Thursday, November 4, 2010

गरीबों को ‘दीया’ छीन कब तक जलेगा चिराग?

त्योहारी सीजन का यही अनोखापन, कब वक्त बीत जाता, पता भी नहीं चलता। अपने नेताओं के झूठे वादों की तरह नहीं, जिसके इंतजार में उम्र निकल जाती। पर वादा निभाने का दिन कभी नहीं आता। तभी तो गरीबी के अभिशाप को मिटाने की कभी ईमानदार कोशिश नहीं हुई। अगर गरीबी दूर हो गई, तो फिर राजनेताओं को तो वोट के लाले पड़ जाएंगे। सो गरीबी ऐसा पटाखा हो गई, जिसे चुनावों में हर नेता फोड़ जश्न मनाता। एक चुनाव में हाथ अगर गरीब के साथ होता, तो अगले चुनाव में नारा बदल आम आदमी के साथ हो जाता। कोई दल कभी हिंदुत्व का झंडा उठाता। तो अगले चुनाव में राष्ट्रवाद का नारा। यानी शब्दों की जुगाली तो कोई नेताओं से सीखे। सो आम आदमी कहो या गरीब, अब महंगाई पर सरकार से किसी करिश्मे की उम्मीद नहीं कर रहा। अलबत्ता महंगाई को आत्मसात कर त्योहार मना रहा। आखिर जनता निकम्मी सरकारों से उम्मीद भी क्या करे। जब चुनावी मौसम होता, तो तोहफों की बारिश कर देते। पर जैसे ही सत्ता मिल जाती, नशा सिर चढक़र बोलने लगता। वैसे भी अबके दिवाली के मौके पर मनमोहन सरकार को त्योहार से अधिक बराक ओबामा दौरे की फिक्र। सो सरकारी अमला त्योहारी छुट्टी के बावजूद दौरे की तैयारी में जुटा। बीजेपी ने ओबामा की संरक्षणवादी नीति पर विरोध दर्ज कराने का एलान कर दिया। तो विदेश सचिव निरुपमा राव ने भोपाल त्रासदी के गुनहगार वारेन एंडरसन को छोटा मुद्दा बता दिया। निरुपमा बोलीं, एंडरसन से भी बड़े मुद्दे हैं, जिन पर राष्ट्रपति ओबामा से बात होगी। अब इसे संवेदनाशून्य बयान न कहें, तो क्या कहें। जिस त्रासदी ने भोपाल के लोगों की कई पीढी तबाह कर दी। उसके मुख्य गुनहगार को भारत लाने की बात अपने विदेश मंत्रालय की नजर में ऐरा-गैरा मुद्दा। वैसे कांग्रेसी सरकार से उम्मीद भी क्या। जब भरी संसद में वारेन एंडरसन को भगाने के रिकार्ड नहीं होने का एलान कर दिया गया। तो अब क्या उम्मीद? पर पिछली दिवाली से इस दिवाली राजनीतिक उथल-पुथल इस बात का सबूत कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं होता। पिछले साल दिवाली के वक्त बीजेपी तमाम झंझावातों से गुजर रही थी। महंगाई, आर्थिक मंदी और आतंकवाद जैसे मुद्दों के बावजूद लोकसभा चुनाव की हार ने बीजेपी को इतना हिला दिया था कि नींव हिलने लगी थी। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता पद से वसुंधरा राजे के इस्तीफे को लेकर तबके अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने घोड़े खोल रखे थे। याद करिए, 17 अक्टूबर की दिवाली से ठीक पहले धनतेरस के दिन 15 अक्टूबर को पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग में कैसे लालकृष्ण आडवाणी ने वसुंधरा से इस्तीफा लेने का फैसला वापस लेने की अपील की। पर राजनाथ सिंह ने आडवाणी तक की अपील खारिज कर दी थी। बोर्ड की मीटिंग में तनाव इस कदर बढ गया कि चार घंटे तक मंथन चलता रहा। पर धनतेरस के दिन बीजेपी अब महिला नेत्रियों पर कोई अहम फैसले से परहेज करती। उमा भारती को 10 नवंबर 2004 को धनतेरस के दिन ही सस्पेंड किया था। यानी पिछली दिवाली बीजेपी अपना ही दिवाला निकालने में लगी थी। पर कैडर बेस पार्टी होने का यही फर्क होता। साल भर बाद ही दिवाली में बीजेपी में शांति का माहौल। बीजेपी नेताओं ने बड़े इत्मिनान के साथ दिवाली मनाई। पर पिछले साल सत्ता में वापसी के बाद दिवाली पर घी का दीया जलाने वाली कांग्रेस इस बार फटेहाल। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी तक आ चुकी। पर ए. राजा को संचार मंत्रालय से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही कांग्रेस। कॉमनवेल्थ घोटाले और मुंबई आदर्श सोसायटी घोटाले के तो वाकई क्या कहने। भ्रष्टाचार के मुद्दे ने कांग्रेस को इस कदर घेर रखा कि अब कांग्रेस कुछ कहने के बजाए, दबी जुबान कहती फिर रही- भ्रष्टाचार को जिंदगी का हिस्सा हो चुका। अब दबी जुबान ही सही, कोई सत्ताधारी पार्टी ऐसी सोच रखती हो। तो आप उससे देश हित की क्या उम्मीद रखेंगे? पर वक्त का पहिया घूमने में देर नहीं लगती। तभी तो पिछली दिवाली बीजेपी टेंशन मेें थी। तो अबके कांग्रेस फटेहाल दिख रही। भ्रष्टाचार से धन तो जुटा लिए। आम आदमी का पैसा अपनी जेब में भर लिया। जनता गरीबी और महंगाई के बोझ तले दबी। पर कांग्रेस भ्रष्टाचार को पनाह देने में लगी हुई। अब सवाल, आम आदमी का ‘दीया’ छीन कांग्रेस कब तक अपना ‘चिराग’ जलाएगी? भ्रष्टाचार की हांडी तो एक-न-एक दिन फूटेगी ही। चारा घोटाले वाले लालू आज किस कदर पानी मांग रहे। बोफोर्स ने कैसे देश में तख्ता पलट कर दिया। यह किसी को भी नहीं भूलना चाहिए। पर राजनीति की बातें तो होती रहेंगी। फिलहाल दीपावली की आप सबको ढेर सारी शुभकामनाएं।
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04/11/2010