Monday, May 3, 2010

तो शिबू-बीजेपी में अब गुरिल्ला युद्ध

आखिर कसाब पर फैसला आ गया। सभी 86 मामलों में गुनहगार साबित हुआ। सो सजा में अब किसी को कोई शक नहीं। शक है, तो सिर्फ इस बात का। क्या सचमुच सजा के फैसले पर अमल होगा? या अफजल की तरह ही कतार में, यह तो वक्त बताएगा। पर फिलहाल सबकी निगाह मंगलवार के इंतजार में। जब स्पेशल कोर्ट कसाब को सजा सुनाएगा। अब मंगलवार को कसाब की जिंदगी तय हो जाएगी। पर झारखंड की सियासत का क्या होगा, पता नहीं। बीजेपी ने झामुमो को मंगलवार तक का अल्टीमेटम दिया था। पर नितिन गडकरी से मिल शिबू के बेटे हेमंत रांची पहुंचे। तो एलान कर दिया, शिबू बने रहेंगे। बेचारी बीजेपी हक्कीबक्की रह गई। सो सोमवार को आडवाणी-सुषमा-जेतली ने संसद भवन में मीटिंग की। फिर शाम को आडवाणी के घर गडकरी-सुषमा-जेतली समेत बड़े दिग्गज जमे। पर बीजेपी फैसला नहीं ले पा रही। अब तो झारखंड की कुर्सी पर मौजां ही मौजां सिर्फ सपना भर। पर फजीहत जमकर हो रही। सो बीजेपी के चाल, चरित्र, चेहरे में फजीहत भी जुड़ गई। बीजेपी 28 अप्रैल को ही आर या पार कर लेती। तो न सिर्फ वर्करों का मनोबल बढ़ता। जनता के बीच बीजेपी खम ठोककर कहती, देखो, जनहित में कर दी कुर्सी कुर्बान। पर शिबू-हेमंत ने ऐसा पासा फेंका, बीजेपी लार टपकाने लगी। छोटी कुर्सी कुर्बान कर बड़ा हीरो बन जाती। पर बड़ी कुर्सी के लालच में छोटापन दिखा दिया। शिबू की गलती को माफ कर अपनी रहनुमाई में सरकार बनाने को राजी हो गई। पर शिबू कोई राजनीति के अनाड़ी नहीं। जो छोटी सी भूल की खातिर बड़ी कुर्सी छोड़ दें। सो गडकरी के घर शनिवार को झामुमो नेता जुटे। तो तीन घंटे तक तर्क-वितर्क चलता रहा। हेमलाल मुर्मू ने शिबू के कुर्सी से हटते ही पार्टी में टूट का अंदेशा जताया। तो अपने राजनाथ ने कह दिया, ऐसे नहीं तो वैसे कुर्सी जाएगी ही। फिर झामुमो ने शिवसेना का उदाहरण रखा। कैसे राष्ट्रपति चुनाव में शिवसेना ने एनडीए के खिलाफ वोट किया। सो बीजेपी से सवाल पूछा, तब बीजेपी ने शिवसेना से नाता क्यों नहीं तोड़ा। तो बीजेपी ने जवाब दिया, शिवसेना ने तब डंके की चोट पर प्रतिभा पाटिल को वोट दिया था। शिबू सोरेन ने तो भरोसा दिया एनडीए को, वोट यूपीए को डाल आए। सो शिवसेना ने उस वक्त जो किया, वह उसका सिद्धांत था। अबके शिबू ने जो किया, वह विश्वासघात। आखिर में बीजेपी ने दो-टूक कह दिया, कांग्रेस के कुशासन से झारखंड को बचाने के प्रति झामुमो वाकई ईमानदार। तो बीजेपी की रहनुमाई में सरकार बनाने को राजी हो, वरना समर्थन वापसी का फैसला लागू होगा। बीजेपी ने सोचा, मजबूर शिबू पर दबाव बनाएंगे। तो सीएम की कुर्सी मिल जाएगी। पर शिबू की गुगली में बीजेपी गोल-गोल घूमने लगी। अब झारखंड के झमेले से बाहर कैसे निकले, बीजेपी को समझ नहीं आ रहा। या यों कहें, गुरुजी ने झारखंड के जंगलों में बीजेपी ऐसा फंसा दिया। बीजेपी प्यास के मारे तड़प रही। बीजेपी ने राष्ट्रीय पार्टी होने की हेकड़ी दिखाई। तो शिबू-हेमंत ने अपनी सियासत शुरू कर दी। झारखंड की राजनीति में गुरुजी का कितना दबदबा, यह तो विधानसभा के आंकड़े ही बता रहे। तमाम आरोपों के बाद भी शिबू 18 एमएलए ले आए। अब दिल्ली में कुछ, और रांची में हेमंत वाणी कुछ और। तो इसके पीछे क्या वजह, यह तो सोमवार को बीजेपी नेताओं की पेशानी देखकर समझ आ गया। शिबू सोरेन ने सुबह ही गडकरी-सुषमा-जेतली को फोन घुमाया। अपील की, झारखंड केबिनेट की बैठक होने जा रही। सो अपने मंत्रियों को शामिल होने के लिए कहें। पर बिना मंत्रियों से पूछे ही तीनों सूरमाओं ने कह दिया, केबिनेट मीटिंग में बीजेपी का मंत्री नहीं आएगा। पर गुरुजी कोई नाम के ही गुरु नहीं। बीजेपी कोटे के मंत्री केबिनेट बैठक में जाने को तैयार हो रहे थे। तभी दिल्ली में बैठे सूरमाओं को भनक लग गई। तो डिप्टी सीएम रघुवर दास समेत कइयों को फोन घुमाया गया। पर इन मंत्रियों की चालाकी देखिए। सीधे फोन पर नहीं आए, अलबत्ता मातहतों के जरिए संदेशा दिलवाया। अभी बाहर से आते हैं, तो बात करवाते हैं। सो सूरमाओं को बात समझ आ गई। फौरन आडवाणी के घर जमा हुए। पर तब तक बीजेपी कोटे के मंत्री शिबू की रहनुमाई में कई सरकारी फैसलों को हरी झंडी दे चुके थे। यानी झारखंड की इस राजनीति में गुरुजी ने बीजेपी को बता दिया, गुरिल्ला युद्ध किसे कहते हैं। अब तक बीजेपी समर्थन वापसी की हेकड़ी दिखा रही थी। पर खुद के एमएलए टूटते दिख रहे। सो आडवाणी के घर फैसला हुआ, आज-कल में पर्यवेक्षक भेजा जाए। विधायकों से बात कर तत्काल समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंप दो। ताकि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अब इस झारखंड के झंझट में कौन पिटा, यह बताने की जरूरत नहीं। बीजेपी की हालत तो उस कहावत वाली हो गई। चले थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। कहां बीजेपी सीएम बनाने का सपना देख रही थी। पर पूरे एपीसोड में सिर्फ फजीहत करवाई। अब सुषमा स्वराज कह रहीं, इस हफ्ते आर या पार का फैसला हो जाएगा। मंगलवार का अल्टीमेटम दिया तो गुरुजी को था। पर खुद के लिए कब्रगाह बन गया। आखिर गुरुजी ने बीजेपी को बता दिया, झारखंड में यों ही लोग उन्हें गुरु नहीं कहते।
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03/05/2010