Thursday, November 25, 2010

संविधान नहीं, पक्ष-विपक्ष की जिद संसद पर हावी

आंध्र में कांग्रेस को आशा की किरण मिल गई। नल्लारी किरण कुमार रेड्डी ने सीएम की कुर्सी संभाल ली। तो अब शुक्रवार को नीतिश कुमार तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। बिहार में जेडीयू-बीजेपी दोनों की सीटें छप्पर फाड़ कर बढ़ीं। पर जनादेश के निहितार्थ को दोनों नेतृत्व ने बखूबी समझा। सो तय हो गया, पुराने फार्मूले पर ही सरकार का गठन होगा। अगर एक ने भी अपनी बढ़ी ताकत को सौदेबाजी का हथियार बनाया होता। तो गठबंधन में दरार लाजिमी थी। पर जनता के समझदारी भरे फैसले को जितनी सौम्यता से नीतिश ने कबूला, उतना ही संयम बीजेपी ने भी दिखाया। पर कांग्रेस को राहुल का फेल होना हजम नहीं हो रहा। यों सोनिया गांधी ने पहले दिन ही कमान संभाल लाइन दे दी। सो गुरुवार को कांग्रेस ने बिहार में राहुल के फेल होने को मीडिया की गलत धारणा बताया। जयंती नटराजन बोलीं- राहुल युवाओं के आदर्श हैं। कांग्रेस का चेहरा हैं, उन ने पार्टी महासचिव की हैसियत से प्रचार किया। जिससे कांग्रेस का काडर भविष्य के लिए प्रेरित हुआ। अब कांग्रेस की ऐसी टिप्पणी कोई चौकाने वाली बात नहीं। जीत का सेहरा हमेशा गांधी परिवार के सिर बांधने की परंपरा। हार का ठीकरा स्थानीय नेतृत्व पर। वैसे भी बिहार के नतीजों के दूसरे दिन ही इलाहाबाद की रैली में चाटुकार कांग्रेसियों ने अपनी भक्ति का भोंडा प्रदर्शन कर दिया। जब पोस्टरों में सोनिया को भारत माता, तो राहुल गांधी को कृष्ण दिखाया। अब कांग्रेसी चाहे जितनी दलीलें दें, पर बिहार की जनता ने काम को जनादेश देकर अपना संदेश दे दिया। सो जनता की उम्मीदों को पूरा करने हनक के साथ नीतिश शुक्रवार को फिर कमान संभालेंगे। तो विकास की पटरी पर लौटा बिहार अब रफ्तार भरेगा। पर दुर्भाग्य, लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में दस दिन से कोई काम नहीं हो रहा। अलबत्ता पक्ष-विपक्ष की रार यही संदेश दे रही। भले संसद का सत्र भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाए, पर किसी भ्रष्टाचारी को बलि चढ़ाने वाली जेपीसी नहीं बनेगी। सो अब सत्रावसान की खबरें जोर पकडऩे लगीं। तो सरकार और कांग्रेस पर भ्रष्टाचार से भागने का आरोप न लगे, सो विपक्ष को हंगामाई साबित करने की मुहिम तेज हो गई। गुरुवार को राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी ने मीटिंग बुलाई। पर संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल ने दोहरा दिया, जेपीसी नहीं मानेंगे। सरकार और कांग्रेस के संकटमोचक प्रणव मुखर्जी ने भी हाथ खड़े कर दिए। बोले- मैं नहीं जानता यह गतिरोध कैसे खत्म होगा। मैं समाधान नहीं ढूंढ पा रहा, फिर भी कोशिश कर रहा हूं। लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने एक बार फिर गतिरोध दूर करने और सदन चलने देने की अपील की। यानी सरकार की ओर से यह संदेश देने की कोशिश तेज हो गई कि वह संसद चलाने के पक्ष में। पर विपक्ष अड़ंगा डाल रहा। प्रणव दा और बंसल ने बाकायदा विपक्ष को चुनौती दी, अगर पीएसी की जांच और सरकार पर भरोसा नहीं। तो अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। बंसल ने तेरह दिसंबर तक सत्र चलाने की मंशा का इजहार किया। पर भ्रष्टाचार की जांच में अविश्वास प्रस्ताव का क्या मतलब? विपक्ष ने सरकार को अल्पमत में नहीं बताया। अलबत्ता भ्रष्टाचारियों को शिकंजे में लाने के लिए जेपीसी की मांग की। अगर सरकार के मन में कोई खोट न होता, तो जेपीसी पर ऐसी रार न ठनती। अब भले सरकार जुबां से तेरह दिसंबर तक सत्र चलाने का एलान कर रही। पर गुरुवार की सारी बयानबाजियों में मंशा समय पूर्व सत्रावसान की ही। सो सत्तापक्ष की रणनीति भांप विपक्ष भी अब अपना नंबर बढ़ाने में जुट गया। गुरुवार को सारे मुलायमवादी जेपीसी की मांग को लेकर संसद के परिसर में धरने पर बैठ गए। अगर 1962, 1965, 1971 और कारगलि युद्ध को छोड़ दें। तो विपक्ष के बारे में हमेशा अवसरवादी होने की धारणा बनी हुई। विपक्ष की भूमिका का मतलब सिर्फ यहीं तक सीमित रह गया कि हमेशा ऐसे मौकों की तलाश करो, जिससे सरकार पर छींटाकशी की जा सके। चरित्र हनन कर जनता में छवि बिगाड़ी जा सके। कुल मिलाकर सत्तापक्ष को बदनाम कर ही विपक्ष अपनी भूमिका की इतिश्री मान लेता। पर सत्तापक्ष को भी संसद की फिक्र नहीं रही। संसद को हमेशा ऐसे घुमाने की कोशिश की, मानो बपौती हो। वरना भ्रष्टाचार के इतने बड़े-बड़े खुलासे हो रहे। सुप्रीम कोर्ट से आए दिन ऐसी टिप्पणियां आ रहीं, जो सरकार को शर्मसार कर रहीं। फिर भी ऐसे बर्ताव कर रही, मानो, शर्म-हया बेच खाई हो। गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को लताड़ा। पूछा, अब तक स्पेक्ट्रम घोटाले में पूर्व संचार मंत्री ए. राजा से पूछताछ क्यों नहीं हुई। कोर्ट एक दिन पहले ही इस घोटाले को महाघोटाला करार दे चुकी। फिर भी सरकार का गुरूर देखिए, जेपीसी नहीं मान रही। अब पक्ष-विपक्ष की इसी कटुता के बीच 26/11 की दूसरी बरसी का वक्त आ गया। पर क्या श्रद्धांजलि महज औपचारिकता भर होगी या संसद एकजुट होकर आतंकवाद को कुचलने का सच्चा संकल्प लेगा? सिर्फ मुंबई हमला ही नहीं, 26/11 की तारीख अपने संविधान के लिए भी अहम। इकसठ साल पहले 26/11 को ही संविधान सभा ने देश के संविधान को मंजूरी दी थी। पर अफसोस, आज संविधान नहीं, सत्तापक्ष और विपक्ष की जिद संसद पर हावी।
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25/11/2010