Monday, December 28, 2009

कैसे हो 'रिफॉर्म', जब चालू आहे चापलूसी

इंडिया गेट से
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कैसे हो 'रिफॉर्म', जब
चालू आहे चापलूसी
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 संतोष कुमार
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          अब पुलिस थाने में शिकायत ही एफआईआर। रुचिका गिरहोत्रा प्रकरण तूल पकड़ चुका। इंसाफ की जंग कोर्ट से बाहर सड़कों पर शुरु हुई। तो संवेदनशीलता दिखाने की होड़ मच गई। सो सोमवार को होम मिनिस्ट्री ने सभी स्टेट को सर्कुलर जारी कर दिया। थाने में की गई शिकायत को ही एफआईआर माना जाए। पर शिकायत यानी तहरीर भी कोई पुलिस वाला न ले। तो कौन क्या कर लेगा। जब देश में पीएम की चि_ïी का सीएम पर कोई असर नहीं पड़ता। तो आम आदमी की राठौर जैसे पुलिसिए के सामने क्या बिसात। अब बीजेपी नेता शांताकुमार ने खुलासा किया। रुचिका केस को सुन तबके पीएम वाजपेयी रो पड़े थे। उनने हरियाणा के सीएम ओमप्रकाश चौटाला को कड़ी चि_ïी लिखी थी। तो खुद चौटाला-भजनलाल अपनी तरफ से कड़े कदम उठाने की दलील दे रहे। पर क्या देश की व्यवस्था इतनी नाकारी हो चुकी। जो पीएम-सीएम सबकी पहल के बाद भी रुचिका को इंसाफ मिलने में 19 साल लग गए? यों अभी भी रुचिका को अधूरा इंसाफ मिला। अधेड़ उम्र के राठौर ने 14 साल की लड़की से जबर्दस्ती करनी चाही। आखिर उस लड़की को सुसाइड करना पड़ा। फिर भी केस इतना कमजोर बनाया गया। राठौर को महज छह महीने की सजा मिली। सो तहरीर को एफआईआर बनाने से क्या होगा। जब तक पुलिस तंत्र न बदले। रुचिका केस में तो यही हुआ। रुचिका केस में दोषी हरियाणा के पूर्व डीजीपी एसपीएस राठौर तब आईजी थे। सो महीने-साल नहीं, अलबत्ता पूरे नौ साल तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई। उल्टा रुचिका के परिवार को प्रताडऩा सहनी पड़ी। पुलिस ने ही झूठे केस में फंसा परिवार को हरियाणा छोडऩे को मजबूर कर दिया। सो सिर्फ सर्कुलर जारी होने से समस्या खत्म नहीं होने वाली। जब तक पुलिस का अंदाज नहीं बदलेगा। तब तक लोग पुलिस से खौफ खाते रहेंगे। और पुलिसिए भी अंग्रेजों की मानसिकता से ऊपर नहीं उठेंगे। सो जब तक पुलिस रिफॉर्म पर अमल नहीं होता। तहरीर को एफआईआर मानने से कुछ नहीं होगा। जरुरत तो इस बात की है, पुलिस रिफॉर्म की बातें सिर्फ कागजों तक सिमट कर न रहे। हर बार पुलिस रिफॉर्म को शोर मचता। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। बस इसी चक्कर में फिर फाइलों में गुम हो जाता। जबकि सुप्रीम कोर्ट तक पुलिस रिफॉर्म की बात कह चुका। पर राज्यों की फंडिंग के चक्कर में गाड़ी आगे नहीं खिसक रही। सो न पुलिस बदल रही, न पुलिसिया चेहरा और खौफ। आज भी, आम आदमी की आंखों के सामने पुलिस गुजर जाए। तो मन में सुरक्षा का भाव नहीं, अलबत्ता आंखों में खौफ का साया दिखता। आखिर हो क्यों ना। पुलिस वाले तो हुकूमत के इशारे पर चलते। सो जब जिसकी सरकार बनी। पसंद के ऑफीसर मलाईदार-रुतबेदार पदों पर काबिज हो जाते। सो राजनेता भी मौजूदा पुलिस तंत्र के ही आदी। अब वही होम मिनिस्ट्री राठौर का मैडल छीनने जा रही। पर 19 साल तक कहां सोई रही सरकार? यों मैडल कैसे लोगों को मिलता, अब किसी से यह बात छुपी नहीं। मैडल तो छोडि़ए, अब पद्मश्री हो या पद्मविभूषण। हर जगह घालमेल और सत्ता का साया साफ दिख जाता। सो मैडल के लिए फर्जी मुठभेड़ की खबरें आम हो चुकीं। लोकशाही में भी नेतागण राजशाही चाहते। सो प्रतिबद्ध नौकरशाही की दरकार सबको। सनद रहे, सो याद दिलाते जाएं। दिसंबर 1969 में तबकी पीएम इंदिरा गांधी ने नौकरशाही से प्रतिबद्धता की मांग की थी। नौकरशाहों से अपनी राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करने को कहा। सो बवाल मचा, तो उन ने नौ फरवरी 1970 को इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स में सफाई दी। चाटुकार सरकारी कर्मचारी तंत्र नहीं चाहिए। पर इंदिरा को जो कहना था, वह कह चुकी थीं। सो नेताओं में रूतबे का, तो नौकरशाही में चमचागिरी का रोग। यानी अब अगर पुलिस तंत्र का सुधार करना पड़ा। तो राजनीति में भी आमूल-चूल बदलाव लाने होंगे। पर न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। एफआईआर से पूर्व पीएम नरसिंह राव पर भी हुए। पर क्या कभी सजा मिली? शिबू सोरेन की झामुमो को खरीद कर राव ने अल्पमत सरकार बचाई। पर 17 साल हो गए। नरसिंह राव तो अब दुनिया में नहीं रहे। पर शिबू का भी कुछ नहीं बिगड़ा। अलबत्ता सत्ता के समीकरण जरुर बदल गए। शिबू कभी कांग्रेस खेमे में बैठते थे। अबके सत्ता की खातिर बीजेपी के साथ हो लिए। पर शिबू की पार्टी तो एक क्षेत्र विशेष की ठहरी। पर बीजेपी की नैतिकता कहां गई? जिस शिबू की खातिर मनमोहन को दागी केबिनेट का मुखिया कहा। शिबू के नाम पर संसद से सड़क तक खूब घोड़े दौड़ाए। अब उसी शिबू के साथ गलबहियां। पर जरा नितिन गडकरी की नई दलील सुनिए। सत्ता की राजनीति अलग और संगठन की अलग। कांग्रेस तो 125 वीं सालगिरह पर ही खूब इतरा रही। पीएम मनमोहन हों या सोनिया गांधी। गांधी-नेहरू खानदान को ही देश का पर्याय बता रहे। मनमोहन ने सोमवार को कहा- 'अगर कांग्रेस कमजोर हुआ, तो भारत कमजोर होगा। सो कांग्रेस को मजबूत करे।' उनने सोनिया के ऐसे कसीदे पढ़े। अपने राजनीतिक गुरु नरसिंह राव को भूला दिया। नई आर्थिक नीति का श्रेय भी राजीव गांधी को दे दिया। यानी सोनिया ने दो बार पीएम बनाया। तो मनमोहन ने भी अपनी उदारीकरण की नीति बतौर रिटर्न गिफ्ट गांधी-नेहरु खानदान को थमा कर्ज उतार लिया। अब पुलिस तंत्र हो या राजनीतिक तंत्र। जब तक चापलूसी बंद नहीं होगी। तब तक व्यवस्था का राम ही राखा।
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28/12/2009