Friday, July 23, 2010

अमित शाह नहीं, फिक्र मोदी की

मानसून सत्र से पहले तलवारें खिंच गईं। अगर विपक्ष के तरकश में भारत-पाक वार्ता, महंगाई, भोपाल गैस कांड, रेल दुर्घटना, घाटी की घटना, नक्सलवाद और सरकार में आपसी खींचतान वाले मुद्दों के तीर। तो सत्तापक्ष की झोली में हिंदू आतंकवाद, कर्नाटक में अवैध खनन, बिहार का बवंडर और अब बीजेपी को अलग-थलग करने का सबसे लजीज मुद्दा गुजरात आ गया। सो खलबलाई बीजेपी ने शुक्रवार को पीएम के घर का 'लजीज' खाना ठुकरा दिया। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में सीबीआई का शिकंजा नरेंद्र मोदी के दिल-अजीज मंत्री अमित शाह पर कसा। तो बीजेपी की बत्ती गुल हो गई। नरेंद्र मोदी की लिखी स्क्रिप्ट पर मंथन करने आडवाणी के घर बीजेपी की शीर्ष चौकड़ी बैठी। तो आर-पार का फैसला हो गया। बीजेपी के अरुण जेतली और सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला। तो सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगाया। सुषमा बोलीं- विरोधियों के खिलाफ सीबीआई के दुरुपयोग का यह ताजा उदाहरण। सो ऐसे प्रदूषित वातावरण में हम चारों का पीएम के घर लंच पर जाना जंचेगा नहीं। पर सवाल, क्या एक आरोपी मंत्री का इतने बड़े स्तर से बचाव जंच रहा? सीबीआई ने गुजरात के गृह राज्यमंत्री को दो बार समन किया। पर अमित शाह क्यों नहीं पहुंचे? अब सीबीआई ने बाकायदा चार्जशीट दाखिल कर दी। पर बीजेपी ने अमित शाह का इस्तीफा नहीं कराया। जबकि लालू-शिबू-जेपी जैसों के खिलाफ बीजेपी ने चार्जशीट पेश होते ही इस्तीफे की मांग की थी। खुद बीजेपी ऐसी नजीर पेश कर चुकी। उमा भारती जब मध्य प्रदेश की सीएम थीं। पर हुबली तिरंगा केस में फंसीं, तो बीजेपी ने रातों-रात इस्तीफा कराया। तब बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। पर अब बीजेपी के चाल, चरित्र, चेहरे को क्या हो गया? अगर अमित शाह निर्दोष, तो सीबीआई के सामने आने से कतरा क्यों रहे? शाह कई दिनों से लापता, पर बीजेपी को फिक्र नहीं। गुजरात में मंत्री माया कोडनानी भी पहले ऐसे ही फरार हुई थीं। पर बाद में जेल जाना पड़ा। अब उसी राह पर अमित शाह। अगर अमित शाह सचमुच बेदाग, तो अदालत में दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। पर बीजेपी के शीर्ष नेता जिस तरह बचाव में उतरे, उसका क्या मतलब? अगर बीजेपी के आरोप को सच मान लें, तो सवाल- सीबीआई का बेजा इस्तेमाल कौन नहीं करता। अगर सीबीआई सचमुच कांग्रेस सरकार के इशारे पर शाह को फंसा रही होगी। तो कोर्ट में सीबीआई की कलई खुल जाएगी। अगर सीबीआई पर भरोसा नहीं, तो कम से कम कोर्ट पर बीजेपी को ऐतबार होगा। बीजेपी के इस आरोप में कोई दो-राय नहीं, सरकार सीबीआई का बेजा इस्तेमाल कर रही। सचमुच सीबीआई कहने भर को ‘ऑटोनॉमस बाडी’। केंद्र में जिसकी भी सरकार बनी, सीबीआई को भोंपू बनाया। जब भी राजनीतिक मुसीबत आन पड़ी, यही भोंपू बजा दिया। तभी तो सीबीआई डायरेक्टर की तैनाती में वफादारी मापदंड बन चुका। सीनियरिटी अब कुछ भी नहीं। सरकार हमेशा ऐसा डायरेक्टर ढूंढती, जो इशारे पर काम करे। तभी तो अपने राजस्थान काडर के एम.एल. शर्मा डायरेक्टर नहीं बन पाए। सीनियरिटी और अनुभव में शर्मा का नंबर था। पर डायरेक्टर बनाए गए शर्मा से एक साल जूनियर अश्विनी कुमार। जूनियर के अंडर में काम करना शर्मा को गवारा न हुआ। सो लंबी छुट्टïी पर चले गए। पर सीबीआई के बेजा इस्तेमाल में कोई राजनीतिक दल पाक-साफ नहीं। यूपी में बीजेपी से माया का गठजोड़ टूटा। तो एनडीए राज में ताज कॉरीडोर केस बन गया। जो अभी भी माया के गले की फांस। राष्टï्रपति चुनाव के वक्त माया-सोनिया मिलीं। तो बात बन गई थी। पर जब माया की मांग बढऩे लगी। तो रिश्तों में दरार आ गई। माया ‘आउट’ हुईं, तो एटमी डील के लिए मुलायम ‘इन’ हो गए। सो जब विश्वास मत का संकट आया, तो कांग्रेस ने माया को सीबीआई का हौवा दिखाया था। फिर कटमोशन के वक्त हुई सौदेबाजी भी जगजाहिर। तभी तो दस फरवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को लताड़ पिलाई थी। जब एटमी डील की एवज में मनमोहन सरकार मुलायम को बचाने की कोशिश कर रही थी। सो कोर्ट ने सीधा सवाल पूछा था- ‘आप केंद्र सरकार के पास क्यों गए? मेरे पास क्यों नहीं आए? आप केंद्र सरकार और विधि मंत्रालय के इशारे पर काम कर रहे। अपनी मर्जी से नहीं। अब इसका (सीबीआई)भगवान ही मालिक।’ पर सीबीआई सुधरे भी कैसे। जब राजनीतिक आका गर्दन नापने को बैठे हुए। तभी तो कांग्रेस हो या बीजेपी, विपक्ष में रहते सीबीआई नहीं सुहाती। सो सचमुच सीबीआई का मतलब कांग्रेस-बीजेपी ऑफ इनवेस्टीगेशन होना चाहिए। अगर बीजेपी के अमित शाह पाक-साफ, तो भगोड़ा क्यों बने हुए? पर अब अमित शाह की गिरफ्तारी तय हो चुकी। सो बीजेपी की मुश्किल महज अमित शाह नहीं। अगर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सीधे मैदान में उतरा, तो अमित की खातिर नहीं। अलबत्ता एसआईटी के सामने नरेंद्र मोदी की पेशी के बाद अब सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में सीबीआई का अमित शाह तक पहुंचना सीधे मोदी को झुलसाएगा। गृह राज्यमंत्री अगर पूरे मामले में लिप्त, तो सवाल गुजरात की समूची संवैधानिक व्यवस्था पर। सो बीजेपी को अमित शाह की उतनी फिक्र नहीं, जितनी हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी की। आडवाणी-गडकरी-जेतली-सुषमा का मनमोहन के खिलाफ एलान-ए-जंग भविष्य की तैयारी। ताकि जब तक जांच की आंच मोदी तक पहुंचे, मामला पूरी तरह से राजनीति के रंग में रंग जाए।
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23/07/2010