Friday, December 25, 2009

वाजपेयी को तोहफे में बीजेपी ने दिया झारखंड

इंडिया गेट से
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वाजपेयी को तोहफे में
बीजेपी ने दिया झारखंड
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 संतोष कुमार
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           राजनीति के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी का 86वां जन्मदिन धूमधाम से मना। हर बार की तरह पीएम मनमोहन चलकर अटल को बधाई देने पहुंचे। भले कांग्रेस-बीजेपी में बैर जगजाहिर। पर मनमोहन की वाजपेयी के प्रति अगाध श्रद्धा। तभी तो भरी संसद में मनमोहन ही वह शख्स थे। जिन ने वाजपेयी को बीजेपी नहीं, अलबत्ता राजनीति का भीष्म पितामह कहा था। सो अपने भीष्म पितामह को अबके नई बीजेपी ने बधाई दी। बीजेपी दफ्तर में रक्तदान शिविर लगे। तो शाम को फिक्की में अनूप जलोटा की भजन संध्या। भजन संध्या में बीजेपी के तमाम दिग्गजों के अलावा जेडीयू के शरद यादव, सपा के मुलायम-अमर भी पहुंचे। शिवसेना के मनोहर जोशी आए। तो एक नाम उड़ीसा में बीजेपी को धकिया चुकी बीजद का भी। बीजद के बी.जे. पंडा भी लिस्ट में शुमार। यानी वाजपेयी दलगत राजनीति से ऊपर उठ चुके। सो किसी भी दल के नेता को वाजपेयी की खातिर बीजेपी के मंच पर आने में हिचक नहीं। सचमुच बीजेपी में वाजपेयी की जगह कोई नहीं ले सकता। वाजपेयी में कभी बनावटीपन नहीं रहा। सो जनता के दिल में दशकों से राज कर रहे। पंडित नेहरू को भी वाजपेयी में भावी पीएम की छवि दिख गई थी। फिर इंदिरा राज हो या बाकी सरकारें। वाजपेयी की छवि जन-जन के दिल में बस गई। तभी तो पिछले साल दिसंबर में आडवाणी ने वाजपेयी के लिए भारत रत्न मांगा। तो ऐसी घुड़दौड़ मची। सरकार ने किसी को भी भारत रत्न नहीं दिया। तब यहीं पर लिखा था। वाजपेयी को भारत रत्न मिले या न मिले। लोगों के दिलों के रत्न हमेशा रहेंगे। पर बात वाजपेयी के 86वें जन्मदिन की। अबके आम आदमी वाजपेयी के पास नहीं पहुंच सका। वाजपेयी का स्वास्थ्य ठीक नहीं। सो जन्मदिन को वीवीआईपी तक ही सीमित रखा। पर बीजेपी में लंबे झंझावातों के बाद बड़े बदलाव हो चुके। सो तमाम दिग्गज बधाई देने पहुंचे। पर लगातार हार का मुंह देख रही बीजेपी ने अबके अटल को गिफ्ट देने की ठान ली। सो देर शाम झारखंड में सरकार गठन के लिए समझौते का एलान हो गया। झारखंड में खिचड़ी जनादेश आया। पर बीजेपी-जेडीयू ने झामुमो और आजसू से हाथ मिला लिया। सो 81 के सदन में नए गठबंधन का आंकड़ा बहुमत के जादुई आंकड़े से दो ज्यादा यानी 43 हो गया। कांग्रेस पॉवर-पैसा के बावजूद मुंह ताकती रह गई। जबसे कांग्रेस ने सहयोगी दलों को लंगड़ी मारने की रणनीति बनाई। एकला चलो की खातिर सहयोगियों को कमजोर किया। तबसे कांग्रेस को यही गुमान, जब जनता चुनाव जितवा रही। तो बाकी सत्ता भी अपनी कीमत पर हथिया लेंगे। सो शिबू सोरेन की शर्त मानने से इनकार कर दिया। अलबत्ता कांग्रेस ने शिबू की पार्टी में तोडफ़ोड़ की कवायद शुरू कर दी। ताकि शिबू के 18 में से 12 एमएलए टूट जाएं। उधर लालू के पांच में से तीन टूट जाएं। तो कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी सत्ता का समीकरण बना लेंगे। बाकी कमी-बेशी रही, तो केंद्र में अपनी सरकार। सो गवर्नर कब काम आएंगे। पर बीजेपी ने पहले ही अपना कमाल दिखा दिया। राजनाथ अध्यक्षी की स्टेयरिंग छोड़ चुके। सो पूरा फोकस झारखंड पर लगा दिया। भले बीजेपी अबके तीस से खिसक कर 18 सीट पर आ गई। पर सरकार बनाने का मंसूबा नहीं छोड़ा। यों नितिन गडकरी ने सत्ता की नहीं, विकास और सेवा की राजनीति पर जोर दिया। पर शिबू के साथ नए गठजोड़ को आप क्या कहेंगे। शायद बीजेपी ने यही ठान रखा था। बहुत हार सह ली। अबके वाजपेयी को बर्थ-डे गिफ्ट में चुनाव जीते बिना सत्ता समर्पित करेंगे। सो झारखंड से लौटे राजनाथ की गडकरी से मीटिंग हुई। उधर रांची में यशवंत सिन्हा और अर्जुन मुंडा ने गुरु जी (शिबू) को पटाया। शनिवार को गवर्नर के सामने दावा पेश होगा। सो फार्मूला तय हुआ, शिबू सोरेन सीएम होंगे। साथ ही झामुमो के चार और मंत्री। बीजेपी का स्पीकर होगा। साथ में चार मंत्री भी। इसी कोटे में बीजेपी और झामुमो का एक-एक डिप्टी सीएम भी होगा। आजसू के दो मंत्री होंगे। तो एक जेडीयू का। यानी 81 के सदन में सिर्फ 12 मंत्री बनाए जा सकते। सो गठबंधन ने सत्ता की बंदरबांट शपथ से पहले ही कर ली। पर झारखंड में सत्ता इतनी आसान नहीं। शिबू के कई अल्पसंख्यक एमएलए बीजेपी के साथ जाने के खिलाफ। अब नाराज लोगों को ही शिबू मंत्री बना दें। तो फिर बात अलग। वैसे भी मंत्रियों की अपनी एक अलग जात होती। जिसमें लाल बत्ती और बाकी रुतबा। पर क्या अवसरवादी गठजोड़ को विकास करने वाला माना जा सकता? झारखंड का इतिहास तो ऐसा मानने को तैयार नहीं। सो नितिन गडकरी भले विकास की बात करें। पर राजनीति में एक ही फार्मूला चलता। न नीति, न नैतिकता, सबसे बड़ी सत्ता। याद करिए कर्नाटक का 20-20 महीने वाला जेडीएस-बीजेपी फार्मूला। कुमार स्वामी ने समझौता नहीं निभाया। तो सरकार गिर गई। फिर 20 दिन बाद दोनों एक हो गए। तो सरकार बन गई। भले सरकार हफ्ते भर ही चली। पर तब बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा था। जिसका जिक्र यहीं पर 28 अक्टूबर 2007 को हमने किया। उस नेता ने कहा था- 'हवन तीन बजे न सही, छह बजे हो। जेडीएस ने हमारी बात मान ली। सो हम भी तो कोई सन्यासी नहीं। आखिर राजनीति इसलिए तो कर रहे।'
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25/11/2009