Thursday, January 13, 2011

चुनावी भोजन यानी, घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने

 तो इसे कहते हैं- 'घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने।' लोकसभा चुनाव के वक्त सोनिया गांधी ने मैनीफेस्टो में खाद्य सुरक्षा बिल का वादा तो कर दिया। पर अब वादा निभाने में सरकार को नानी याद आ रही। चुनावी वादों पर अक्सर बाद में यही कहानी देखने को मिलती। जब वोट बटोरने की होड़ मची थी। तब सोनिया ने चुनावी भोजन की झलक दिखा खूब वोट बटोरे। पर अब जब सत्ता में आने के बाद परोसने की बारी आई, तो पीएम की कमेटी ने पत्तल ही छीन ली। मनमोहन की बनाई एक्सपर्ट कमेटी ने सोनिया की एडवाइजरी काउंसिल के प्रस्ताव को बेहिचक नामंजूर कर दिया। रंगराजन कमेटी ने रपट में साफ कर दिया- जितना अनाज बांटने की योजना, उतना अनाज सरकार के पास नहीं। रपट के मुताबिक- एनएसी की सिफारिश मानी जाए, तो योजना के लिए पहले चरण में 66.76 मिलियन टन और अंतिम चरण में 71.98 मिलियन टन अनाज की जरूरत होगी। पर उत्पादन और प्रबंध के मौजूदा ट्रैंड के मुताबिक 2011-12 में 56.35 मिलियन टन और 2013-14 में 57.61 मिलियन टन का स्टॉक ही संभव। सो एनएसी के प्रस्ताव को चरणबद्ध तरीके से भी लागू करना मुमकिन नहीं। यानी चुनावी घोषणा पत्र अब कांग्रेस और सरकार के बीच सिर दर्द बन गया। सो सवाल- चुनावी वायदों से पहले नेता सोचते क्यों नहीं? जब सोनिया गांधी 2009 के लोकसभा चुनाव का मैनीफैस्टो जारी कर रही थीं, तो मंच पर मनमोहन भी मौजूद थे। उसी मंच से सोनिया ने पहली बार नेहरू-गांधी परिवार से इतर मनमोहन को पीएम के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजैक्ट किया था। सो मैनीफैस्टो में खाद्य सुरक्षा बिल का वादा कोई तुगलकी फरमान की तरह नहीं आया होगा। अलबत्ता कांग्रेस के धुरंधरों ने पूरा मंथन किया होगा। मनमोहन सरकार की दूसरी पारी के 20 महीने पूरे हो रहे। संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरिए दो बार भोजन के अधिकार वाले इस बिल का राग भी अलापा जा चुका। अब जरा बिल का इतिहास बता दें। शरद पवार की मिनिस्ट्री ने बिल का ड्राफ्ट तैयार किया। पर सरकारी ढर्रे वाले इस बिल को सोनिया की रहनुमाई वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल ने नामंजूर कर दिया। एनएसी ने बिल की महत्ता को ध्यान में रख अपना ड्राफ्ट तैयार कर पीएम को भेज दिया। पीएम ने अपने आर्थिक सलाहकार सी. रंगराजन की रहनुमाई में एक्सपर्ट कमेटी बना दी। जिसकी रपट ने अब कांग्रेस और सरकार को आमने-सामने कर दिया। सोनिया की एनएसी ने बिल की ऐतिहासिकता और बारीकियों को ध्यान में रख संवेदना दिखाई। एनएसी ने दो चरणों में देश की 72 से 75 फीसदी आबादी तक सस्ता अनाज पहुंचाने का प्रस्ताव रखा। जिसमें बीपीएल परिवार को 35 किलो, तो एपीएल को 20 किलो अनाज प्रति माह दिए जाने का प्रावधान। पर सरकार 25 किलो अनाज देने के पक्ष में। सरकार की ओर से अनाज की जगह पैसे देने का भी प्रस्ताव था। पर भ्रष्टाचार की संभावना जता एनएसी ने खारिज कर दिया। अब जरा पीएम की एक्सपर्ट कमेटी के दो सुझाव भी देखिए। पहले सुझाव को तो कमेटी ने खुद ही मुश्किल बता दिया। सो आप दूसरा विकल्प देखिए- सिर्फ जरूरतमंद परिवारों को दो रुपए किलो गेहूं और तीन रुपए किलो चावल का कानूनी अधिकार दिया जाए। जबकि बाकी के लिए एक्जीक्यूटिव आर्डर निकाल कर स्टॉक में उपलब्धता के आधार पर बांटा जाए। यों कमेटी ने बीपीएल जनसंख्या की एनएसी की राय जरूर मान ली। सोनिया की एनएसी ने सचमुच संवेदना दिखाई। अर्जुन सेन गुप्त कमेटी ने रपट दी थी- देश में 84 करोड़ लोग ऐसे, जो महज 20 रुपए की दिहाड़ी पर गुजर-बसर कर रहे। सो एनएसी ने इस पूरी आबादी को भोजन का मौलिक हक देने का प्रस्ताव बनाया। खाद्य सुरक्षा बिल में कई बारीकियां। अब तक समाज बीपीएल-एपीएल में बंटा दिखता। पर बिल के मुताबिक तीन हिस्से दिखेंगे। बीपीएल-एपीएल के अलावा 25 फीसदी वह आबादी, जो बिल के दायरे से बाहर होगी। फिर अनाज का भंडारण भी कानूनी बाध्यता होगी। पर यहीं एक सवाल- क्या देश उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में है? किसानों की सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म हो रही। न्यूनतम समर्थन मूल्य में हाल की बढ़ोतरी को छोड़ दें, तो आजादी के बाद से अब तक किसानों को सिर्फ झुनझुना थमाया जाता रहा। अब कानून लागू होगा, तो किसान भी समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग करेंगे। सस्ता अनाज पाने वाले परिवार कीमत बढ़ोतरी का विरोध करेंगे। ऐसे में सरकार की मुश्किल- या तो सब्सिडी दे, या फिर समाज में संघर्ष पैदा होने दे। सब्सिडी के मामले में मनमोहन सरकार का रवैया छुपा नहीं। ऐसे में न बिल का मकसद पूरा होगा, न सोनिया के महत्वाकांक्षी बिल का सपना। आम आदमी के हित में मनमोहन सरकार का हाथ कितना तंग, महंगाई ने दिखा दिया। महंगाई पर गुरुवार को कुछ कदम उठे। पर कोई कदम ऐसा नहीं, जो महंगाई को नीचे ला सके। यानी महंगाई पर तो सोनिया भी कुछ नहीं कर पाईं। अब खाद्य सुरक्षा बिल की बारी, जो नरेगा की तरह आसान नहीं। जैसे सूचना के हक बिल पर सोनिया-मनमोहन में मतभेद थे। अब भोजन के हक वाले बिल पर भी। सो चुनौती सोनिया के लिए, सरकार की दलील मानेंगी या मजबूर करेंगी। पर भोजन को मौलिक हक का वैधानिक दर्जा दिलाना सचमुच सोनिया गांधी के लिए लिटमस टेस्ट जैसा। अब सोनिया चुनावी वादा निभाएंगी या घर में नहीं दाने.. की सरकारी दलील मानेंगी, वक्त ही बताएगा।
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13/01/2011