ली पहुंचे। तबके राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से मिल अमेरिका लौट गए। अब बीजेपी-कांग्रेस दोनों एंडरसन को भारत लाने की मांग कर रहीं। पर सत्ता में रहते किसने क्या किया? अब परमाणुवीय जनदायित्व बिल संसद में पेश हो चुका। मनमोहन पास कराने को आमादा। पर बिल के प्रावधान देखिए। अगर भोपाल जैसी त्रासदी हुई, तो मरने वालों की संख्या कई गुना अधिक होगी। पर विदेशी ऑपरेटर सिर्फ पांच सौ करोड़ रुपए की भरपाई करेगा। उस पर भारत में कोई मुकदमा नहीं चलेगा। जबकि अमेरिकी कानून के मुताबिक वहां ऐसा हादसा हो, तो ऑपरेटर 12.5 बिलियन डालर की भरपाई करेगा। यानी 23 गुना अधिक। तो क्या भारतीयों के खून के मुकाबले अमेरिकियों का खून 23 गुना अधिक कीमती? पर कोई सवाल न उठे, सो दिखावे को राहत-पुनर्वास का जिम्मा केंद्र ने लिया। होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम की रहनुमाई में नौ मंत्रियों का जीओएम बन गया। जो पुनर्वास के साथ-साथ ऐसे हादसे न हों, यह भी बताएगा। पर जीओएम का मतलब ग्रुप ऑफ मिनिस्टर नहीं, गड्ढे में ऑफिशियल मैटर। तेलंगाना, वन रेंक-वन पेंशन, जातीय जनगणना, महंगाई जैसे कई अहम मुद्दे जीओएम के सुपुर्द। पर जीओएम के गठन का मतलब ही मामले को ठंडे बस्ते में डाल देना। जीओएम की दलील देकर मनमोहन मानसून सत्र में परमाणुवीय नुकसान दायित्व बिल पास करवाएंगे। बाकी पीडि़त परिवार तो भगवान भरोसे। यही होता है अपने देश में। जब मुंबई में 26/11 हुआ, तो जाकर सिस्टम में सुधार का ख्याल आया। पर अर्जुन के बाद कांग्रेसी दिग्विजय सीएम बने। पिछले छह साल से बीजेपी सरकार। पर सब लंबी तानकर सोए रहे। अब यूनियन कार्बाइड तो डाऊ कैमिकल्स के नाम से फिर भारत में आ चुका। जिसके वकील अपने कांग्रेस के प्रवक्ता। सो पीडि़त परिवारों को न्याय के नाम पर अब सिर्फ सियासत की त्रासदी।
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09/06/2010