Monday, August 2, 2010

महंगाई पर सरकार के पक्ष में विपक्ष ने डाला ‘वोट’

‘यह सदन अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे मुद्रास्फीति के दबाव पर चिंता व्यक्त करता है और सरकार से आह्वान करता है कि आम आदमी पर पड़े रहे मुद्रास्फीति के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए कार्रवाई करे।’ संसद में मंचन के लिए आम आदमी की खातिर यही स्क्रिप्ट तैयार हुई। अब जरा संविधान के तहत ली जाने वाली शपथ की भाषा देखिए- ‘मैं.. ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं कि सत्यनिष्ठा के साथ संविधान के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करूंगा....।’ पर जब राजनेता उस शपथ पर कायम नहीं रह पाते, तो महंगाई पर संसद में आने वाले इस प्रस्ताव से क्या होगा? संसद तो अब सत्ताधीशों की कठपुतली बन चुकी। सो हफ्ते भर बाद गतिरोध टूट गया। पक्ष-विपक्ष की ऐसी जुगलबंदी हुई, बेचारा आम आदमी तमाशबीन ही रह गया। प्रस्ताव में आम आदमी का हित तो दूर, उसकी समझ में आने वाली भाषा तक नहीं। आखिर किस आम आदमी की समझ में मुद्रास्फीति आएगी। विपक्ष ने खूब कोशिश की, मुद्रास्फीति की जगह मूल्य वृद्धि का जिक्र हो। पर सरकार ने नहीं माना। आखिर सरकार खुद को कटघरे में क्यों खड़ी करती। मनमोहन सरकार को तो विकास दर पर गुरूर। अब एक नई रपट आ गई, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनोमिक रिसर्च ने खुलासा किया, देश में गरीब से ज्यादा अमीर लोग हो गए। अब जब ऐसे-ऐसे आंकड़े आएंगे। तो सरकार को महंगाई कहां दिखेगी। दिल्ली की कांग्रेसी सीएम शीला आंटी तो न जाने कब से कह रहीं। लोगों की आमदनी बढ़ चुकी, सो महंगाई कोई मुद्दा नहीं। देखो, अब रिसर्च में शीला आंटी की बात सच साबित हुई। पर विपक्ष वाले मानते ही नहीं थे। अब माई का लाल विपक्षी दल कह देगा, महंगाई से आम आदमी परेशान। अरे भई, जब कोई आम आदमी ही नहीं, तो महंगाई से कौन परेशान? अगर महंगाई बढ़ी, तो अमीरी उससे कहीं अधिक बढ़ी। सो सरकार ने विपक्ष के नेताओं को साफ बतला दिया, भले कुर्ता फाड़ो या बाल नोंचो, चर्चा होगी तो मुद्रास्फीति पर। अब विपक्ष वाले बेचारे क्या करते। सो प्रणव दा यहां नाश्ता किया, चाय पी और मान गए। पर लाज दोनों की रहे, सो दो शब्द विपक्ष के मान लिए, तो एक अपना मनवा लिया। पर मुद्रास्फीति की चिंता से आम आदमी को क्या मिलने वाला? मनमोहन राज में ही मुद्रास्फीति की दर माइनस तक जा चुकी। पर महंगाई कभी कम नहीं हुई। अबके भी मुद्रास्फीति की दर घट रही। सो कांग्रेस इतराते हुए कह रही- सरकार के ठोस कदमों का नतीजा आने लगा। पर महंगाई तो बाजार जाने पर मालूम पड़ती। एयरकंडीशंड कमरों में बैठने वाले नेताओं को महंगाई क्या मालूम। पर महंगाई के बहाने अपने वेतन-भत्ते जमकर बढ़ाने वाले। तभी तो दोनों पक्षों ने सांठगांठ कर ली। वरना शुक्रवार को बीजेपी-एनडीए हुंकार भर रहे थे, नियम 184 के तहत ही बहस चाहिए। शुक्रवार को ही सोमवार के लिए नोटिस लगा दिया। पर सोमवार संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही विपक्ष की हुंकार गीदड़ भभकी बनकर रह गई। सोमवार को प्रणव मुखर्जी ने नाश्ते पर विपक्षी नेताओं को न्योता दिया। गतिरोध तोडऩे का मजमून पेश किया। तो विपक्ष भी बिना हील-हुज्जत के मान गया। पर सवाल, जब इसी प्रस्ताव से मानना था, तो सत्र से पहले ही स्पीकर की बात क्यों नहीं मानी? मीरा कुमार ने भी तो आसंदी से प्रस्ताव का फार्मूला दिया था। फिर हफ्ते भर की नौटंकी क्यों? अब बीजेपी की दलील, महंगाई पर हफ्ते भर हंगामा कर लिया। सो अब सीबीआई, भोपाल गैस कांड, भारत-पाक वार्ता जैसे कई मुद्दे संसद में उठाने हैं। बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने आडवाणी के साथ बैठकर पहले मंत्रणा की। तो तय कर लिया था, अब सदन चलने देंगे। अगर सरकार नियम 184 नहीं मानी, तो 193 के तहत की बहस का बॉयकाट करेंगे। ताकि संसद सुचारु रूप से चल सके। आडवाणी तो शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में ही गांडीव समर्पण कर चुके। इधर सरकार ने भी ठान लिया था, नियम 193 के सिवा कुछ मंजूर नहीं होगा। अगर विपक्ष संसद नहीं चलने देगा, तो हंगामे में ही कामकाज निपटा चलते बनेंगे। सो सोमवार को नियम 342 के तहत बहस करने, फिर आसंदी से सदन की भावना व्यक्त करने का फार्मूला आया। तो सभी दल खुशी-खुशी राजी हो गए। अब मंगलवार को लोकसभा में जुबानी दंगल होगा। राज्यसभा बुधवार को सुध लेगी। सो झेंप मिटाने को विपक्ष कह रहा- न सरकार जीती, न विपक्ष हारा। सचमुच हारा, तो आम आदमी। सो सोमवार को संसद सुचारु ढंग से चली। तो जातीय जनगणना, जम्मू-कश्मीर की आग का मुद्दा उठा। पर सरकार से क्या उम्मीद करेंगे। जब छह साल से बढ़ रही महंगाई की फिक्र नहीं, तो डेढ़ महीने से जल रहे जम्मू-कश्मीर की क्या फिक्र करेगी। सो संसद अब सिर्फ नाम की सर्वोपरि, असल में राजनीतिक दलों के लिए उपकरण भर रह गई। तभी तो हंगामा संसद में किया, समझौता नाश्ते की टेबुल पर। कल तक विपक्ष कह रहा था- पहले महंगाई की चर्चा, बाकी काम बाद में। ऐसी रार ठनी, लगा, अब तो महंगाई दम तोड़ देगी। पर वोटिंग वाले नियम की मांग करते-करते विपक्ष ऐसा लुढक़ा, अपना ‘वोट’ भी सत्तापक्ष को दे दिया।
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02/08/2010