Friday, May 14, 2010

तो सोनिया का मुखौटा साबित हुए दिग्विजय

तो अब राज न पूछो नीति का। राजनीतिक दलों की नीतियां सत्ता और वोट के हिसाब से तय होने लगें। तो लोकतंत्र सिर्फ अध्यात्म का विषय भर रह जाएगा। झारखंड का झंझट सत्रहवें दिन भी नहीं सुलझा। तो गुरुजी का धैर्य जवाब दे गया। गुरुजी ने बहुत गुरुअई की, पर तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल खत्म नहीं हुआ। सो शिबू ने राजनीति के नंगेपन का ठीकरा जनता के सिर फोड़ दिया। शिबू मौजूदा हालात के लिए जनता के खंडित जनादेश को कोस रहे। पर झारखंड की जनता ने किसको नहीं आजमाया। झारखंड बना, तो बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को सीएम बना दिया। मरांडी जनता में लोकप्रिय होने लगे, कद और बढऩे लगा। तो अंदरूनी राजनीति के शिकार हो गए। फिर अर्जुन मुंडा सीएम बनाए गए। पहली सरकार ने टर्म पूरा किया। पर जब अलग झारखंड का पहला चुनाव हुआ। तो बीजेपी कमजोर हुई। पर जोड़तोड़ से बीजेपी ने आंकड़ा जुटा लिया। तो कांग्रेस ने तबके गवर्नर सिब्ते रजी से खेल करा दिया। शिबू सीएम हो गए। पर मामला सुप्रीम कोर्ट गया, तो शिबू को हटना पड़ा। फिर अर्जुन भी गाड़ी नहीं खींच सके। तो कांग्रेस ने लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज करा दिया। एकला एमएलए मधु कोड़ा को सीएम बनवा दिया। फिर शिबू-कांग्रेस-लालू सबने मिलकर मलाई काटी। अब ई.डी. की जांच चल रही। जिसमें मधु कोड़ा पर चार हजार करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप। तब शिबू को जनता क्यों याद नहीं आई? शिबू खुद तीन बार सीएम हो चुके। पर कभी एमएलए क्यों नहीं बन पाए? जनता ने सबको देख लिया। जब मिलीजुली सरकार में कोई अकेला चार हजार करोड़ जमा कर ले। तो सोचो, किसी एक की सरकार होगी, तो क्या होगा? कोई मधु कोड़ा जैसा हुआ, तो कहीं पूरा झारखंड ही न बेच दे। पर मधु कोड़ा गए, तो कांग्रेस ने गवर्नर सिब्ते रजी के जरिए राज किया। अब सिब्ते रजी भी जांच के घेरे में। अब कोई पूछे, इसमें जनता का क्या कसूर? जनता तो यही देखना चाह रही, राजनीतिक दल कितनी ईमानदारी से झारखंड का विकास चाह रहे। पर सत्ता लोलुपों की नीति सिर्फ राज करने तक ही सीमित। तभी तो जो बीजेपी कभी नीति की बात करती थी। चाल, चरित्र, चेहरे की बात करती थी। झारखंड में अपना राज जमाने के चक्कर में चाल, चरित्र, चेहरे का असली राज खोल दिया। सो शुक्रवार को कांग्रेस ने फिर रंग दिखाया। पहले रांची में गवर्नर एम.ओ.एच. फारुख ने सरकार को बड़े फैसले न करने की हिदायत दी। तो इधर कांग्रेस ने एलान कर दिया। अगर जल्द झारखंड का झंझट नहीं सुलझा, तो कांग्रेस संवैधानिक उपचार की मांग करने को मजबूर होगी। सीधे-सपाट शब्दों में कहें, तो कांग्रेस ने धमकी दे दी। पर शकील अहमद से पूछा, कब ऐसी मांग करोगे। तो जैसे बीजेपी कोई समय नहीं बता पा रही, वही कांग्रेस का भी हाल। अगर बीजेपी की नीति का राज झारखंड ने बेनकाब कर दिया। तो कांग्रेस की नीति पर से राज का परदा खुद सोनिया गांधी ने उठाया। दंतेवाड़ा नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 74 जवान शहीद हुए। तो समूचा देश हिल उठा। तब कांग्रेस हो या बीजेपी, हर मंच से यही आवाज उठी। नक्सलियों ने देश के खिलाफ जंग छेड़ी। सो मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। खुद होम मिनिस्टर चिदंबरम ने यही खम ठोका। पर छह अप्रैल को नक्सली हमला हुआ। ठीक आठवें दिन 14 अप्रैल को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का सार्वजनिक लेख छपा। चिदंबरम को दिग्विजय ने बौद्धिक अकड़ू, जिद्दी की संज्ञा दे डाली। नक्सलवाद से निपटने के चिदंबरमी रुख की मुखालफत की। चिदंबरम को केबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी याद कराई। पर मामले ने तूल पकड़ा, तो कांग्रेस ने दिग्विजय के लेख से दूरी बना ली। अब शुक्रवार को कांग्रेस के मुख पत्र कांग्रेस संदेश में सोनिया ने दिग्विजय का ही स्टैंड दोहराया। यों आतंकवाद के खिलाफ सोनिया ने चिदंबरम के रुख को ही दोहराया। पर नक्सलवाद के बारे में लिखा- नक्सलवाद की जड़ों तक पहुंचना जरूरी। नक्सलवाद का बढऩा इस बात का परिचायक कि हमारे विकास की पहल निचले तबकों तक ठीक से नहीं पहुंच पा रही। खास तौर से सबसे पिछड़े आदिवासी जिलों तक। इसलिए हमारी सरकार सबसे अधिक पिछड़े जिलों के लिए और लक्षित विकास योजनाएं लागू कर रही है। हू-ब-हू यही बात दिग्विजय ने अपने लेख में कही थी। तो उसी दिन आपको बताया था, दिग्विजय की यह निजी राय नहीं। अब शुक्रवार को खुद सोनिया ने साबित कर दिया। कलम दिग्विजय की थी, पर शब्द सोनिया के। सो शुक्रवार को दिग्विजय गदगद दिखे। पर शकील अहमद की दलील, चिदंबरम भी इसी रुख के। सो सवाल उठाना सही नहीं। पर दिग्विजय के लेख में सब साफ था। चिदंबरम नक्सलवाद को लॉ एंड आर्डर की तरह डील कर रहे थे। अब सोनिया गांधी का संपादकीय तो पहले ही तैयार था। सो तीन दिन पहले सीआईआई की मीटिंग में चिदंबरम ने कॉरपोरेट हस्तियों से नक्सली क्षेत्र में विकास से जुडऩे की अपील की। यानी सोनिया का हाथ दिग्विजय के साथ दिखा। तो चिदंबरम भी ढर्रे पर आ गए। सोनिया ने लक्ष्मण रेखा खींच दी। वैसे भी सोनिया अपनी नीतियों का राज जब भी खोलतीं, जुबान दिग्विजय की होती। अब दिग्विजय हिंदू आतंकवाद को साबित करने में जुटे। सो आप खुद देख लो, राजनीतिक दलों की नीति का क्या है राज।
---------
14/05/2010