Wednesday, November 24, 2010

तो अब लफ्फाजी नहीं, सिर्फ विकास मांग रही जनता

बिहार में विकास ने लालू-पासवान का बंटाधार किया। आंध्र में के. रोसैया की अकर्मण्यता ने सीएम की कुर्सी छीन ली। तो कर्नाटक में नैतिकता पर ब्लैकमेल भारी पड़ा। बीजेपी ने येदुरप्पा को सीएम बनाए रखने का एलान कर दिया। पर बुधवार के दो विलेनों की बात फिर कभी। फिलहाल बात सिर्फ हीरो की। बिहार चुनाव में नीतिश कुमार की ऐसी आंधी चली, लालू की लालटेन बुझ गई। पासवान का झोंपड़ा उड़ गया। अब ऐसी आंधी हो, तो कांग्रेस के पंजे की क्या बिसात। देश के इतिहास में किसी गठबंधन को मिली अब तक की सबसे बड़ी जीत एनडीए के नाम दर्ज हुई। जेडीयू और बीजेपी दोनों का स्ट्राइक रेट इतना जबर्दस्त, मान्यता प्राप्त विपक्ष के लिए भी मोहताज होगी बिहार विधानसभा। एकला किसी भी दल को विपक्ष के लिए जरूरी दस फीसदी सीटें नहीं मिलीं। सो लालू-पासवान खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंच रहे। लोकसभा के बाद विधानसभा में भी पिटे लालू जनादेश पचा नहीं पा रहे। अलबत्ता लालू-पासवान ने नीतिश को मिले तीन चौथाई बहुमत को जादुई और रहस्यमयी नतीजा करार दिया। बाकायदा ताल ठोकी- महीने भर में तथाकथित जनादेश से रहस्य का परदा उठाएंगे। लालू-पासवान की हताशा ऐसी, नीतिश को तो बधाई दी, बीजेपी को नहीं। अब विकास की ऐसी जीत हो, तो पंद्रह साल तक बिहार का बेड़ा गर्क करने वालों के पेट में दर्द लाजिमी। वह भी तब, जब लालू की बीवी राबड़ी दोनों सीटों से चुनाव हार गई हों। पासवान के दोनों भाई बिना किसी मशक्कत के निपट गए हों। तो चुनाव नतीजों पर ऐसी बौखलाहट को सांत्वना के नजरिए से ही देखना चाहिए। अब लालू-पासवान भी कहीं बेजुबान ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ें, तो कोई हैरानी नहीं। लालू ने यही कहा- अभी बोलूंगा, तो आप लोग कहोगे, हार से भन्नाकर बोल रहे। इसलिए एक महीने बाद बोलूंगा। लालू को शायद अपने दिन याद आ रहे, जब बैलेट बॉक्स से जिन निकला करते थे। पर सही मायने में लालू-पासवान के लिए यह गंभीर मंथन का वक्त। पासवान युग का तो लोकसभा में ही अंत हो चुका। अब विधानसभा के नतीजे लालू युग के अवसान के द्योतक। यों राजनीति में उठने-गिरने का दौर चलता रहता। लालू-पासवान ने अपनी तुलना इंदिरा गांधी से की। जब इमरजेंसी के बाद इंदिरा का सफाया हो गया था। पर दो साल बाद दमखम से इंदिरा लौटीं। हार के बाद लौटने का ऐसा जज्बा काबिल-ए-तारीफ। पर लालू-पासवान भूल गए, इंदिरा लौटीं, तो जनता पार्टी की कलह की वजह से। अगर लालू सचमुच राजनीतिक वापसी चाहते, तो ईमानदार ही नहीं, समझदार विपक्ष की भूमिका निभानी होगी। यों ही हार पर लकीर पीटते रहे, तो फकीर बन घूमते रह जाएंगे। नीतिश कुमार को प्रचंड बहुमत मिलना, जितना गदगद करने वाला, उतना ही चिंता का भी विषय। इतिहास साक्षी, जब-जब जनता ने किसी दल को प्रचंड बहुमत दिया, तो अगला चुनाव उसके लिए घातक साबित हुआ। नीतिश कुमार को जनता के हर तबके का वोट मिला। तो सबके मन में सिर्फ यही, विकास की रफ्तार से उसका इलाका महरूम न हो। अगर नीतिश उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे, तो जनता खुद जवाब देगी। सो नतीजों में छुपे संदेश को भांप चुके नीतिश ने भी पूरी सौम्यता दिखाई। माना, इतनी बड़ी जीत से चिंता बढ़ी। उनके पास कोई जादुई छड़ी नहीं। पर जनता के विश्वास और अपनी लगन से कामयाबी हासिल करेंगे। सचमुच नीतिश को मिले जनादेश में बदलते बिहार की महक ही नहीं, और भी उम्मीदें। बिहार की जनता ने विकास का खांचा देखा, जिसमें लालू कहीं फिट नहीं। सो नीतिश को ऐसा जनादेश दिया, जिसमें अब कोई इफ एंड बट की गुंजाइश नहीं। लोगों ने माना, नीतिश के पांच साल में भले रामराज नहीं, पर नीतिश के इरादे नेक। सो लोगों ने जात-पांत से ऊपर उठकर नीतिश को सामाजिक समरसता का हीरो बनाया। भले बिहार की राजनीति से जात-पांत अभी दूर नहीं हुआ। पर विकास के मुद्दे ने जातीय राजनीति की दीवार को कमजोर जरूर किया। यूपी के बाद बिहार में सामाजिक समरसता की लहर चली। मायावती के सोशल इंजीनियरिंग ने यूपी में मिसाल पेश की थी। तो अब पेशे से इलैक्ट्रॉनिक इंजीनियर नीतिश कुमार ने ऐसा शॉक दिया, लालू-पासवान ठीक से बोल नहीं पा रहे। रही बात कांग्रेस की, तो सीधे सोनिया गांधी ने बयान दे दिया, बिहार से अधिक उम्मीद नहीं थी। पर कोई पूछे, नौ सीट से चार पर आने की उम्मीद थी? बीजेपी नेता अरुण जेतली ने सही फरमाया, बिहार की जनता ने परिवारवाद की राजनीति को नकार विकास को अपनाया। सो बिहार में न राहुल चले, न लालू की बीवी राबड़ी जीतीं। न पासवान के भाई, न लालू को छोड़ गए दोनों साले साधु-सुभाष। सो नीतिश का जादू देख बाकी नेताओं में बधाई देने की होड़ मच गई। बीजेपी के तमाम दिग्गजों ने तो बधाई दी ही। होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने कहा- बिहार की जनता ने विकास का मुद्दा स्वीकार किया। अब सवाल कांग्रेस से- फिर सोनिया-राहुल चुनावी सभाओं में नीतिश के विकास का मखौल क्यों उड़ा रहे थे? पर कांग्रेस की जैसी परंपरा, चाटुकारों ने राहुल फैक्टर को अगले चुनाव की तैयारी बताया। पीएम, सोनिया, मोदी सब बुधवार को नीतिश के मुरीद दिखे। पर चुनाव नतीजों में जितनी जनता की उम्मीद, उतनी ही आशंका भी पैदा कर रही। बीजेपी-जेडीयू दोनों मजबूत हुईं, पर जेडीयू अपने बूते बहुमत से महज आठ-दस सीट दूर। सो गठबंधन के रिश्तों पर भी सबकी निगाह होगी। पर फिलहाल तो बिहार में लुट गए लालू, पिट गए पासवान। कांग्रेस का तो क्रिया-कर्म हो गया।
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24/11/2010