Tuesday, May 25, 2010

तो क्या ऐसे बहाल होगा भारत-पाक में विश्वास?

मंगलवार फैसलों का दिन रहा। एक फैसला अपनी अदालत से, जहां एसपीएस राठौड़ को हवालात जाना पड़ा। दूसरा फैसला पाक से आया, जहां हाफिज सईद छूट गया। पर राठौड़ का केस अभी बंद नहीं। सो बात पाक की। पाक के लिए यह कहावत मौजूं- जाको राखे आईएसआई, बाल न बांका होय। आखिर वही हुआ, जिसका अंदेशा था। पाक के नापाक इरादे तब फिर जगजाहिर हो गए। जब पाकिस्तान में बैठा कसाब का आका बाइज्जत बरी हो गया। पाक सुप्रीम कोर्ट ने भी हाफिज सईद को मुजरिम मानने से इनकार कर दिया। मुंबई हमले के बाद भारत ने भृकुटि तानी। अपना ताजा जख्म दुनिया को दिखाया। तो दबाव में पाक ने कार्रवाई की खूब नौटंकी की। अव्वल पहले तो कसाब को पाकिस्तानी मानने से इनकार कर दिया। पर नवाज शरीफ ने फरीदकोट जाकर अपनी ही हुकूमत का नकाब उतारा। तो कसाब को अपना मान लिया। पर कार्रवाई का वही पुराना रवैया अख्तियार किया। जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को दिसंबर 2008 में नजरबंद कर दिया। फिर भारत ने डोजियर सौंपे। तो मामला अदालत तक पहुंचा। पर पाक जुडिशियरी की फुर्ती देखिए। अपने यहां कसाब के खिलाफ तमाम पुख्ता सबूत और स्पेशल कोर्ट के गठन के बावजूद 17 महीने का वक्त लगा। पर हाफिज सईद को बरी करने में लाहौर हाईकोर्ट ने महज छह महीने भी नहीं लगाए। हाफिज 12 दिसंबर को नजरबंद हुआ। हाईकोर्ट ने दो जून 2009 को रिहाई का आदेश सुना दिया। भारत के दिए डोजियर को नाकाफी माना। वैसे भी जब पाक हुक्मरान ही डोजियर को डायजेस्ट कर गए और डकार तक नहीं ली। तो वहां की जुडिशियरी से कैसी उम्मीद? पर पाक ने नौटंकी यहीं खत्म नहीं की। पंजाब प्रांत की सरकार और केंद्र ने लाहौर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने लाहौर हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी। यानी हाफिज सईद अब खुला घूमेगा। पाक की जुडिशियरी पर कौन भरोसा करेगा। पाक जबसे पैदा हुआ, कभी लोकतंत्र दिखा ही नहीं। हर दो-चार साल में नया तानाशाह पैदा हो जाता। अगर कोई चुनी हुई सरकार हुई भी, तो आईएसआई की नकेल कसी रही। चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी बनाम परवेज मुशर्रफ की लड़ाई पाक जुडिशियरी की कहानी बयां कर चुकी। अगर पाक की अदालतें वाकई निष्पक्ष, तो अब तक भारत में आतंकवाद फैलाने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा क्यों नहीं हुई? यानी जैसा पाक हुक्मरान, वैसी ही समूची व्यवस्था। संसद पर हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद के मौलाना मसूद अजहर को भी पाक ने ऐसे ही नजरबंद किया था। पर वही हुआ, जो हाफिज सईद के मामले में मंगलवार को। क्या पाक हुक्मरानों को मालूम नहीं, जैश-ए-मोहम्मद हो या लश्कर या फिर जमात-उद-दावा। ये संगठन संयुक्त राष्ट्र की सूची में आतंकवादी संगठन। अंतर्राष्ट्रीय बैन लगा हुआ। फिर भी पाकिस्तान में सभी संगठन फल-फूल रहे। संगठन के नाम पर बैन लगता, तो फौरन नाम बदल लेते, काम जारी रहता। सो पाक से 26/11 के दोषियों पर कार्रवाई की उम्मीद ही बेमानी। पर अपनी सरकार को क्या हो गया। मुंबई हमले के बाद लकीर खींच दी, पाक दोषियों पर कार्रवाई करे, फिर बात होगी। आतंकवाद और शांति वार्ता को साथ न चलाने का एलान किया। पर मिस्र के शर्म अल शेख में मनमोहन-गिलानी की ऐसी गलबहियां हुईं। भावविभोर मनमोहन ने बलूचिस्तान की घंटी भी गले बांध ली। फिर भारत की ओर से पाक को बातचीत का न्योता गया। तो याद है ना, कैसे पाक विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कुरैशी ने भारत को घुटना टेकू बताया। फिर भी भारत ने वार्ता की। विदेश सचिव स्तर की बात हुई, पिछले महीने दोनों विदेश मंत्रियों ने फोन पर बात की। अब जून में चिदंबरम जाएंगे, तो 16 जुलाई को एस.एम. कृष्णा। यानी मुंबई हमले के बाद से अब तक पाकिस्तान की कार्रवाई का स्तर भले घटता रहा। पर अपने उदार मनमोहन वार्ता का स्तर बढ़ाते रहे। अब उन ने पाकिस्तान से सभी मसलों पर बातचीत के रास्ते खोल दिए। सोमवार को नेशनल प्रेस कांफ्रेंस में मनमोहन ने एलान किया- भारत और पाक के बीच रिश्तों की बहाली में विश्वास की कमी। सो थिंपू में मैंने और गिलानी ने यही महसूस किया, पहले आपस में भरोसे का माहौल बनाया जाए। मंगलवार को हाफिज सईद पर जो फैसला आया, क्या वह विश्वास बढ़ाने वाला? अब मनमोहन बताएं, ऐसे कैसे होगी विश्वास बहाली? आखिर कब तक अमेरिकी दबाव में पाक को छूट मिलती रहेगी? क्या अमेरिका में होने वाली आतंकी घटनाएं ही सिर्फ आतंकवाद? टाइम्स स्क्वायर में कार बम मिला। तो एफबीआई फैजल के पाकिस्तानी घर तक पहुंच गई। हिलेरी क्लिंटन का बयान आ गया- पाक से तार जुड़े मिले, तो पाक को कीमत चुकानी पड़ेगी। पर भारत तो दशकों से पाक प्रायोजित आतंकवाद का शिकार। फिर भी क्या कीमत चुकाई पाक ने? जुर्म का इकबाल तो दूर, अमेरिकी शह से हमेशा उछलता रहा। अब हाफिज सईद पर फैसला आया, तो अपने विदेश मंत्रालय ने खानापूर्ति जरूर की। विदेश सचिव निरुपमा राव बोलीं- पाक ने आश्वासन दिया है, वह अपनी जमीन का उपयोग आतंकी गतिविधि के लिए नहीं होने देगा। इसलिए भारत उम्मीद करता है कि पाक हाफिज के खिलाफ सार्थक कदम उठाएगा। आखिर कब तक पाक पर भरोसा करेगा भारत। वाजपेयी बस लेकर लाहौर गए। तो नवाज शरीफ के बनाए सेनापति परवेज मुशर्रफ ने कारगिल कराया। पाक के खुंखार आतंकवादी तिहाड़ में बंद थे। तो कंधार हुआ। फिर संसद पर हमला।
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25/05/2010